Swachh Bharat Samridh Bharat
पुस्तक समीक्षा

भारतीय दर्शन के अनुसार स्वच्छता | Swachh Bharat Samridh Bharat

गंदगी और प्रदूषण के आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर अनेक योजनाएं व स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम चलाए जाते हैं प्रत्येक मानव के भीतर स्वच्छ रहने और स्वच्छता का भाव जगाने के लिए लेखक पंकज के सिंह द्वारा एक पुस्तक "स्वच्छ भारत समृद्ध भारत" की रचना की। आइए जानते हैं क्या लिखा है "स्वच्छ भारत समृद्ध भारत "पुस्तक में। Swachh Bharat Samridh Bharat 


लेखक पंकज सिंह ने "स्वच्छ भारत समृद्ध भारत" पुस्तक के माध्यम से भारत की सवा सौ करोड़ जनता को एक संकल्प लेने की बात कही है यह संकल्प है कि हमें गंदगी और आतंकवाद के कहर से निपटकर एक स्वच्छ और समृद्ध भारत का निर्माण करना है यदि यदि ऐसा न हुआ तो यह समस्या संपूर्ण जनमानस को निगल जाएगी इसलिए लेखक भारतीय दर्शन में स्वच्छता के आदर्शों को पाठकों तक पहुंचाने का श्रम साध्य कार्य करता है।


शोचात स्वांग जुगुप्सा परे असंसर्ग


परंपरा एवं ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति  में मन और अंतःकरण की शुद्धि को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। "स्वच्छ भारत समृद्ध भारत" में पंकज सिंह द्वारा लिखा गया है कि हमारे आध्यात्मिक ग्रंथ और प्रवचनों में निरंतर यह कहा गया है कि प्रत्येक मानव को मन की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए काश ...! प्रत्येक मानव में इस कथन पर अमल किया होता तो निश्चित ही इसका लाभ भारतीय समाज और राष्ट्र को आज अवश्य मिलता।


पुस्तक में लेखक द्वारा कुछ ऐसे पहलुओं की तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा गया है कि खराब और दयनीय सेंनिटेशन की वजह से भारत में कुल जीडीपी का 6.4 प्रतिशत हिस्सा व्यर्थ चला जाता है इसलिए लेखक चाहता है कि जनता की भागीदारी, पंचायतों की भूमिका एक कदम स्वच्छता और समृद्ध भारत बनाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।  लेखक आदिकाल से चली आ रही ऐतिहासिक गलती को सुधारते हुए अपनी सोच बदलने की बात करते हैं।  लेखक का मानना है कि प्राचीन काल से चली आ रही वैज्ञानिक वर्ण व्यवस्था और जाति आधारित जटिल सामाजिक संरचना ने हमें स्वच्छता के महत्वपूर्ण मुद्दों से अलग कर दिया है ।लेखक कहता है कि वास्तव में अब समय आ गया है कि हम इस बात को जान लें कि समाज में सफाई करना किसी वर्ग विशेष का कार्य नहीं अपितु हर वर्ग का उत्तरदायित्व होना चाहिए। हमारी यह मानवीय और सामंती सोच देश को पछाड़ रही है जाति व्यवस्था पर हमला किए बिना हम गरिमा पूर्ण समाज और स्वच्छ एवं समृद्ध भारत के संकल्पना को पूरा नहीं कर सकते।




पंकज के सिंह एक ऐसे लेखक थे जिन्हें भारत की स्वच्छता जागरूकता को लेकर ही चिंतित नहीं वरन वे वैश्विक पर्यावरण संकट पर भी अपने विचारों का विस्तार करते हैं उनका कहना है कि पर्यावरण को हो रही छति भूमि ,जल ,जंगल ,जीवो के लिए मानव जिम्मेदार है। इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए वे लिखते हैं कि भूमि और जल में रहने वाले जीवो की संख्या में 39% की कमी आई है। विश्व के अनेक जीव खतरे में है और साथ ही उनका कहना है कि 2020 तक 14 द्वीप पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे इसलिए पर्यावरण संरक्षण एक वैश्विक उत्तरदायित्व है और हर मानव को मिलकर इसका संरक्षण करना चाहिए।

लेखक पर्यावरण की दुर्दशा का मुख्य कारण विकसित/ विकासशील देश अमीरी ,गरीबी नेता और जनता पर लगाते हैं । लेखक का मानना है कि वर्तमान औद्योगिक और कृषि संबंधी अनियोजित कार्य अधिकांशत पर्यावरण के प्रति नासमझी और अदूरदर्शिता का नतीजा है इसके समाधान में लेखक कहता है कि सार्वजनिक परिवहन को बेहतर एवं सुव्यवस्थित जाल को बिछाए बिना सड़कों पर दौड़ रहे अनावश्यक निजी वाहनों की संख्या को कम नहीं किया जा सकता ।


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वर्तमान में गंगा स्वच्छता अभियान स्वछता व भारतीय समाज का अहम मुद्दा बना हुआ है। गंगा को साफ करने का मुद्दा वर्षों से चला आ रहा है लेकिन क्या भारत सरकार के पास गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों और इकाइयों की सूची है.. नहीं। इसलिए लेखक सरकार को आगाज करते हुए पर्यावरण विरोधी और राष्ट्र का अहित करने वाले उद्योगों के साथ किसी भी प्रकार की दुरभिसंधि करने की आवश्यकता नहीं है।


लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से स्वच्छ भारत समृद्ध भारत की संकल्पना को जमीनी हकीकत में उतारने की कोशिश की है इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए हम सबका उत्तरदायित्व है कि हम पर्यावरण व गंगा संरक्षण की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाकर इसे प्रदूषण मुक्त करें।

पुस्तक: स्वच्छ भारत समृद्ध भारत

लेखक: पंकज के सिंह 

प्रकाशक: डायमंड बुक्स 




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