नमस्कार आप सभी को! आजकल का यह दौर संक्रमणीय काल से गुजर रहा है ,हम विज्ञान व धर्म के बीच की कढ़ी बने हुए हैं , इस दौर में जहाँ विज्ञान की मान्यता है वहीं धर्म की मान्यता भी है।
हम आए दिन यह सोचते रहते हैं की मृत्यु उपरांत हमारी आत्मा का क्या होगा ? क्या इसे दूसरा शरीर प्राप्त होगा या ब्रह्मांड में यह आत्मा विलीन हो जाएगी?
तो इसके जवाब में कई सज्जन लोग कहते हैं की ,'कर्म ही इस जगत का सर्वश्रेष्ठ सत्य है ,जैसा कर्म वैसा फल, यदि कुकर्म करोगे तो पाप के भागीदार बनोगे, यदि पुण्य करोगे तो अपना यह जीवन साकार करोगे'।
अब बात आती है कि पुण्य क्या है?
पुण्य का अर्थ पुण्य का अर्थ पवित्रता से जोड़ा जाता है। पुण्य से तात्पर्य है कि जिसका हृदय निश्चल व उदार चित्त होता है, तथा जिसके हृदय में दूसरे के प्रति पवित्रता की अभिव्यक्ति होती है ,वह पुण्य कहलाता है।
अब सवाल यह उत्पन्न होता है की पुण्य में सबसे बड़ा पुण्य कौन सा है ?
इस धरती पर मनुष्य का सबके साथ लगाव है ,चाहे 'प्रकृति' की बात करें या 'जानवरों' की यह लगाव कहीं ना कहीं लाभ या फायदे का लगाव है क्योंकि मनुष्य की प्रकृति है कि जो चीज उसे फायदे की लगती है ,उसे वह उसी समय अपना लेता है ,तथा जो चीज उसे फायदा नहीं पहुंचाती ,उसे व कूड़े के ढेर में ढेर कर देता है आधुनिक समय में इस दुनिया में मनुष्य को सबसे ज्यादा किफायती जो चीज लगती है ,वह है 'धन और दौलत 'और अधिकतर मनुष्यों की सोच होती है कि जिनके पास दौलत है वह ज्यादा अच्छा कर्म कर पाते हैं, और पुण्य कमा पाते हैं, गरीब लोग तो पुण्य नहीं कर पाएंगे।
परंतु यह सोच गलत है ,सत्यता यह है की धन जोड़ने से अपवित्रता आती है, और धन का परित्याग करने से पवित्रता आती है। सच्चे अर्थों में वही धन पवित्र माना जाता है ,जो अच्छे कार्यों में विनियोजित हुआ हो ,और अच्छे कार्यों का फल पुण्य होता है।
पुण्य 11 प्रकार के है ,इनमें से 5 पुण्य, सबसे बड़े पुण्य है।
अन्न पुण्य
किसी भूखे को भोजन कराना चाहे वह मनुष्य हो या जानवर अपने सच्चे हृदय से उन को भोजन कराना यह पहला सबसे बड़ा पुण्य है।
शयन पुण्य
निराश्रित मनुष्य या जानवरों को आश्रय देना ,यह दूसरा सबसे बड़ा पुण्य है।
वचन पुण्य
यदि आपके पास ना भोजन है, और ना धन है ,किसी को दान करने के लिए ,तो आप अपनी निर्दोष वाणी से व अपने मधुर शब्दों से अन्य के दुःखों को सुख में परिवर्तित कर सकते हैं ,अर्थात उन्हें सुख पहुंचा सकते हैं।
नमस्कार पुण्य
अपने से बड़ों वह छोटों के प्रति नम्रता पूर्ण व्यवहार रखना यह सबसे बड़ा पुण्य है। बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करने मात्र से ही आपके पाप पुण्य में बदल जाते हैं।
मन पुण्य
हृदय में सभी प्राणियों के प्रति सुख की भावना रखना और अहिंसा का पालन करना बड़ा पुण्य है।
अर्थात पुण्य वह है जो आप अपने पवित्र ह्रदय ,द्वेष मुक्त चित्त, व मस्तिष्क के उच्च भाव व उच्च विचारों के साथ करते हैं तो Ye Hai Sabse Bade Punya.
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