biography of aarti saha
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आरती साहा: इंग्लिश चैनल पार करने वाली पहली एशियाई महिला की जीवनी

आरती साहा एक भारतीय-बंगाली लंबी दूरी की तैराक थीं। उन्हें 29 सितंबर 1959 को इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने वाली पहली एशियाई महिला बनने के लिए जाना जाता है। उस समय वह 19 साल की थीं। वह 1960 में पद्म श्री से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी भी बनीं।


प्रारंभिक जीवन

आरती साहा का जन्म 24 सितंबर 1940 को कोलकाता में हुआ था। आरती साहा मध्यम वर्गीय परिवार से थीं। उनके पिता का नाम पंचुगोपाल साहा था, वह सशस्त्र बलों में एक कर्मचारी थे। उनका एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी। ढाई साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। उनके बड़े भाई और छोटी बहन का पालन-पोषण उनके मामा ने किया। आरती का पालन-पोषण उनकी दादी ने कोलकाता में किया था।


चार साल की उम्र में वह अपने चाचा के साथ चंपातला घाट स्नान के लिए गईं जहां उन्होंने तैरना सीखा। आरती की तैराकी में रुचि को देखते हुए उनके पिता पंचुगोपाल साहा ने अपनी बेटी को हटखोला स्विमिंग क्लब में नामांकित कराया। 1946 में 5 साल की उम्र में उन्होंने शैलेन्द्र मेमोरियल तैराकी प्रतियोगिता में 110 गज फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता। इस तरह उन्होंने अपनी तैराकी की शुरुआत की। आरती ने सिटी कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की।


आरती साहा का करियर

आरती साहा ने 1945 और 1951 के बीच पश्चिम बंगाल में 22 राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं जीतीं। आरती की मुख्य प्रतियोगिताएं 100 मीटर फ्रीस्टाइल, 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक और 300 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक थीं। 1948 में उन्होंने मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया। उन्होंने 100 मीटर फ्रीस्टाइल और 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में रजत और 200 मीटर फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीता। 1950 में आरती ने ऑल इंडिया रिकॉर्ड बनाया। 1951 में पश्चिम बंगाल राज्य प्रतियोगिता में, उन्होंने 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में 1 मिनट 37.6 सेकंड का समय लिया और डॉली नज़ीर का अखिल भारतीय रिकॉर्ड तोड़ दिया। उसी प्रतियोगिता में, उन्होंने 100 मीटर फ़्रीस्टाइल, 200 मीटर फ़्रीस्टाइल और 100 मीटर बैकस्ट्रोक में नया राज्य-स्तरीय रिकॉर्ड बनाया।


1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में आरती ने हमवतन डॉली नज़ीर के साथ भारत का प्रतिनिधित्व किया। 12 साल की उम्र में वह चार महिला प्रतिभागियों में से एक थीं और भारतीय दल की सबसे कम उम्र की सदस्य थीं। उन्होंने ओलंपिक में 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक स्पर्धा में भाग लिया। ओलंपिक से लौटने के बाद वह 100 मीटर फ्रीस्टाइल में अपनी बहन भारती साहा से हार गईं।


आरती गंगा में लंबी दूरी की तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेती थी। ब्रोजेन दास से आरती को इंग्लिश चैनल पार करने की प्रेरणा मिली। 1958 में बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस में, ब्रोजेन दास पुरुषों में प्रथम स्थान पर रहे। उन्होंने इंग्लिश चैनल पार करने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के पहले व्यक्ति होने का गौरव भी हासिल किया। संयुक्त राज्य अमेरिका की महिला तैराक ग्रेटा एंडरसन पुरुषों और महिलाओं दोनों में पहले स्थान पर रहीं। उन्होंने अगले साल के आयोजन के लिए बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस के आयोजकों को आरती का नाम प्रस्तावित किया।


हथकोला स्विमिंग क्लब के सहायक कार्यकारी सचिव डॉ अरुण गुप्ता ने कार्यक्रम में आरती की भागीदारी के आयोजन में पहल की। जामिनीनाथ दास, गौर मुखर्जी और परिमल साहा ने भी आरती की यात्रा के आयोजन में अपनी सहायता प्रदान की। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ बिधान चंद्र रॉय ने ₹ 11,000 के अनुदान की व्यवस्था की। इस तरह यात्रा की व्यवस्था की गई।


13 अप्रैल 1959 को आरती देशबंधु पार्क के तालाब में लगातार आठ घंटे तक तैरीं। 24 जुलाई 1959 को अपने प्रबंधक डॉ अरुण गुप्ता के साथ वह इंग्लैंड के लिए रवाना हुईं। उन्होंने 13 अगस्त को इंग्लिश चैनल में अपना अंतिम अभ्यास शुरू किया। आरती का मार्गदर्शन डॉ. बिमल चंद्रा ने किया था, जो 1959 बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस में भी भाग ले रहे थे।


प्रतियोगिता में कुल 58 प्रतिभागी हैं। दौड़ 27 अगस्त 1959 को सुबह 1 बजे केप ग्रिस नेज़, फ्रांस से सैंडगेट, इंग्लैंड तक निर्धारित की गई थी। अपने पहले प्रयास में वह 40 मील से अधिक तैरकर इंग्लैंड तट के 5 मील के भीतर आ गईं। उन्हें विपरीत दिशा से आ रहे करंट का सामना करना पड़ा। 29 सितंबर 1959 को उन्होंने अपना दूसरा प्रयास किया। आरती ने केप ग्रिस नेज़, फ्रांस से सैंडगेट, इंग्लैंड तक 16 घंटे 20 मिनट तक तैराकी की। आरती जब इंग्लैंड के तट पर पहुंची तो उन्होंने भारतीय ध्वज फहराया।


व्यक्तिगत जीवन और मृत्यु

1959 में आरती ने अपने मैनेजर डॉ. अरुण गुप्ता से शादी की थी । शादी के बाद उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम अर्चना है। 4 अगस्त 1994 को, उन्हें पीलिया व एन्सेफलाइटिस के कारण कोलकाता के एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था और 19 दिन बाद, 23 अगस्त 1994 को बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।




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