book review of safar sangharshon ka
पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा : सफर संघर्षों का

पुस्तक - सफर संघर्षों का

विधा - कविता

प्रकाशन - बोधी प्रकाशन

कीमत - 200 रुपए

संजय जोशी 'सजग'

"सफर संघर्षों का" एक ऐसा काव्य है जिसने समाज में मां के स्थान को उच्चतर दर्जे में शामिल किया है। यह काव्य सिर्फ एक मां की ही कथा नहीं बल्कि उन हजारों लाखों माओं की जीवंत दक्ष को काव्य रूप में ढालने का प्रयास करता है। इस संग्रह में चार खंड है।


प्रथम खंड कि यदि बात करें तो इसमें "सस्मरण" में अपनी यादों को संजोया गया है। इन खंडों में 17 अभिव्यक्ति हैं जिसमें 'वह बजाती ढोल' 'यादें अपने गांव की' 'बूढ़ी हो गई मेरी मां' शीर्षक जैसी कई रचनाएं व्यक्ति को भावुक कर देती हैं। यह मन में एक ऐसा चित्र बनाती हैं जिससे कि मनन झकृत हो जाता।


द्वितीय खंड में "स्ववेदना" में 19 रचनाएं हैं जिसमें लेखक द्वारा वेदना के अंतिम छोर को छूने का प्रयास किया गया। इसमें कवि ने 'पिताजी खास रहे हैं' 'मां के काम' 'काम वाली बाई' और 'इंसान की कदर करो भाई' में वेदना के भाव को अच्छे ढंग से पेश किया है।


तृतीय खंड में लेखक ने अपनी अनुभूतियों को "स्वानुभूति" के शब्दों में उकारने का प्रयास किया है। 'मां को बुखार' 'बेटी बनकर देखो' 'सच का सपना' जैसी रचना ने वेदना के जो स्वर दिए हैं वह व्यक्ति को जरूर सोचने पर मजबूर करता है और विचारणीय भी करता है।


चतुर्थ खंड में कवि द्वारा "स्वचिंतन" के जरिए 'खूंटी पर टांगो' 'स्वाभिमान' 'बहुओं के पदक बाकी है' और  'आत्महत्या मत करो' जैसी रचनाएं इंसान को गहन-गंभीर  चिंतन करने को प्रदर्शित करती हैं।

इस काव्य की आत्मा 'संस्मरण' 'स्ववेदना' 'स्वानुभूति' और 'स्वचिंतन' जैसी चार काव्य खंड है। 


इसमें लगभग 80 कविताएं हैं जो हर विषय को छूती हैं। चिंतन और मनन के माध्यम से जो ताना-बाना बुना गया, वह काबिले तारीफ है। कवि ने सरल और सहज ढंग से सृजन करके दुरूह कार्य को रोचक ढंग से प्रतिपादित किया है जो कि इसकी मुख्य विशेषता है। यह सुंदर काब्य अपने आप में पूर्णता लिए हुए हैं और अब इस संग्रह का मूल्यांकन करना पाठक का अपना अधिकार है।

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