"तुम मुझे खून
दो, मैं तुम्हें
आजादी दूंगा "।
"जय हिंद"। "दिल्ली चलो"।
उपरोक्त नारे सुभाष चंद्र बोस जी ने दिए हैं सुभाष चंद्र बोस जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने देश की सीमाओं से बाहर जाकर शत्रु के शत्रुओं से मित्रता की और युद्ध भूमि में लड़कर आजादी पाने का संकल्प प्रदर्शित किया आइए जानते हैं महापुरुष सुभाष चंद्र बोस जी के जीवन की सफलता और असफलता ओं के बारे में।
सुभाष चंद्र बोस जी का बाल्यकाल (Subhash Chandra Bose Childhood)
सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक उड़ीसा में हुआ था इनके पिता जी का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती था सुभाष का परिवार मध्यमवर्गीय परिवार था इनके पिता सरकारी वकील थे वही माता-पिता दोनों धार्मिक संस्कारों के व्यक्ति थे सुभाष के 14 भाई बहन थे जिनमें वह अपने माता-पिता की नौवीं संतान थे सुभाष के पूर्वज बंगाल के मुस्लिम शासकों के यहां उच्च पदों पर नियुक्त थे।
सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा दीक्षा (Subhash Chandra Bose Education)
सुभाष के जन्म के समय भारतीय समाज तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था बंगाल पर अंग्रेजों का शासन स्थापित होने के बाद अनेक समाज सुधारक और लोग नेता सामने आए इनमें सबसे प्रमुख थे राजा राममोहन राय, देवेंद्र नाथ टैगोर, केशव चंद्र सेन, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, रामकृष्ण परमहंस ,स्वामी विवेकानंद ,अरविंद घोष ,बंकिम चंद्र चटर्जी आदि। सुभाष की प्रारंभिक शिक्षा कटक के एक मिशनरी स्कूल में हुई स्कूल में 1902 से तक पढ़े 1909 में उन्होंने कटक के रहबर निशा कॉलेज में दाखिल लिया कॉलेज की प्रधान अध्यापक बाबू बेनी माधव दास के सौम्य व्यक्तित्व का प्रभाव सुभाष के व्यक्तित्व पर पड़ा इस काल में ही सुभाष का स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की रचनाओं से परिचय हुआ जिन्होंने उनके जीवन पर स्थाई छाप छोड़ी सुभाष ने रामकृष्ण और विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रभावित होकर योग मार्ग पर चलने की कोशिश की लेकिन इसमें उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली सुभाष ने अध्यात्मिक साधना के लिए गुरु को खोजने का प्रयास किया इसमें भी वे सफल ना हो सके मार्च 1913 में सुभाष चंद्र बोस ने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की और सारे विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान को प्राप्त किया सुभाष चंद्र बोस ने कोलकाता में प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया यहां भी छात्र नेता बन गए।
सन् 1915 में सुभाष ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की बीए में उन्होंने दर्शनशास्त्र का विषय चुना जनवरी 1916 में उनका अपने कॉलेज में एक अंग्रेज अध्यापक से झगड़ा हो गया और यहीं से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया 1917 में उन्हें कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला मिला 1919 में उन्होंने b.a. परीक्षा पास की इसके बाद उनके पिता ने इन्हें आईसीएस की परीक्षा पास करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया इंग्लैंड में रहते हुए सुभाष में उस समय के मूर्धन्य भारतीय नेता देशबंधु चितरंजन दास से पत्र व्यवहार किया देशबंधु ने सुभाष को आश्वासन दिया कि जब भी सुभाष भारत लौटेंगे उनके पास काम की कमी नहीं रहेगी । जुलाई 1916 में सुभाष भारत वापस लौट आए।
सुभाष चंद्र बोस जी का राजनीति में प्रवेश (Subhash Chandra Bose Enters in Politics)
सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड में आईसीएस से इस्तीफा देने के बाद 16 जुलाई 1921 को मुंबई पहुंचे उन्होंने इसी दिन गांधी जी से भेंट की इस भेंट का उनके ऊपर अनुकूल असर नहीं पड़ा सुभाष चंद्र बोस ने कुछ दिनों बाद कलकत्ते में देशबंधु चितरंजन दास से भेंट की और उनके अनुयायी बन गए । देशबंधु ने सुभाष को नेशनल कॉलेज का प्रिंसिपल व राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल का कप्तान और बंगलार कथा नामक बंगाली साप्ताहिक का संपादक बनाया।
सुभाष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी में विधिवत सम्मिलित हुए और उसका प्रचार कार्य करने लगे सीकरी उनका बंगाल तथा देश के विभिन्न कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हो गया सुभाष ने नेशनल कॉलेज में प्रिंसिपल का पद पूरी जिम्मेदारी से निभाया सुभाष चंद्र बोस का बंगाली पत्र आत्मशक्ति और अंग्रेज दैनिक फॉरवर्ड से भी निकट संबंध रहा।
17 नवंबर 1921 को प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आए सारे देश में उनकी यात्रा का बहिष्कार हुआ कोलकाता में प्रिंस की भारत यात्रा के विरोध में सुभाष उसने हड़ताल का आयोजन किया इस हड़ताल के बाद सरकार ने अपने दमन चक्र में तेजी की 10 दिसंबर 1921 को सुभाष चंद्र बोस व देशबंधु दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया । सुभाष चंद्र बोस की गिरफ्तारी पर उनके पिता जानकीनाथ बोस को उन पर गर्व हुआ ,सुभाष चंद्र बोस 1921 से 1922 में 8 महीने जेल में देशबंधु के साथ रहे इस बीच दोनों को एक दूसरे को जानने का अवसर मिला।
जनवरी 1922 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने कांग्रेस तथा सरकार के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव किया सरकार ने भारतीय समस्या को सुलझाने के लिए एक गोलमेज परिषद का सुझाव रखा देशबंधु इस समय जेल में थे वे सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के पक्ष में थे लेकिन गांधीजी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। सुभाष चंद्र बोस जी ने ही सर्वप्रथम महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर पुकारा था।
स्वराज दल की राजनीति (Formation of Swaraj Dal)
असहयोग आंदोलन का अंत होने के बाद भारतीय राजनीति में निष्क्रियता आ गई इस काल में कांग्रेस अधिकतर रचनात्मक कार्य में लगे रहे सितंबर 1923 में सुभाष अखिल भारतीय युवक कांग्रेस सम्मेलन की स्वागत समिति के अध्यक्ष बने इन्हीं दिनों बंगाल के कई जिलों में बाढ़ आ गई सुभाष चंद्र ने बाढ़ पीड़ित लोगों की सहायता की देशबंधु चितरंजन दास का विचार था कांग्रेसियों को चुनाव में भाग लेकर विधान मंडलों के भीतर प्रवेश करना चाहिए और वहां सरकार के प्रति असहयोग की नीति अपनानी चाहिए ।
कांग्रेस का नया अधिवेशन 1922 में हुआ देशबंधु इसके अध्यक्ष थे कांग्रेस अधिवेशन के अंतिम दिन कौन से प्रवेश के प्रश्न पर मतदान हुआ मतदान में स्वराज वादी हार गए इस पर देशबंधु और पंडित मोतीलाल नेहरु ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और स्वराज दल के गठन की घोषणा की इस दल के अध्यक्ष निर्वाचित हुए सुभाष चंद्र बोस विशेष विश्वासपात्र थे सुभाष बोस बंगलार कथा में महत्वपूर्ण काम किया 1920 -1930 में भारतीय राजनीति में साम्या विचारधारा का विकास हुआ।
1923 में सुभाष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए अब अपनी संगठन क्षमता और वक्तृत्व कला के बल पर अखिल भारतीय नेता के रूप में उभरने लगे सुभाष चंद्र बोस ने नगर निगम में कर्मचारियों तथा जनता के लाभ के लिए अनेक कार्यक्रम लागू किए 24 अक्टूबर 1924 को सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया उन पर बिना मुकदमा चलाए अनिश्चितकाल के लिए जेल में डाल दिया गया।।
स्त्रियों के अधिकार के लिए सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose on the Right of Women)
सुभाष चंद्र बोस स्त्रियों के अधिकार को भी समर्थन देते थे वे चाहते थे कि स्त्रियां पुरुषों के समान ही जीवन के हर क्षेत्र में आगे आएं सुभाष बोस की प्रेरणा में महिला राष्ट्रीय संघ की स्थापना हुई कोलकाता कांग्रेस के अवसर पर स्त्रियों की एक पृथक डिवीजन तैयार की गई जिसकी प्रधान कर्नल लतिका घोष थी।
सुभाष चंद्र बोस जी के जीवन का महत्वपूर्ण काल (Important Life Period of Subhash Chandra Bose)
1927 से 1932 तक का सुभाष चंद्र बोस जी के जीवन में महत्वपूर्ण का रहा इसमें सुभाष चंद्र बोस जी ने 23 अगस्त 1927 को बंगाल विधान मंडल में निर्वाचित सदस्य की हैसियत से प्रवेश किया इनका विधानमंडल की कार्यवाही में ज्यादा मन नहीं लगता था इसलिए उन्होंने प्रश्नकाल में विशेष रूचि ली नवंबर 1927 में सुभाष चंद्र बोस बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए 1928 में सुभाष चंद्र बोस ने बंगाल की कई महत्वपूर्ण हड़ताल में भाग लिया उन्होंने प्राया मालिकों और मजदूरों के बीच समझौता करने का प्रयास किया सन 1928 में भारत में साइमन कमीशन आया जिसका बंगाल से सुभाष चंद्र बोस जी ने खूब विरोध किया दिसंबर 1928 में कोलकाता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ अधिवेशन के अध्यक्ष पंडित मोतीलाल नेहरु थे अधिवेशन का संगठन सुभाष चंद्र बोस ने किया अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वाधीनता की मांग की लेकिन इनका यह प्रस्ताव स्वीकृत हो गया इसी समय सुभाष चंद्र बोस जी को कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बना लिया गया।
गांधी जी ने 1929 में लाहौर कांग्रेसमें पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पेश किया जिसमें सुभाष चंद्र बोस जी ने गांधीजी के प्रस्ताव पर एक संशोधन पेश किया कांग्रेस देश में समानता सरकार स्थापित करें सुभाष चंद्र बोस का प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया और महात्मा गांधी जी के आग्रह पर 1930 में नई कांग्रेस कार्यसमिति में सुभाष चंद्र बोस जी को नहीं रखा गया गांधीजी की नजरों में सुभाष चंद्र बोस एक बिगड़ैल व्यक्ति थे इनके बीच विचारों का द्वंद तो रहता था पर कोई मनमुटाव नहीं था।
22 अगस्त 1930 को सुभाष चंद्र बोस जी को कोलकाता नगर निगम का मेयर चुन लिया गया इस समय में भी सुभाष चंद्र बोस जी जेल में थे कुछ दिन रिहा होने के पश्चात जनवरी 1931 सुभाष चंद्र बोस जी को 6 महीने का कारावास दंड दिया गया अर्थात फिर से यह गिरफ्तार कर लिए गए जेल में सुभाष का स्वास्थ्य बिगड़ गया और सरकार ने इन्हें इलाज के लिए यूरोप जाने की अनुमति दे दी।
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स्वतंत्रता के राजदूत सुभाष चंद्र बोस (Indian Freedom Fighter Subhash Chandra Bose)
सुभाष चंद्र बोस यह मानते थे कि भारत से बाहर हर भारतीय भारत का गैर सरकारी राजदूत है वह 1933 से 1938 तक यूरोप में रहे इस अवधि में उन्होंने यूरोप के विभिन्न देशों में भारत के बारे में प्रचार किया सुभाष ने यूरोप में वियना को अपना मुख्यालय बनाया स्विट्जरलैंड में सुभाष चंद्र बोस की केंद्रीय विधानसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल से भेंट हुई जो स्वास्थ्य लाभ के लिए वहां गए हुए थे विट्ठल भाई पटेल ने सुभाष चंद्र बोस का यूरोप के अनेक राजनीतिक जो तथा भारतीय समर्थकों से परिचय कराया।
सुभाष ने जर्मनी की कई बार यात्रा की लेकिन वह नाजी सरकार के किसी प्रमुख अधिकारी से नहीं मिल सके यद्यपि सुभाष को नाजि सरकारी की बहुत सी बातें पसंद नहीं थी लेकिन उनका विचार था कि जर्मनी इंग्लैंड का शत्रु है और यह भविष्य में भारत के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है इसलिए उन्होंने राज्य सरकार के प्रति विरोध का दृष्टिकोण नहीं अपनाया 1934 में अपनी पुस्तक इंडियन स्ट्रगल 1920-1934 की रचना की इस पुस्तक को लिखने में उन्हें एमील शेंकील नामक ऑस्ट्रियन महिला ने सहायता की। यूरोप प्रवास के दौरान सुभाष चंद्र बोस जी ने 'इंडियन पिलग्रिम' नामक अपनी आत्मकथा की रचना की।
सुभाष चंद्र बोस जी का वैवाहिक जीवन (Marital Life of Subhash Chandra Bose)
सुभाष चंद्र बोस जी ने एमील शेंकील जो कि ऑस्ट्रियन महिला से प्रेम विवाह किया 1942 में इनकी एक पुत्री हुई जिसका नाम अनिता बोस रखा गया।
सुभाष चंद्र बोस जी को फिर से मिला कांग्रेस अध्यक्ष का पद (Subhash Chandra Bose Became Congress President)
सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के 91 अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए यह अधिवेशन हरिपुरा गुजरात में धूमधाम से हुआ सुभाष चंद्र बोस ने अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के प्रायः सभी विषयों की चर्चा की जिसमें साम्राज्य उत्थान- पतन ,उपनिवेशवाद और समाजवाद का संबंध, साम्राज्यवाद की फूट डालो और राज्य करो नीति, ब्रिटिश साम्राज्य संकटापन्न स्थिति ,इंग्लैंड की सामूहिक शक्ति का ह्रास, अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की घात प्रतिघात के संदर्भ में, भारत की स्थिति अल्पसंख्यकों की समस्या, स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस की आवश्यकता ,भारतीय शासन अधिनियम 1935 की आलोचना, पार्टी अनुशासन ,कांग्रेस समाजवादी दल, प्रवासी भारतीय, स्वतंत्र भारत की विदेश नीति जैसे विषयों के ऊपर अपना भाषण दिया।
गांधीजी को सुभाष चंद्र बोस का दोबारा अध्यक्ष बनना मान्य नहीं था, गांधीजी डॉक्टर पट्टाभी को कांग्रेस के 91 अध्यक्ष बनाना चाहते थे ,डॉक्टर पट्टाभी रामय्या कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित नहीं हुए तो उनकी इस हार को गांधी जी ने अपनी हार बताया। सुभाष चंद्र बोस जी ने अप्रैल 1939 मैं कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और मई 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के अंतर्गत अपने एक नए दल फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
1939 में विश्वयुद्ध प्रारंभ (Beginning of First World War)
सितंबर 1939 में विश्व युद्ध आरंभ हुआ जिसने वायसराय लॉर्ड लिंलिथगो ने भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना ही भारत को ब्रिटेन की ओर से युद्ध ग्रस्त घोषित कर दिया इसके विरोध में प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिए 1940 में मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में जो राष्ट्र सिद्धांत की घोषणा कर दी व पृथक राज्य पाकिस्तान की मांग की।
जुलाई 1940 में सुभाष चंद्र बोस ने कोलकाता के हाल वेल स्मारक को तोड़ने के लिए सत्याग्रह करने की घोषणा की लेकिन वह गिरफ्तार कर लिये गए । जब बोस को गिरफ्तार किया तो सुभाष चंद्र बोस जी ने नवंबर 1940 में सरकार को भूख हड़ताल करने की धमकी दी इस बात पर सुभाष चंद्र बोस जी को रिहा तो कर दिया गया परंतु उनके पैतृक मकान में ही उन्हें नजरबंद कर दिया गया।
आजाद हिंद फौज का गठन (Formation of Azad Hind Fauj)
वह 17 जनवरी 1941 को अपने पैतृक घर से रात में भाग गए ,भारी मुश्किलों को पार कर व काबुल पहुंचे काबुल से मास्को और मास्को से बर्लिन पहुंच गए बर्लिन में सुभाष चंद्र बोस ने जर्मन सेना अध्यक्ष हिटलर से भेंट की उन्हें जर्मनी से भारत स्वतंत्रता संग्राम के लिए सहायता की मांग की परंतु कोई संतोषजनक आश्वासन नहीं मिला, इसके बाद सुभाष चंद्र बोस जी और महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों मेक इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की शाखाएं स्थापित कर ली थी, ज्ञानी प्रीतम सिंह और कैप्टन मोहन सिंह ने जापान के 40000 भारतीय युद्ध बंदियों में से इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) का निर्माण किया। आजाद हिंद फौज का काम यह था कि वह जापानी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों की सेना से लड़ेंगी और अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर करेंगे आजाद हिंद फौज के सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए सैनिक शिविर खोलें गए इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ने हीं सुभाष चंद्र बोस को दक्षिण पूर्वी एशिया में आकर इंडियन इंडिपेंडेंस अर्थात आजाद हिंद फौज की कमान संभालने का निमंत्रण दिया मई 1943 में सुभाष चंद्र बोस सुमात्रा पहुंच गए।
सुभाष चंद्र बोस जापानी सेना अधिकारी के साथ टोकियो गए वहां उन्होंने जापान की अनेक मंत्रियों सेना अधिकारियों तथा प्रधानमंत्री 'तोजो' से भेंट की 16 जून 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने जापानी संसद की कार्यवाही देखी तोजो ने जापानी संसद को सूचना दी कि 'जापान भारतीय स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयास करेगी' टोकियो से सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर गए 4 जुलाई 1943 को रासबिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की कमान सुभाष चंद्र बोस जी को सौंप दी सुभाष चंद्र बोस जी ने अपने भाषण में स्वतंत्र भारत की स्थाई सरकार बनाने का विचार व्यक्त किया और आजाद हिंद फौज को 'दिल्ली चलो 'का नारा दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1945 को अंतरिम सरकार की घोषणा की सुभाष चंद्र बोस इस सरकार के अध्यक्ष प्रधानमंत्री और सर्वोच्च सेनापति थे जापान जर्मनी, इटली, नानकिंग, फिलीपाइन और बर्मा आदि देशों ने आजाद हिंद फौज को सरकार की मान्यता दे दी 24 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार ने ब्रिटेन और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी
आजाद हिंद फौज ने किया विरोधी सेना का डटकर सामना (Story of Bravery of Azad Hind Fauj)
आजाद हिंद फौज के चार ब्रिगेड थे गांधी, नेहरू, आजाद और सुभाष । आजाद हिंद फौज ने भारत स्थित मोडक चौकी पर अधिकार कर लिया और वहां तिरंगा झंडा लहराया, बाद में ब्रिटेन और अमेरिका के प्रत्ययक्रमण के भय तथा समाज पर रसद न पहुंचने के कारण जापानी मोडक से हट गए लेकिन आजाद हिंद फौज के सिपाही वहां डटे रहे । आजाद हिंद फौज की एक दूसरी टुकड़ी ने कोहिमा पर अधिकार कर लिया अंग्रेजों ने 1944 के जाड़ों में प्रति आक्रमण आरंभ कर दिया और मई 1945 में रंगून पर अधिकार कर जापान और आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को निहत्था कर बंदी बना दिया इस तरह सुदूर पूर्व में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अंत हो गया।
हिटलर ने हीं सुभाष चंद्र बोस जी 'नेताजी' कहकर पुकारा था। 7 मई 1945 को हिटलर की आत्महत्या के बाद जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया जापान ने लड़ाई जारी रखी लेकिन 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु बम गिरा दिया इससे जापान की कमर टूट गई और 10 अगस्त 1945 को उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु (Subhash Chandra Bose Death)
18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस बैंकॉक से सोवियत सीमा की ओर विमान से जा रहे थे कि अचानक फॉर्मोसा में विमान दुर्घटना का शिकार हो गया जिसमें सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु हो गई 20 अगस्त 1945 को नेताजी के शब्द की ताई परी में अंत्येष्टि कर दी गई उनके अस्थि कलश को टोकियो के रन्कोजी मंदिर में रख दिया गया
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु भारतीय इतिहास में एक पहेली बन कर रह गई, भारतीय जनता को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर विश्वास नहीं हुआ इसके लिए 1970 में भारत सरकार ने नेताजी के गायब होने की जांच करने के लिए पंजाब हाई कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जीडी खोसला की 1 सदस्य समिति नियुक्त की। जिसमें न्यायमूर्ति खोसला जी ने उपलब्ध साक्ष्यों की जांच करने के पश्चात इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।