भारतीय सेना का एक फौजी जवान जो "अमर" है, जिसको समय समय पर पद्दोनत्ति मिलती है, समय पर छुट्टी मिलती है। जो शहीद होने के बाद भी ड्यूटी पर तैनात है, और ऐसा माना जाता है की इस सैनिक की आत्मा आज भी सीमा की रक्षा करती है। इस सैनिक को सुबह की चाय, खाना व सभी कुछ मिलता है।
अब आप अवश्य ही सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक सैनिक जो शहीद हो गया है, वो कैसे ड्यूटी कर सकता है, और अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है। तो चलिए हम आपको बताते हैं एक ऐसे सैनिक के बारे में जिसने भारत चीन के युद्ध में अकेले 300 दुश्मनो को मार दिया था।
परिचय
19 अगस्त 1941 को पौड़ी गढ़वाल के बड़ियूं गांव में जसवंत सिंह रावत का जन्म गुमान सिंह रावत के घर में हुआ था, जो कि गढ़वाल में गोळ्या रावत कि जाती से जाने जाते हैं, गढ़वाल क्षेत्र में गोळ्या रावत बड़े वीर भड़ हुए हैं, वीरांगना तीलू रौतेली ने गढ़वाल क्षेत्र में लगातार 7 साल तक कत्यूरियों से लड़ाई कि थी। बचपन में बहुत ही शांत स्वाभाव के जसवंत सिंह रावत ने अपनी शिक्षा अपने गांव से ही पूरी की, तत्पश्चात वह गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में भर्ती हुए।
१९६२ में भारत और चीन का युद्ध में उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिक निभाई और माँ भारती के इस लाल ने अपना आत्म बलिदान के साथ महावीर चक्र को प्राप्त किया।
Picture from: गौं गुठ्यार यूट्यूब चैनल
भारत चीन युद्ध 1962
जैसा की विदित है कि 1962 में भारत और चीन में भयंकर युद्ध हुआ था, जब यह युद्ध अंतिम चरण में था तो रणभूमि अरुणाचल प्रदेश का 1000 किलोमीटर का बॉर्डर बना, जिसकी ऊंचाई लगभग 14000 फीट ह।। अधिक ऊंचाई पर होने के कारण इलाके में जबरदस्त ठंड होती है एवं यह जमीन पूर्ण रूप से पथरीली हैं। जो भी लोग इन इलाकों में जाते हैं, ऑक्सीजन की कमी के कारण थोड़ा सा भी नहीं चल पाते हैं और यहां पर कुछ ही कदमों पर सांस फूलने लगती हैं। चीनी सैनिकों ने भारत की सीमा को पार करके भारत के इलाकों पर अपना कब्जा कर दिया था, और वह आगे बढ़ रहे थे। तवांग नामक स्थान को भी सैनिकों ने कब्जे में लिया था, परंतु भारतीय सैनिकों ने उनका डटकर मुकाबला किया.
नूरानांग इलाके में गढ़वाल राइफल्स के जवान चीनी सैनिकों से लोहा ले रहे थे, लड़ाई के बीच में संसाधन की कमी के कारण भारतीय सैनिकों को नूरानांग से वापस बुलाया गया, परंतु जसवंत सिंह रावत ने वापस जाने से मना कर दिया और वहां चीनी सैनिकों से युद्ध करने के लिए डटे रहे।
कुछ किवदंती यह भी है की अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियां नूरा और सीला की मदद से उन्होंने एक फायरिंग ग्राउंड तैयार किया और तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखें जिससे कि चीन के सैनिकों को एक भ्रम हो और वह यह न समझ पाए कि भारतीय सेना संख्या में कितनी बड़ी है जो अलग अलग 3 स्थानो से एक साथ हमला कर रही है इस प्रकार से चीनी सैनिकों को जसवंत सिंह ने तीन दिनों यानी 72 घंटे तक चकमा दिया और नूरा और सीला के साथ-साथ जसवंत सिंह तीनों जगह से फायरिंग करते रहे, तत्स्वरूप बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए।
दुर्भाग्यवश उनको राशन की सप्लाई करने वाले युवक को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया और उसने जसवंत सिंह रावत के युद्ध रणनीति के बारे में उनको बता दिया, चीन की सेना ने जसवंत सिंह रावत को चारों तरफ से घेर लिया, इस बीच सीला को वीरगति प्राप्त हुई व नूरा को चीनी सैनिको ने जिन्दा पकड़ दिया। जब जसवंत सिंह रावत ने खुद को चारो ओर से घिरा हुआ पाया तो उन्होंने युद्ध बंदी से बचने की खातिर खुद को गोली मार दी और वह मात्र 20 वर्ष 9 महीने की उम्र में शहीद हुए, उस वक्त आर्मी में उनकी रैंक राइफलमैन थी। सीला को समर्पित सीला पास दर्रा नाम उस जगह को दिया गया है।
चीनी सेना द्वारा बहादुरी और सम्मान
चीनी सैनिक उनका सर काट के अपने साथ ले गए, वह उनकी बहादुरी से बहुत प्रभावित हुए और उनके अफसरों ने युद्ध के बाद उनके सर को ससम्मान लौटा दिया। साथ में पीतल से बनी उनकी एक मूर्ति को भी चीनी सैनिको ने भारतीय सेना को भेंट किया, कुछ किदन्तिया यह भी हैं कि चीनी सेना ने उन को बंधक बना दिया था और उन्होंने उनको फांसी देकर मार दिया था परंतु इस बात में कितनी सच्चाई है इसका कोई प्रमाण नहीं है।
भारतीय सेना व सरकार द्वारा सम्मान
जसवंत सिंह रावत जिस चौकी पर शहीद हुए थे उस चौकी का नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है, मरणोपरांत उनको भारत सरकार ने महावीर चक्र से सम्मानित किया। जसवंतगढ़ में उनकी याद में उनका मंदिर बनाया गया है, जहा उनसे सम्बंधित सामन रखा गया है।
जैसे, उनकी राइफल, वर्दी व अन्य वस्तुएं। पांच सैनिको को उनकी देखरेख के लिए तैनात किया गया है, यह सैनिक उनकी वर्दी को प्रेस करते हैं, बूट पोलिश करते हैं, व उनके लिए चाय, नाश्ता व डिनर भी समय के साथ उनके कमरे में रखते हैं।
उनको प्रमोशन या पद्दोनति भी मिलती रहती है, इस प्रकार वह अब राइफलमैन से मेजर जनरल के पद पर तैनात हैं, उनके परिवार के लोग उनकी तरफ से उनकी छुट्टी का आवेदन करते हैं, फिर उनके बक्से के साथ उनकी फोटो को ससम्मान उनके पैतृक गांव में ले जाया जाता है। उनके लिए ट्रैन में एक सीट भी रिज़र्व की जाती है। फिर उनकी छुट्टी के पूर्ण होने पर उनकी फोटो को जसवंतगढ़ वापिस ले आते हैं।
अभी भी सीमा पर हैं तैनात
ऐसा माना जाता है की जसवंत सिंह रावत अभी भी सीमा की रक्षा करते हैं, कोई सैनिक अगर सो जाये तो वो उसको जगा देते हैं। उनको "शहीद जसवंत सिंह" नहीं कहा या लिखा जाता, क्योंकि वह ड्यूटी पर अभी भी तैनात हैं और भारत की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं।
आज इस वीर का जन्मदिन है और हम इस वीर को अपनी पूरी टीम की तरफ से जन्मदिन की शुभकामनायें देते हैं।