बिहार विधानसभा के लिए 243 सीटों पर चुनाव 3 चरणों में संपन्न हुए। 10 नवंबर को हुई मतगणना में कांटेदार की टक्कर में अंततः एनडीए की सरकार को स्पष्ट बहुमत मिला। चुनाव के बाद हुई ओपिनियन पोल में जहां महागठबंधन को बहुमत मिलने की संकेत मिल रहे थे; लेकिन 10 नवंबर को हुई मतगणना में भी शुरुआती रुझान में महागठबंधन आगे चल रहा था। दोपहर होते-होते एनडीए और महागठबंधन में कड़ी टक्कर देखने को मिली तो वहीं देर रात आए नतीजों ने एनडीए को एक बार पुनः सत्ता का रास्ता दिखा दिया। Story of Nitish Kumar
NDA की सरकार में पुनः सीएम Nitish Kumar लगभग सातवीं बार सीएम पद की शपथ ले सकते हैं। बिहार में सीएम का चेहरा बने नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर वर्ष 1977 से शुरू हुआ। 69 वर्ष के नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना से 35 किलोमीटर दूर बख्तियारपुर में हुआ था। नीतीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बी.टेक. (इलेक्ट्रिकल) की पढ़ाई की। जहां यह संस्थान अब एनआईटी पटना के नाम से जाना जाता है। सीएम नीतीश और पीएम मोदी इस बार बिहार चुनाव की धुरी रहे। एक और पीएम मोदी ने केंद्र व राज्य के विकास योजनाओं के कामों को गिनाया तो वहीं दूसरी ओर सीएम नीतीश कुमार ने विकास के साथ-साथ भावुक होकर अपने प्रशंसकों व राजनीतिक विश्लेषकों को यह कहकर सोचने पर विवश कर दिया कि "यह मेरा अंतिम चुनाव है।"
नीतीश के पिता राम लखन बाबू स्वतंत्रता सेनानी थे, उनकी पत्नी का नाम मंजू सिन्हा है जो कि एक स्कूल टीचर थी। जिनका 2007 में निधन हो गया। वर्ष 1977 में राजनीतिक सफर की शुरुआत में उन्हें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जहां जनता पार्टी के सभी दिग्गज मसलन रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव लोकसभा चुनाव जीत रहे थे तो उस समय नितीश हरनौत विधानसभा से चुनाव हार चुके थे। इससे हैरानी वाली बात तब हुई जब नीतीश नालंदा कुर्मी बाहुल्य इलाके से भी चुनाव हार गए। Story of Nitish Kumar
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वर्ष 1985 में इंदिरा गांधी के देहांत के बाद जहां सभी नेता सहानुभूति लहर में बह गए, तो वहीं नीतीश कुमार हरनौत से विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने। जहां से वे अपना पहले 1977 और 80 का चुनाव हारे थे। एमएलए बनने के बाद नीतीश कुमार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
राजनीतिक करियर की आधारशिला उन्होंने 70 के दशक में बी. टेक. की पढ़ाई के दौरान रखी। पढ़ाई के दौरान ही वे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ गए, जयप्रकाश नारायण ही नीतीश कुमार के मार्गदर्शक थे। प्रखर वक्ता, तेज-तर्रार होने के कारण जल्द ही नीतीश कुमार लोगों की पसंद बनने लगे। उनके हर भाषण पर तालियों की गड़गड़ाहट की गूंज उनके नेता बनने के पूरे संकेत दे चुकी थी। वर्ष 1987 में उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष व वर्ष 1989 में जनता दल के 'सचिव जनरल' के रूप में उन्हें पदोन्नत किया गया।
1989 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बाढ़ से खड़ा होने को कहा गया। इस चुनाव में नीतीश कुमार ने एक ऐसे शख्स को हराया, जिन्हें 'शेर-ए-बिहार' के नाम से जाना जाता है। वह शख्स राम लखन सिंह यादव थे। वीपी सिंह ने इन सभी बातों पर गौर करके नीतीश को यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर एग्रीकल्चर का पद दिया। उसी समय पासवान और शरद यादव को कैबिनेट दिया गया। 1990 बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने टॉप पोस्ट रिजर्व कर ली थी।
Nitish Kumar, लालू प्रसाद को बड़े भाई का कहा करते थे जो आज भी उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं। उनकी दोस्ती भी काफी अच्छी रही, जो साल 1994 तक सलामत रही। तब बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था उस समय बिहार के पास 324 विधानसभा सीटें थी। नीतीश की पार्टी मुश्किल से 7 ही सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, हालांकि 1995 के चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करके 167 सीटें जीतने में कामयाब रही।
धीरे-धीरे नीतीश राजनीतिक करियर में सफलता की सीढ़ी चढ़ते गई और CM पद का पदभार संभाल लिया। बिहार विधानसभा 2020 के चुनाव में एक बार पुनः एनडीए की सरकार सत्ता में वापस आ गई। एनडीए को जहां 125 सीटों पर जीत हासिल हुई तो वही महागठबंधन 110 सीटों पर कामयाब रही। हालांकि इस बार जेडीयू का चुनावी ग्राफ जरूर गिरा, जहां उसे सिर्फ 43 सीटें ही प्राप्त हुई।