भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy), मानव इतिहास में अबतक विश्व की सबसे भयावह और दर्दनाक ओद्योगिक त्रासदी में से एक है। त्रासदी के पीड़ितों के लिए ये एक ऐसा जख्म है जो 36 साल बाद आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। 36 साल पहले, 2 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) की फैक्टरी से निकली कम से कम 30 टन अत्यधिक जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ( Methyl Isocyanate) ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं।
उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना जयादा थी।
त्रासदी के दुष्प्रभाव जारी, आज की पीढ़ी भी है प्रभावित
36 साल बाद भी, गैस के संपर्क में आने वाले कई लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को जन्म दिया है। हालांकि लोग तो दशकों से, साइट को साफ करने के लिए भी लड़ रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, 2001 में मिशिगन स्थित डॉव केमिकल के यूनियन कार्बाइड पर कब्जा करने के बाद कार्य धीरे हो गया।
मानवाधिकार समूह कहते हैं कि हजारों टन खतरनाक अपशिष्ट भूमिगत दफनाया गया है, और यहां तक की सरकार ने स्वीकार किया है कि क्षेत्र दूषित है। स्वस्थ को लेकर हालात कुछ ऐसे हैं की, भोपाल गैस कांड के बाद सरकार की ओर से बनाए गए गैस राहत विभाग में हर माह दर्जन भर आवेदन ऐसे आते हैं, जिसमें कैंसर के इलाज के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जाती है।
बता दें की इस गैस त्रासदी में पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। हजारों लोग की मौत तो मौके पर ही हो गई थी. जिंदा बचे लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। कैंसर एक अकेली बीमारी नहीं है, जिससे गैस प्रभावित लोग जूझ रहे हैं, सैकड़ों बीमारियां हैं। घटना के 33 साल बाद भी गैस कांड के दुष्प्रभाव खत्म नहीं हो रहे हैं।
दुर्भाग्यवश, इतने सालों में घटना को हर बार बरसी के याद कर लिया जाता है, दोषी को सजा दिलाने और अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के तमाम वादे किए जाते हैं। लेकिन दिन गुजरते ही वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है।
चूंकि, यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना अधिकार अमेरिका की कंपनी के पास होने के कारण हमेशा यह मांग उठती रही है कि गैस पीड़ितों को मुआवजे की मांग डॉलर के वर्तमान मूल्य पर की जाना चाहिए। हालांकि, इस याचिका में दिए गए निर्देश अभी भी सरकारी फाइलों में ही बंद हैं।
इसके लिए वर्ष 2010 में एक पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी थी। इस पीटिशन में 7728 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की गई थी। कंपनी से वर्ष 1989 में जो समझौता हुआ था, उसके तहत 705 करोड़ रुपए मिले हैं। सरकार का तर्क है कि गैस कांड से प्रभावित और मृतकों की संख्या बढ़ी है, इस कारण मुआवजा भी बढ़ाना चाहिए।
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भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। २००६ में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये।
भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा। इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था।
भोपाल गैस त्रासदी पूर्व-घटना चरण
सन 1969 में यू.सी.आइ.एल.कारखाने का निर्माण हुआ जहाँ पर मिथाइलआइसोसाइनाइट नामक पदार्थ से कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। सन 1979 में मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) के उत्पादन के लिये नया कारखाना खोला गया।
भोपाल गैस त्रासदी के लिए योगदान देने वाले कारक
नवम्बर 1984 तक कारखाना के कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालात में थे और न ही सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन किया गया था। स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों की रिपोर्टों के अनुसार कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गये सारे मैनुअल अंग्रेज़ी में थे जबकि कारखाने में कार्य करने वाले ज़्यादातर कर्मचारी को अंग्रेज़ी का बिलकुल ज्ञान नहीं था। साथ ही, पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने भी काम करना बन्द कर दिया था। समस्या यह थी कि टैंक संख्या 690 में नियमित रूप से ज़्यादा एमआईसी गैस भरी थी तथा गैस का तापमान भी निर्धारित 4.5 डिग्री की जगह 20 डिग्री था। मिक को कूलिंग स्तर पर रखने के लिए बनाया गया फ्रीजिंग प्लांट भी पॉवर का बिल कम करने के लिए बंद कर दिया गया था।
भोपाल गैस त्रासदी गैस का निस्तार
2- 3 दिसम्बर की रात्रि को टैन्क 690 में पानी का रिसाव हो जाने के कारण अत्यन्त ग्रीश्म व दबाव पैदा हो गया और टैन्क का अन्तरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुच गया जिसके तत पश्चात इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण में हो गया। 45-60 मिनट के अन्तराल लगभग 30 मेट्रिक टन गैस का रिसाव हो गया।
गैस का बादल
इन विषैली गैसों का प्रवाह भोपाल शहर में दक्षिण पूर्वी दिशा में था। भोपाल के वातावरण में जहरीली गैसीय बादल के प्रभाव की संभावनाएं आज भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। संभवत: मिक के उपरान्त गैस के बादल में फोस्जीन, हाइड्रोजन सायनाइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, हायड्रोजन क्लोराइड आदि के अवशेष पाये गये थे।
निस्तार वाद
इस त्रासदी के उपरान्त भारतीय सरकार ने इस कारखाने में लोगों के घुसने पर रोक लगा दी। अत: आज भी इस दुर्घटना का कोई स्पष्ट कारण एवं तथ्य लोगों के सामने नहीं आ पाया है। शुरुआती दौर में सी बी आई तथा सी एस आई आर द्वारा इस दुर्घटना की छान-बीन की गई थी।
दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव
भोपाल की लगभग 5 लाख 20 हज़ार लोगो की जनता इस विषैली गैस से सीधि रूप से प्रभावित हुई जिसमे 200000 लोग 95 वर्ष की आयु से कम थे और 3000 गर्भवती महिलाये थी, उन्हे शुरुआती दौर में तो खासी, उल्टी, आंखों में उलझन और घुटन का अनुभव हुआ। 2249 लोगो की इस गैस की चपेट में आ कर आकस्मिक ही मौत हो गयी। 1991 में सरकार द्वारा इस संख्या की पुष्टि 3928 पे की गयी। दस्तावेज़ो के अनुसार अगले 2 सप्ताह के भीतर 800 लोगो की मृत्यु हुई। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गैस रिसाव से होने वाली मृत्यु की संख्या 3787 बतलायी गयी है।
स्वास्थ्य देखभाल
रिसाव के तुरन्त बाद चिकित्सा संस्थानों पर अत्यधिक दबाव पड़ा। कुछ सप्ताह के भीतर ही राज्य सरकार ने गैस पीड़ितों के लिये कई अस्पताल एवं चिकित्सालय खोले तथा साथ ही कई नये निजी संस्थान भी खोले गये। सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में 70 प्रतिशत से ज़्यादा चिकित्सक कम पढ़े लिखे थे, वे इस रासायनिक आपदा के उपचार के लिये पूर्ण रूप से तैयार नहीं थे। 1988 में चालू हुए भोपाल मेमोरिअल अस्पताल एवं रिसर्च सेन्टर ने 8 वर्षों के लिये ज़िन्दा पीड़ितो को मुफ्त उपचार उपलब्ध कराया जो सुविधा आज भी उनके लिए उपलब्ध है।
पर्यावरण पुनर्वास
1989 में हुई जाँच से यह जानकारी प्राप्त हुई कि कारखानें के समीप का पानी और मिट्टी मछ्लियो के पनपने के लिये हानिकारक है।
आर्थिक पुनर्वास
त्रासदी के 2 दिन के पश्चात ही राज्य सरकार ने राहत का कार्य आरम्भ कर दिया था। जुलाई 1985 में मध्य प्रदेश के वित्त विभाग ने राहत कार्य के लिये लगभग एक करोड़ चालीस लाख डॉलर कि धन राशि लगाने का निर्णय लिया। अक्टूबर 2003 के अन्त तक भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अनुसार 554,894घायल लोगो को व 94390 मृत लोगों के वारिसों को मुआवजे का कुछ अंश दिया गया है।
यूनियन कार्बाइड कारखाने के विरुद्ध प्रभार
दुर्घट्ना के 4 दिन के पश्चात, 7 दिसम्बर 1984 को यु सी सी के अध्य्क्ष और सी ई ओ वारेन एन्डर्सन की गिरफ्तारी हुई परन्तु 6 घन्टे के बाद उन्हे 2900 के मामूली जुर्माने पर मुक्त कर दिया गया।