श्री हरि कृष्ण प्रेमी जी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की वहीं से इन्होंने कई नाटकों की रचना की और इनके नाटक पूरे जनमानस के द्वारा सराहे गए तभी से यह सफल नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
श्री हरि कृष्ण प्रेमी जी की एकांकी में बेड़ियों, नया समाज, मातृभूमि का मान, निष्ठुर न्याय ,वाणी मंदिर, बादलों के पार ,सम्मिलित है। इनकी सभी रचनाओं में आप सामाजिक, ऐतिहासिक व पौराणिक कथाओं का संग्रह देखेंगे वहीं इनकी रचनाओं को पढ़ने के पश्चात इसमें प्रेम, देशभक्ति ,साहस, वीरता ,राष्ट्रीयता व पराक्रम जैसे मानवीय मूल्यों की झलक आपको देखने को मिलेगी।
श्री हरि कृष्ण प्रेम जी की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं
श्री हरि कृष्ण प्रेम जी की सर्वप्रथम प्रकाशित रचना 'स्वर्ण विहान' है जो कि एक गीतिनाट्य है इसका प्रकाशन सन् 1930 में किया गया इसके पश्चात इनकी 'शिवा साधना का प्रकाशन सन् 1937 में हुआ जिसमें औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी के मध्य संघर्ष का वर्णन वर्णित है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार से औरंगजेब की क्रूर नीतियां जनता के प्रति अराजकता पूर्ण व्यवहार व सांप्रदायिक एवं तानाशाही शासन के प्रति छत्रपति शिवाजी जी ने विरोध किया व जनता को जागरूक करके आक्रामक नीतियों को जड़ से मिटाने का प्रयत्न किया।
सन 1937 में श्री हरि कृष्ण प्रेम जी द्वारा रचित 'प्रतिशोध' एकांकी में छत्रपाल द्वारा बुंदेलखंड की शक्तियों को एकत्र करके औरंगजेब से टक्कर लेने की कथा वर्णित है उसमें बताया गया है कि औरंगजेब एक निरंकुश शासक था जो कि जनता को अपनी नीतियों से परेशान करता था उसके प्रति बुंदेलखंड एकत्र होकर उसकी क्रूर नीतियों का किस प्रकार से विरोध करता है यह सब इस एकांकी में वर्णित किया गया है
'पाताल विजय' की रचना श्री हरि कृष्ण प्रेम जी द्वारा सन् 1936 में की गई इनकी पाताल विजय एकमात्र पौराणिक नाटकों में सम्मिलित है।
श्री हरी कृष्ण प्रेम जी ने गीत नाट्य शैली में भी रचनाएं की इसमें इनकी हीर रांझा ,सोहनी भट्टीवाल ,शशि पुन्नू पर गीतिनाट्य लिखें, यह सभी पंजाब के प्रसिद्ध प्रेम कथाओं पर आधारित हैं।
मध्यकालीन इतिहास के संदर्भ में हरे कृष्ण प्रेम जी ने पूरे समाज को राष्ट्रीय जागरण विश्वबंधुत्व तथा धर्मनिरपेक्ष से संबंधित है कई रचनाओं को रचा ताकि समाज में नूतन आदर्श सम्मिलित हो सके
प्रेम जी ने कई सामाजिक नाटकों की भी रचना की जिसमें 'बंधन' जैसे कीर्ति शामिल है बंधन की रचना सन् 1940 में की गई जिसमें मजदूर व पूंजीपति लोगों की दशाओं का वर्णन किया गया है कि किस प्रकार से पूंजीपति लोग मजदूरों का शोषण करते हैं और मजदूर किस प्रकार से इस शोषण का संघर्ष करके नई मंजिल को चुनते हैं।
इसे भी पढ़ें : महर्षि वाल्मीकि: डाकू से महात्मा बनने तक का सफर
हरे कृष्ण प्रेमी जी ने दो एकाकी संग्रह को भी रचा जिसमें ' मंदिर' व 'बादलों के पार' सम्मिलित है 'बादलों के पार' में तत्कालीन सामाजिक समस्याओं का चित्रण इस प्रकार से किया गया है कि मानो यह सभी घटनाएं हमारे समक्ष हो रही हों। 'मेरी जन्मभूमि' व घर या होटल में प्रेमी जी ने मानवीय समस्याओं व उनकी भावनाओं को चित्रित किया है साथ उनकी समस्याओं का समाधान भी दिया है।
हरि कृष्ण प्रेमी जी की रचनाओं की खास बात
हरि कृष्ण प्रेमी जी द्वारा रचित उनके नाटकों में तत्कालीन जीवन की विषमताओं, समाज में फैली कुप्रथा के विद्रोह के स्वर सुनने को मिलते हैं। इनकी रचनाओं व नाटक की एक खास बात यह है कि जिस किसी भी समस्याओं का चित्रण करते हैं उस समस्या का समाधान यह अपने रचना में जरूर देते। हरि कृष्ण प्रेमी जी ने 'अनंत के पथ पर' , 'रूप दर्शन' ,'प्रतिभा' जिसमें 'प्रेमी का प्रणय निवेदन 'यह ऐसी कृतियां है जिसमें हरिकृष्ण प्रेमी जी ने मन के उदगार को प्रेमी-प्रेमिका के समक्ष प्रस्तुत किया है वह उन सवालों का जवाब भी अपने कीर्ति के माध्यम से देने का प्रयत्न किया है।
हरिकृष्ण प्रेमी जी समाज को नई दिशा देने का प्रयास
हरिकृष्ण प्रेमी जी के साहित्यिक रचनाओं से यह ज्ञात होता है कि वह समाज में नूतन आदर्श स्थापित करना चाहते थे साथ ही युवाओं में राष्ट्रभक्ति ,धर्मनिरपेक्षता व क्रूर शक्तियों के प्रति विद्रोह की भावना का पाठ पढ़ाना चाहते थे।
इनके द्वारा रचित रचनाएं पूरे जनमानस को प्रभावित करती हैं और करती रहेंगी इनकी समस्त रचनाओं में हरिकृष्ण प्रेमी जी की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति की प्रति छाया देखने को मिलती है इन महान साहित्यकार का निधन सन् 1974 में हो गया था परंतु इनके विचार हमेशा इनकी कृतियों में अमर रहेंगे।