आर्थिक संकट से जूझ रहे प्राइवेट सेक्टर के 94 साल पुराने "लक्ष्मी विलास बैंक" पर आरबीआई ने दखल देने का फैसला लिया। इसके लिए आरबीआई ने 3 सदस्य समिति की टीम को इसके दैनिक कामकाज को देखने के लिए गठित कर दिया है। यह समिति अंतरिम तौर पर प्रबंध निदेशक और सीईओ की विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग करेगी। इस समिति के अध्यक्ष मीता मखान व अन्य सदस्य शक्ति सिन्हा और सतीश कुमार कालरा है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 1926 में Lakshmi Vilas Bank अस्तित्व में आया। साल 1958 में इस बैंक को आरबीआई द्वारा लाइसेंस प्राप्त हुआ, लेकिन खराब प्रबंधन होने के कारण इसके भीतर कुछ भी सही नहीं चल रहा है जिसके चलते शेयरधारकों द्वारा बैंक के सातों निदेशकों को बर्खास्त किया गया। बर्खास्त करने के बाद आरबीआई द्वारा इसमें दखल देने का फैसला लिया गया।
इसे भी पढ़ें: जनधन योजना के 6 साल, पूरे 40 करोड़ से ज्यादा खुले खाते
बैंक की समस्या तब उत्पन्न हुई जब उसने एसएमई (लघु एवं मझोले उद्यम) के बजाय बड़ी कंपनियों पर ध्यान देना शुरू किया। फार्मा कंपनी रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तक मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह की निवेश इकाई को 720 करोड़ रुपए का क़र्ज़ बैंक द्वारा दिया गया, यह कर्ज 2016 के अंत और 2017 की शुरुआत में 794 करोड़ पर की मियादी जमा पर दिया गया। पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस ने लक्ष्मी विलास बैंक के दो पूर्व कर्मचारियों को गिरफ्तार किया, जिन पर कथित रूप से रेलीगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड के 729 करोड़ की मियादी जमा की रशीद के कथित रूप से दुरुपयोग का आरोप है।
इस बीच, आरबीआई ने सितंबर 2019 में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) बढ़ने के साथ बैंक को तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई के अंतर्गत रखा। बहरहाल बैंक को मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 836.04 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ।