यह तो हम सभी जानते हैं कि डॉक्टर अब्दुल कलाम काफी संघर्षों के बाद अपने जीवन में सफलता हासिल की थी और उनके इन कड़े संघर्षों की कहानी में उनके माता-पिता जो कि तमिलनाडु के एक शहर रामेश्वरम से तालुकात रखते थे। उनके साथ हमेशा खड़े रहे रामेश्वरम के एक साधारण से परिवार के लड़के ने मिसाइल मैन बनने तक का सफर तय किया और इस सफर की कहानी हम सभी बखूबी जानते हैं। राष्ट्रपति कलाम सादगी, मितव्ययता और ईमानदारी की एक ऐसी मिसाल थी जो कई लोगों के जीवन को आज तक भी रोशन करती रही है। कलाम का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा स्वरूप रहा है। आज हम आपको अब्दुल कलाम के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें जानकर आपको हैरानी तो होगी ही परंतु अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व से भी परिचित होंगे।
अपने राजनीतिक जीवन में लिये बस 2 अवकाश
नेताओं सहित सभी नौकरीपेशा लोग छुट्टियों पर जाने के लिए हमेशा ही तत्पर रहते हैं परंतु यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि अब्दुल कलाम ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ दो बार ही अवकाश लिया था। पहला अवकाश उन्होंने तब लिया था जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी और दूसरी बार तब जब उनके मां का देहांत हुआ था। इस बात से यह पता चलता है कि डॉक्टर अब्दुल कलाम अपने कार्य के प्रति कितने निष्ठावान थे और अपने कार्य को लेकर वे कितने सजग रहते थे।
धर्म के कारण की गई सीट परिवर्तित
डॉक्टर अब्दुल कलाम ने अपने ऑटो बायोग्राफी 'माइ लाइफ' में लिखा है कि एक बार रामेश्वरम के एलिमेंट्री स्कूल में उनकी दोस्ती एक ब्राह्मण छात्र राम नाथा शास्त्री से हुई थी। वे दोनों इतने अच्छे दोस्त थे कि साथ - साथ बैठते, खाते - पीते थे। डॉ कलाम लिखते हैं कि एक बार स्कूल में नए टीचर आए उन्होंने पहने हुए कपड़ों से पहचान लिया कि उन दोनों में एक लड़का ब्राह्मण है तथा एक मुस्लिम। वे इससे बिल्कुल भी खुश नहीं हुए और उन्होंने कलाम को उठाकर दूसरी जगह बैठा दिया। इससे कलाम रो पड़े क्योंकि उनसे उनके बेस्ट फ्रेंड के साथ वाली सीट उनसे छीन ली गई थी और मुसलमान होने का भेदभाव उनके साथ किया गया।
इसके बाद जब उनके पिता को यह बात पता चली तो उन्होंने रामनाथा शास्त्री के पिता के साथ मिलकर विद्यालय में जाकर इसकी चर्चा की तथा उन अध्यापक से बात की। तब जाकर कलाम को उनके दोस्त के साथ बैठने की अनुमति प्राप्त हुई।
किसी का दिया हुआ उपहार नहीं रखा अपने पास
डॉक्टर अब्दुल कलाम देश के ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने कभी भी किसी का भी उपहार या गिफ्ट अपने पास नहीं रखा। एक बार की बात है उन्हें किसी ने दो पेन उपहार स्वरूप दी थी। उन पेन को राष्ट्रपति ने विदा लेते वक्त खुशी - खुशी लौटा दिया क्योंकि उनका कहना था कि उनके पिता ने उन्हें यह चीज सिखाई है कि 'कोई भी उपहार कभी कुबूल मत करो'। इसे हम यह समझ सकते हैं कि कलाम अपने माता-पिता की आज्ञा का निष्ठा से पालन करते थे।
पक्षियों के प्रति दिखाई दयालुता
एक बार जब अब्दुल कलाम डीआरडीओ में काम करते थे तब उनके सुरक्षा भवन का काम कर रहे लोगों ने उन्हें एक सलाह दी थी। उनकी सलाह थी कि दीवार के ऊपर टूटे हुए कांच के टुकड़े लगा दिया जाए ताकि किसी भी तरह के अपराधिक घटना ना घटे। जब अब्दुल कलाम को यह पता चला तो उन्होंने इस बात से तुरंत इनकार कर दिया क्योंकि इससे दीवार पर बैठने वाले सैकड़ों पक्षियों को चोट लगने का खतरा बढ़ जाता, इसलिए उन्होंने सबको ऐसा करने से रोक दिया। इसमें अब्दुल कलाम के दयालु व्यक्तित्व की छवि दिखाई पड़ती है।
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अपने भाषण को इस तरह किया पूरा
एक बार जब डॉक्टर कलाम राष्ट्रपति बनने से पहले एक स्कूल में भाषण देने गए थे तो वहां बिजली कट जाने से उनका माइक बंद हो गया। वहां लगभग 400 विद्यार्थी कलाम का भाषण सुनने के लिए तत्पर थे, परंतु बिजली जाने के कारण उनकी आवाज सभी तक नहीं पहुंच रही थी। इतने पर भी कलाम ने अपने भाषण को नहीं रोका और भीड़ के बीच में जाकर ही अपनी बुलंद आवाज में अपना भाषण देने लगे और इस भाषण को उन्होंने पूरा भी किया।
स्वयं अपने हाथों से लिखा थैंक यू कार्ड
एक बार राष्ट्रपति कलाम को एक व्यक्ति ने उनका ही स्केच बनाकर उन्हें भेजा था। डॉ कलाम ने जब यह देखा तो उन्हें बहुत खुशी हुई और उन्होंने स्वयं अपने हाथों से उस व्यक्ति के लिए एक संदेश लिखा और अपने हस्ताक्षर के साथ-साथ उसे एक धन्यवाद कार्ड भी भेज दिया।
कुर्सी पर नहीं बैठे कलाम
एक बार आईआईटी वाराणसी के दीक्षांत समारोह में कलाम मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित थे। वे उस समारोह में पहुंचे और उन्होंने देखा कि स्टेज पर पांच कुर्सियां रखी हुई हैं। इनमें से बीच वाली कुर्सी डॉक्टर कलाम की है तथा बाकी चार विश्वविद्यालय के अन्य शीर्ष अधिकारियों के लिए रखी गई है। इनमें से बीच वाली कुर्सी थोड़ा ऊंची थी। इसे देखते ही कलाम ने इस कुर्सी पर बैठने से इंकार कर दिया और उन्होंने वहां पर कुलपति को बैठने का आग्रह किया तथा स्वयं को दूसरी कुर्सी में बैठ गए।
बच्चों की प्रार्थना की स्वीकार
एक बार जब कुछ युवाओं ने देश के राष्ट्रपति से मिलने की गुजारिश की तो कलाम ने उन बच्चों को राष्ट्रपति भवन के अपने निजी कक्ष में बुलाया और उन्हें अपना कीमती समय दिया। उनके विचारों को भी सुना और उनसे अपने विचारों को साझा किया तथा बच्चों को विस्तृत जानकारी भी दी।
इसी तरह आईआईएम अहमदाबाद में गए कलाम ने समारोह के बाद कुल 60 बच्चों के साथ खाना खाया। तत्पश्चात बच्चों ने उनके साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा जाहिर की परंतु कार्यक्रम के संयोजक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। इस पर भी कलाम ने स्वयं जाकर उन बच्चों के साथ फोटो खिंचवाई।
स्वयं से चुकाया सारा खर्च
कलाम के राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार उनका पूरा परिवार उनसे मिलने दिल्ली आया था। पूरे परिवार में कुल 50 से 60 लोग थे। जिनमें उनके 90 साल के बड़े भाई से लेकर उनकी डेढ साल की बहुत ही छोटी पर पोती भी शामिल थी। वे लोग वहां 8 दिन तक रुके। उनके आने-जाने से लेकर उनके खाने-पीने तक का सारा खर्चा कलाम ने स्वयं से दिया था। इसके अलावा भी कलाम ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि उनके मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा तथा रिश्तेदारों के खाने-पीने का और रहने का ब्यौरा उन्हें अलग से दिया जाएगा। पूरे परिवार वालों के वापस चले जाने के बाद कलाम द्वारा अपने निजी खाते से ₹3,52, 000 का चैक राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा गया था।