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लोकतंत्र: ऋग्वेद से उत्पत्ति | History of Democracy

सनातन धर्म जो कि सभी धर्मों में से सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है, जिस से निकलकर अन्य कई धर्मों की उत्पत्ति हुई। चार महत्वपूर्ण वेदों का ज्ञान सनातन धर्म ने ही दिया। मानव जीवन की उत्पत्ति से लेकर उसका सामाजिक, मानसिक व राजनीतिक विकास तक; उसकी धर्म-कर्म कांडो से लेकर सजीव-निर्जीव से उसके संबंधों तक का विवरण इन वेदों में दिया गया। वैसे तो मानव जीवन में सभी पक्षों का विकास जरूरी है लेकिन इनमें से एक ऐसा विकास है जिससे अन्य विकास आसानी से हो सकते हैं। मनुष्य का राजनीतिक विकास एक ऐसा विकास है जिससे उसका सामाजिक के साथ-साथ अन्य सभी व्यक्तित्व विकास जुड़े हैं। अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना, अधिकारों के लिए न्याय लड़ना और एक प्रखर वक्ता के साथ-साथ एक उचित श्रोता होना भी राजनीतिक विकास है।


History of Democracy में सबसे महत्वपूर्ण शब्द जो आता है वह है "लोकतंत्र"। अर्थात जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा चुना गया शासन। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। जिस लोकतंत्र की बात आज संपूर्ण विश्व में की जाती है,उस लोकतंत्र की उत्पत्ति भारत के सनातन धर्म में कई लाखों वर्ष पूर्व ही कर दी गई थी। वैदिक समाज के अध्ययन करने से यह सिद्ध हुआ कि ऋग्वेद में समिति व सभा का जिक्र मिलता है, जिसमें राजा, मंत्री व विद्वानों से विचार विमर्श के बाद ही कोई फैसला लेता था। देवों के देव "इंद्र" का चयन भी विचार विमर्श के बाद ही किया जाता था। समय व स्थिति के बदलाव से वैदिक काल का पतन होने लगा तथा गणतंत्र की जगह राजतंत्र का उदय होने लगा।



भारत में गणतंत्र का विचार वैदिक काल से चला आ रहा है जिसमें हर व्यक्ति की राजतंत्र में भागीदारी तथा प्रत्येक व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में 40 बार, अथर्ववेद में 9 बार‌  तथा ब्राह्मण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। सनातन अध्ययन और वैदिक स्रोतों से विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखो   से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकतर स्थानों में गणतंत्र व्यवस्था हमारे यहां पाए जाते थी।‌ महाभारत में भी लोकतंत्र के सूत्र मिलते हैं। बौद्ध काल में भी कुछ चर्चित गणराज्य जैसे- कुशीनगर, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला और वैशाली के लिक्षवी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। वैशाली के पहले राजा 'विशाल' को चुनाव द्वारा चुना गया था। ‌ कौटिल्य ने अपनी प्रमुख पुस्तक अर्थशास्त्र मे लिखा कि गणराज्य दो प्रकार के होते हैं, पहला आयुध गणराज्य अर्थात जिसमें केवल राजा ही फैसला लेता है; दूसरा श्रेणी गणराज्य अर्थात जिसमें हर कोई भाग लेता है। कौटिल्य से पूर्व पाणिनि ने अपनी व्याकरण "अस्थाध्याय" में जनपद शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर गया जिन की शासन व्यवस्था जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के हाथों में रहती थी। 


अत:  यह निश्चित रूप से हम कह सकते हैं कि यूनान और ब्रिटेन से पहले का लोकतंत्र हमारे भारत की भूमि पर और हमारे सनातन संस्कृति में मौजूद था। यूनान जैसे देशों ने हमसे पहले  इसका अध्ययन करके लोकतंत्र की स्थापना अपने देशों में की। भारत का पहला विदेशी यात्री व यूनान का राजदूत मेगास्थनीज ने भी अपनी पुस्तक में मालव और सीवी आदि गणराज्य का वर्णन किया है। यह कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की उत्पत्ति या  लोकतंत्र की देन "ऋग्वेद" है।

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