अमीश त्रिपाठी द्वारा रचित 'नागाओं का रहस्य' अमीश त्रिपाठी जी की द्वितीय पुस्तक है इस पुस्तक में 23 पाठ दिए गए हैं।
अमीश त्रिपाठी जी की प्रथम पुस्तक 'मेलूहा' जिसमें शिव भगवान को एक साधारण मनुष्य के रूप में बताया गया है यहां पर दो वंश को दर्शाया गया है पहला सूर्यवंशी व दूसरे चंद्रवंशी। चंद्रवंशी व नागवंशी एक दूसरे के समर्थक हैं इस कहानी में सूर्यवंशी को अच्छा बताया गया है वह चंद्रवंशी बुराई का साथ देते हैं जहाँ सूर्यवंशी शिव के समर्थक हैं।
शिव यहां पर एक साधारण मनुष्य है जो अपने कर्मों से धीरे धीरे सबके मन में बस गये हैं जिससे लोगों ने शिव को देवों का देव महादेव माना है।
अमीश त्रिपाठी जी ने नागाओं के रहस्य को इस तरह से रचा है की यह घटना ऐसे लगती है मानो हमारे सामने हो रही हो 'मेलूहा' और 'नागाओं का रहस्य' दोनों कहानियां अंत: संबंधित हैं।
नागाओं का रहस्य में अमीश त्रिपाठी द्वारा शिव से संबंधित घटनाओं को उकेरा गया है जिसमें एक घटना मिलती है कि 'जब मंदार पर्वत पर नागाओं और चंद्रवंशी लोगों ने आक्रमण किया उस समय सूर्यवंशी व शिव सोमरस का निर्माण कर रहे थे जब यह आक्रमण इन पर होता है इसमें शिव अपने प्रिय मित्र बृहस्पति को खो देते हैं शिव के लिए बृहस्पति अपने सगे भाई के समान हैं बृहस्पति की मृत्यु होने पर शिव के मन में नागाओं के लिए अपार क्रोध और प्रतिशोध की भावना अपना रौद्र रूप ले लेती है।
शिव नागाओं को जड़ से मिटाना चाहते हैं जब शिव नागाओं को ढूंढने निकलते हैं तो कहानी में बेहद संवेदनशील मोड आ जाता है यह घटना होती है ब्रंगा नामक स्थान पर जहां पर स्थानीय लोगों के बच्चे बीमार हो जाते हैं इन बच्चों की हालत ऐसे लगती है मानो जैसे कोई बुरी ताकत उन्हें अंदर से निचोड़ रही हो।
ऐसे में वह स्थानीय निवासी मोर पक्षी के खून से बच्चों का इलाज करते हैं जिसमें मोर पक्षी का धड़ अलग और गर्दन अलग दहलीज पर पड़ी होती है शिव यह दृश्य देखकर असमंजस की स्थिति में पड़ जाते हैं कि इतने में ही उन पर हमला हो जाता है।
शिव पर हमला देख सूर्यवंशी स्थानीय लोगों पर हमला बोल देते हैं परंतु किसी भी स्थानीय निवासी के प्राण नहीं लेते क्योंकि शिव ने ही सूर्यवंशीयों को कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए किसी के प्राण लेने का हक हमें नहीं तो सूर्यवंशी सभी लोगों को घायल करते हैं पर प्राण नहीं लेते ।
जब शिव उस प्रहार से बाहर निकलते हैं तो वह स्थानीय लोगों को विश्वास दिलाते हैं उनके बच्चे जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे परंतु जब शिव को पता चलता है कि बच्चों को स्वस्थ करने के लिए औषधि नागाओं के पास तो शिव दृढ़ निश्चय होकर स्थानीय निवासियों को विश्वास जीत जाते हैं, विश्वास जीतने पर शिव मन ही मन में उस विश्वास को हकीकत में बदलने की ठान लेते हैं और नागाओं से प्रतिशोध के लिए निकल पड़ते हैं नागाओं के रहस्य में नागाओं से शिव का संघर्ष वर्णित है।
इस कहानी को इस तरह से रचा गया है जिससे आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे संपूर्ण कहानी में दिखाया गया है कि किस प्रकार से मित्र -शत्रु और शत्रु- मित्र बन जाते हैं इसमें एक हतप्रभ करने वाली घटना है नजर आती है जिसमें एक मनुष्य अपने ही मां की गर्दन को काट देता है। यह घटना क्यों हुई इसके पीछे का क्या कारण है ? इसका रहस्य नागाओं के रहस्य को पढ़ने से ही पता चलेगा।
मेलूहा में जब चंद्रवंशी और नागा मिलकर शिव व उनके के सूर्यवंशी मित्रों पर आक्रमण करते हैं तो इस युद्ध में शिव के प्रिय मित्र बृहस्पति की मृत्यु हो जाती है पर नागाओं की रहस्य में के अंतिम अध्याय में बृहस्पति को जीवित दिखाया गया है इसका रहस्य क्या है यह रहस्य वायु पुत्रों की शपथ से पता चलेगा।