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क्या है जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की कहानी और क्या है इसकी पृष्टभूमि

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसने पूरे देश को झंकृत करके रख लिया था। 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन हुआ यह नरसंहार समस्त भारतवासियों के लिए युगों तक एक गहरा जख्म दे गया।


"जलियांवाला बाग" भारत के पंजाब राज्य में स्थित अमृतसर का एक ऐसा स्थान है जो भारतीय इतिहास के पन्नों में अंग्रेजी शासन के क्रूर और  दमनकारी नीतियों को उजागर  करता है। निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछारों का चश्मदीद जलियांवाला बाग अंग्रेजी हुकूमत का गढ़ माना जाता है। जलियांवाला बाग हत्याकांड एक ऐसी घटना है जो व्यापक रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक अविस्मरणीय मोड़ माना जाता है इतिहासकारों का मानना है कि जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के बाद भारत पर शासन करने वाली अंग्रेजी हुकूमत की नैतिकता का पतन हो गया। 


क्या है जलियांवाला बाग?


एक जघन्य हत्याकांड का प्रतीक स्थल जलियांवाला बाग, पंजाब राज्य के अमृतसर शहर के स्वर्ण मंदिर के पास एक छोटा सा बगीचा है जो जनरल डायर के हजारों निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इस स्थान पर 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश ऑफिसर ब्रिगेडियर एडवर्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज द्वारा निहत्थे लोगों पर गोली चला दी गई जिसमें बच्चे, बूढ़े, बुजुर्ग, महिलाएं आदि शामिल थीं।


जलियांवाला बाग़ काण्ड की पृष्टभूमि


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के जन समुदाय का अहम योगदान रहा है पंजाब एक ऐसा प्रान्त था जिसने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में समय-समय पर बढ़ चढ़कर भाग लिया। वर्ष 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के अनेक तात्कालिक कारण रहे हैं जिनमें पहला, लेफ्टिनेंट गवर्नर डायर द्वारा पंजाब में निर्मम भर्ती का अनैतिक कारण एक है।

वर्ष 1915 में ग़दर विद्रोह प्रारंभ हो गया विद्रोह के बाद दमनकारी नीतियां देखने को मिली जिससे जनसाधारण में आक्रोश का भाव था।

जनरल डायर द्वारा जिसे इस हत्याकांड का मुख्य सूत्रधार माना जाता है को वर्ष 1913 में पंजाब के लाला हरकिशन लाल के पीपुल्स बैंक की बर्बादी का दोषी माना गया जिसकी भारी कीमत व्यापारियों और आम लोगों को चुकानी पड़ी।

वर्ष 1917 और 1919 के बीच मजदूरी के मानकों में तीव्र गति से गिरावट देखने को मिली जिससे श्रमिक, किसान और मजदूर वर्ग में घोर आर्थिक तंगी का माहौल बना। अमृतसर में चावल की कीमतों में तेजी से वृद्धि देखने को मिली चावल की कीमतें कुल कीमत का 3 गुना कर दी गई जिससे आम जीवन कठिन हो गया व्यापार और उद्योग जगत का धर्मसंकट शुरू हो गया।

1918 में इनफ्लुएंजा और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रकोप तेजी से फैला जिससे मध्यम और निचला वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो गया।

अंग्रेजी दमनकारी नीतियों के विरोध में फरवरी 1919 में रोलेट एक्ट के खिलाफ 30 मार्च से 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया।इस देशव्यापी हड़ताल में सर्वाधिक संख्या अमृतसर, लाहौर, गुजरांवाला और जालंधर शहर के 25 से 30000 लोग तक शामिल हुए। बड़े पैमाने पर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध धरना प्रदर्शन किए गए। पंजाब में तरह-तरह के उत्पीड़न और प्रदर्शन देखने को मिले। शिक्षित लोगों की आवाजें दबाई जाने लगी। राजनीतिक असंतोष अपने चरम पर था। अंग्रेजी हुकूमत सभी उठने वाली आवाजों को क्रूरता से कुचलना चाहती थी जिसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 का नरसंहार के रूप में सामने आया जिसमें लगभग 3600 लोग घायल हुए और 1200 लोगों की जानें चली गई।


जनरल डायर की भूमिका


जनरल डायर यह एक ऐसा नाम है जिसे जलियांवाला बाग हत्याकांड का मुख्य सूत्रधार माना जाता है। 13 अप्रैल 1919 का दिन था वैशाखी के पावन पर्व पर जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। नेता जनसैलाब को संबोधित कर रहे थे अचानक ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंचते हैं जिनके हाथों में भरी हुई राइफल्स थी। जनरल डायर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया जिसमें आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 1000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और लगभग 2000 लोग घायल हो गए।


सरदार उधम सिंह


13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग की शर्मनाक घटना के समय उधमसिंह उस बाग में उपस्थित थे जिसमें उन्हें भी गोली लगी थी। जलियांवाला बाग की निर्मम हत्या को देखकर उन्होंने जनरल डायर से प्रतिशोध लेने का प्रण लिया। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्स्टन हॉल में उधम सिंह ने जनरल डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जिसके परिणाम स्वरूप 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव


भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जलियांवाला बाग हत्याकांड ने राजनीतिक एकता के लिए एक नया आयाम दिया। जलियांवाला बाग हत्याकांड का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे व्यापक प्रभाव देखने को मिला। इतिहासकारों का मानना है कि यह घटना भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस घटना को "ब्रिटिश इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना" कहा था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बावजूद भी आजादी के लिए लोगों का हौसला अभी भी कम नहीं हुआ था आंदोलन और प्रतिघात की ज्वाला और तीव्र होने लगी थी। पूरे देश में स्वाधीनता की लहर तेजी से दौड़ रही थी। आजादी की चाह में बालक से लेकर बूढ़ों ने आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे पर लगा कर संपूर्ण भारत वासियों ने स्वतंत्रता का दृढ़ संकल्प लिया। तरह-तरह के आंदोलन अपने चरम सीमा पर पहुंच गए और अंततः ब्रितानीयों को भारत छोड़ना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र निर्मित हुआ।

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