Biography of J.Krishnamurti
एजुकेशन

जे कृष्णमूर्ति जी की जीवनी और क्या था उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य

व्यक्ति की मानसिक क्रांति, मस्तिष्क की प्रवृत्ति और समाज में उसका सकारात्मक परिवर्तन कैसे लाया जाए; इन सभी विषयों पर गहन अध्ययन व चिंतन करने वाले जिधू कृष्णमूर्ति सदा इस बात पर बल देते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक क्रांति की आवश्यकता है और उनका यह मानना था कि इस तरह की क्रांति के किन्हीं वाह्य कारक से संभव नहीं है फिर चाहे वह राजनीतिक या सामाजिक हो या धार्मिक हो। कृष्णमूर्ति पर यदि किसी चीज का गहरा प्रभाव पड़ा तो वह है 'प्रकृति'। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौंदर्य से परिचित हो और उसे नष्ट करने से बचें। आध्यात्मिक व दार्शनिक के साथ ही वे प्रकृतिवाद के भी समर्थक रहे और शिक्षा को भी प्रकृति से संबंधित करना चाहते थे। वे कहा करते थे कि शिक्षा सिर्फ पुस्तकों से सीखना और तथ्यों को कंठस्थ करना मात्र नहीं है।


उनका मानना था कि शिक्षा का अर्थ है कि हम इस योग्य बने कि पक्षियों के चाहचाहट को सुन सकें, आकाश को देख सकें, वृक्ष तथा पहाड़ियों के साथ प्रकृति का अनुपम सौंदर्य का भली-भांति अवलोकन कर सकें। जे. कृष्णमूर्ति भारतीय शिक्षा दर्शन के एक चित‌ परिचित व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कई दार्शनिक व शैक्षिक विचारों से भारतीय शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन किए।


जन्म 


भारत के दक्षिण राज्य आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के मदनापल्ली नामक स्थान पर महान शिक्षाविद जे. कृष्णमूर्ति ने 11 मई 1895 को एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया। इनकी माता का नाम संजीवम्मा तथा पिता का नाम जे. नारायनीय था, इनके पिता सेवानिवृत्त कर्मचारी के साथ ही थियोसॉफिस्ट भी थे। भगवान श्री कृष्ण का वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में जन्म लेने और जे. कृष्णमूर्ति का भी अपने माता-पिता की आठवीं संतान के रूप में जन्म लेने के कारण कृष्णमूर्ति मिला। 


जीवनी 


एक ब्राह्मण परिवार के घर जन्मे कृष्णमूर्ति के अंदर आध्यात्मिक भाव के विचारों का भी जन्म हुआ। उनके पिता एक पुराने थियोसॉफिस्ट थे। जब कृष्णमूर्ति 10 वर्ष के थे तो उनकी माता जी का देहावसान हो गया। इनके पिता अपने पुत्रों समेत श्रीमती एनी बेसेंट के आमंत्रण पर 1908 में मद्रास के उड़यार नामक स्थान पर स्थित थियोसॉफिकल सोसायटी के परिसर में जाकर रहने लगे। बाल्यकाल से ही बालक कृष्णमूर्ति आध्यात्मिकता के धनी हो गए थे, उनकी आध्यात्मिकता को देख कर ही उस समय के प्रमुख थियोसॉफिस्ट सीडब्ल्यू लीड बीटर और श्रीमती एनी बेसेंट ने यह मान लिया था कि यह बालक एक महान आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में विश्व‌ का मार्गदर्शन कर सकता है।

थियोसॉफिकल सोसायटी में रहने के दौरान सी डब्ल्यू लीड बीटर ने, जो दिव्य दृष्टि वाले व्यक्ति थे उन्होंने बालक कृष्णमूर्ति में देखा कि कुछ बात तो है जो उन्हें सबसे अलग करती है। तब कृष्णमूर्ति मात्र 13 वर्ष के थे, थियोसोफिकल सोसायटी के सिद्धों ने अपने शिष्यों को निर्देश दे रखा था कि वे हर बच्चे पर अपनी दृष्टि बनाए रखें क्योंकि उन्हें पूर्वाभास हुआ था कि दुनिया में कोई महापुरुष अवतरित होगा। सभी को प्रतीत होने लगा कि कृष्णमूर्ति ही वह बालक है। इसी दौरान एनी बेसेंट ने उन्हें मुक्तिदाता के रूप में चुना और उनके लिए 'ऑर्डर ऑफ द स्टार' की स्थापना कर दी।

एनी बेसेंट चाहती थी कि कृष्णमूर्ति में वे संभावनाएं हैं जिससे  बुद्ध की चेतना उन पर उतर कर कार्य करें लेकिन कृष्णमूर्ति ने होलैंड स्थित एक कैंप में दुनिया भर के लोगों के सामने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि "सच तो एक अनजान पथ है कोई भी संस्था, कोई भी मत सच तक रहनुमाई नहीं कर सकता।" 


जनवरी 1911 में उड़यार में जे. कृष्णमूर्ति की अध्यक्षता में 'ऑर्डर ऑफ द स्टार इन द ईस्ट' की स्थापना हुई। 1920 में वे पेरिस गए जहां उन्होंने फ्रेंच भाषा में दक्षता हासिल की। 3 अगस्त 1929 को श्रीमती एनी बेसेंट और 3000 से अधिक सदस्यों की उपस्थिति में कृष्णमूर्ति ने 18 वर्ष पूर्व संगठन 'ऑर्डर ऑफ द स्टेट इन द ईस्ट' को भंग कर दिया। कृष्णमूर्ति के विचारों का जन्म को उसी तरह माना जाता है जिस तरह एटम बम का आविष्कार के होने को। बुद्धिजीवियों के लिए कृष्णमूर्ति रहस्यमय व्यक्ति तो थे ही इसके साथ ही उनके कारण विश्व में जो बौद्धिक विस्फोट हुआ उसने अनेको विचारको, साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों को अपनी जद में ले लिया। जे. कृष्णमूर्ति से धर्म और दर्शन का अंत होता है। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है यथार्थवादी और स्पष्ट मार्ग पर चलना।


कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार 


कृष्णमूर्ति की शिक्षा जो उनके गहरे ध्यान, सही ज्ञान और श्रेष्ठ व्यवहार की उपज है। उन्होंने विश्व के तमाम दार्शनिकों धार्मिकों और मनोवैज्ञानिकों को प्रभावित किया। कृष्णमूर्ति के विचारों के जन्म को उसी तरह मारा जाता है जिस तरह के परमाणु बम का आविष्कार को। आध्यात्मिक और बौद्धिक विचारों के साथ ही कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचारों को पथ प्रदर्शक माना गया, शिक्षा के प्रति उनके विचार कुछ इस प्रकार थे।


- वर्तमान शिक्षा विभिन्न उपाधियों को प्राप्त करने के लिए ही प्रेरित करती है जिसका मुख्य उद्देश्य व्यवसाय मात्र प्राप्त करना,  ऊंची सेवाओं (नौकरी) को प्राप्त करना और सत्ता हथियाने का प्रयास करना है।


- वर्तमान शिक्षा व्यक्ति के अंदर प्रतियोगिता की भावना को जन्म देती है। यह प्रतियोगिता समाज के कमजोर वर्ग का शोषण करती है और अनेक बुराइयों को जन्म देती है।


- वर्तमान शिक्षा भय पर आधारित है जीवन का हर पल भय की छाया में रहता है और भयभीत व्यक्ति में मेधा का अभाव होता है।


कृष्णमूर्ति के दार्शनिक विचार 


एक दार्शनिक विचार के व्यक्ति कृष्णमूर्ति ने दर्शन के हर पक्ष का बखूबी अवलोकन किया। उनके जीवन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ा, वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौंदर्य को पहचाने और उसे नष्ट ना करें। वे कहा करते थे कि शिक्षा पुस्तक मात्र से ही नहीं सीखी जाती बल्कि प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का दर्शन करके भी अवलोकन कर सकता है। कृष्णमूर्ति के दार्शनिक विचार निम्न हैं।


1. दर्शन 


कृष्णमूर्ति के अनुपम दर्शन वह है जो हमें साथ के लिए प्रेम, जीवन के लिए प्रेम तथा प्रज्ञा के लिए प्रेम जागृत करता है। उनका यह मानना था कि शिक्षा संस्थानों से हमें जो कुछ सिखाया जाता है वह विचारों एवं सिद्धांतों की मात्र व्याख्या है जिसमें सत्य के वास्तविक स्वरूप को देखने की क्षमता समाप्त हो जाती है।


2. सत्य 


इनके अनुसार सत्य एक पथहीन भूमि है सत्य तक पहुंचने के लिए कोई राजमार्ग नहीं है बल्कि सत्य तो स्वयं के भीतर छुपा हुआ है।


3. दुख और दुख का भोग 


दुःख जो कि हर व्यक्ति के जीवन का एक हिस्सा है। कष्ट शरीर से संबंधित है जबकि दुख मानसिक पीड़ा है। शारीरिक पीड़ा का अंत तो औषधि के सेवन से हो सकता है परंतु मानसिक पीड़ा को दूर या समाप्त करने के लिए व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक स्थितियों से परिचित होना होगा। भूत और भविष्य की स्मृति दुख का कारण होती है।


4. भय 


मानव जीवन की सबसे गंभीर बीमारी है भय; यह मानना है जे. कृष्णमूर्ति का। भय मानव जीवन को गहराई से प्रभावित करता है। मानव जीवन में भय का कारण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले प्रतियोगिता और जीवन में आने वाली अनिश्चितताएं। उनके अनुसार आत्म ज्ञान होने पर ही भय से मुक्ति मिल सकती है।


5. मृत्यु 


वे कहा करते थे कि इस मृत्यु से भयभीत है और हमें यह भी पता नहीं कि जीने का अर्थ क्या है। उनका मानना था कि मृत्यु दो प्रकार की होती है; शरीर की मृत्यु और मन की मृत्यु। शरीर की मृत्यु जहां एक अनिवार्य घटना है तो वही मन की मृत्यु वास्तविक मृत्यु है।


कृष्णमूर्ति के प्रेरणादायक विचार 


शैक्षिक व दार्शनिक विचारों के साथ ही वे व्यक्ति के जीवन के लिए प्रेरणादायक विचार भी कहा करते थे।


1. मानव बनने की शर्त 


उनका मानना था कि आपने जो कुछ भी परंपरा, देश और काल से जाना है उस से मुक्त होकर ही आप सच्चे अर्थों में मानव बन पाएंगे। मनुष्य में सबसे पहले मनुष्य होने की प्रवृत्ति होनी चाहिए लेकिन आज का मानव हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, अमेरिकी अरबी या चाइनी है।


2. स्वतंत्र सोच 


जीवन का परिवर्तन सिर्फ इसी बात में निहित है कि आप स्वतंत्र रूप से सोचते हैं कि नहीं और आप अपनी सोच पर ध्यान देते या नहीं।


3. सच तुम्हारे भीतर 


कृष्णमूर्ति ने ऑर्डर ऑफ द स्टार को भांग करते हुए कहा कि अब से कृपा करके याद रखें कि मेरा कोई शिष्य नहीं है क्योंकि गुरु तो सच को दबाते हैं सच तो स्वयं तुम्हारे भीतर है। सच की तलाश के लिए मानव का सभी बंधनों से मुक्त होना आवश्यक है।


4. प्रवचन एक तरफा विचारा 


कृष्णमूर्ति कहते थे कि ज्ञान के लिए संवादपूर्ण बातचीत हो बहस नहीं, प्रवचन नहीं। बातचीत प्रश्नों के समाधान को ढूंढती हैं, बहस नए सवाल खड़े करती हैं और प्रवचन एक तरफा विचार है।


5. ईश्वर को मनुष्य ने बनाया 


उनका मानना था कि ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बल्कि ईश्वर का जन्मदाता तो खुद मनुष्य है। मनुष्य ने ईश्वर का आविष्कार अपने फायदे के लिए किया है।


कृष्णमूर्ति की रचनाएं 


जे. कृष्णमूर्ति एक ऐसे दार्शनिक जिन्होंने आत्मज्ञान पर विशेष बल दिया। हिंदी भाषा में उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएं भी शामिल हैं। कुछ प्रसिद्ध रचनाएं यह हैं 


शिक्षा और संवाद

ध्यान

प्रेम

सीखने की कला

शिक्षा केंद्रों के नाम पत्र

विज्ञान और सृजनशीलता

स्कूलों के नाम पत्र

ध्यान में मन 


मृत्यु 


भारतीय शिक्षा प्रणाली के महान मार्गदर्शक, दर्शनिक पथप्रदर्शक, आध्यात्मिकता के धनी; जिन्होंने आत्मज्ञान को विशेष प्रकार से अवलोकन किया। ऐसे महान व्यक्ति जे. कृष्णमूर्ति का 14 फरवरी 1986 को अपने जीवन के 91वें वर्ष के दौरान अमेरिका में देहावसान हो गया।

कृष्णमूर्ति ने देह जरूर त्यागा हो लेकिन उनके विचार, दर्शन और आध्यात्मिकता आज भी भारत और विश्व भर की पुस्तकों में समाहित है।

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