भारतीय राजनीति में एक ऐसा व्यक्ति जिन्होंने पत्रकारिता से कवि और कवि से राजनेता तक का सफर तय किया है। कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण ही तीन बार दिल्ली की गद्दी पर विराजमान हुए। प्रखर वक्ता व राजनेता, भारत के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में एक सामान्य से परिवार में हुआ। कुशल राजनेता के कारण ही वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यरत रहे थे। सन 1996 में पहली बार मात्र 13 दिनों का प्रधानमंत्री कार्यकाल, 13 महीने का दूसरा कार्यकाल तथा 1999 में उन्होंने अपना 5 वर्ष तक प्रधानमंत्री के तौर पर तीसरा कार्यकाल पूरा किया। बचपन से ही वे आरएसएस से जुड़ गए और वहीं से देश के प्रति कुछ करने की प्रेरणा भी मिली। इसके बाद पत्रकारिता और तत्पश्चात राजनेता बन गए। आज हम अपने इस लेख में आपके लिए वाजपेई जी के कुछ अनमोल विचार और कोट्स लेकर आए हैं जो आपके जीवन को प्रेरित करेंगे।
-अगर परमात्मा भी आ जाए और कहे कि छुआछूत मानो, तो मैं ऐसे परमात्मा को भी मानने को तैयार नहीं हूं किंतु परमात्मा ऐसा कह ही नही सकता।
-छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
-मेरे पास ना दादा की दौलत है और ना बाप की। मेरे पास मेरी मां का आशीर्वाद है।
-मन हारकर कभी मैदान नहीं जीते जाते।
-मनुष्य को चाहिए कि वह परिस्थितियों से लड़ें, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढे।
-अपना जीवन एक कला है, एक विज्ञान है। इन दोनों में समन्वय आवश्यक है।
-हमें जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।
-भारत, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ एक राष्ट्र है, अनेक राष्ट्रीयताओ का समूह नहीं।
-सूर्य एक सत्य है जिसे झूठलाया नहीं जा सकता लेकिन ओंस की बूंद भी तो एक सच्चाई है, यह बात अलग है कि यह क्षणिक है।
-मुझे अपने हिंदुत्व पर अभिमान है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मैं मुस्लिम विरोधी हूं।
-लोकतंत्र एक ऐसी जगह है जहां दो मूर्ख मिलकर एक ताकतवर इंसान को हरा देते हैं।
-दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम, झुक नहीं सकते।
-निराशा की अमावस के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ तनिक ऊंचा उठाकर देखें।
-आज मानव और मानव के बीच में जो भेद की दीवार खड़ी है उसे हटाना होगा, इसके लिए राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है।
-हमारे परमाणु हथियार विशुद्ध रूप से किसी विरोधी के परमाणु हमले को हतोत्साहित करने के लिए हैं।
-सेवा कार्यों की उम्मीद सरकार से नहीं की जा सकती, उसके लिए समाजसेवी संस्थाओं को ही आगे बढ़ना पड़ेगा।
-आदमी की पहचान उसके धन या पद से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर तो कुबेर की संपदा भी रोती है।
-मैं मरने से नहीं डरता हूं बल्कि बदनामी होने से डरता हूं।