complete story of indian state emergency in hindi
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आपातकाल : भारीतय लोकतान्त्रिक इतिहास का एक काला अध्याय

भारतीय लोकतान्त्रिक इतिहास में  21 महीने के समय का वह अध्याय जिसे हम लोग इमरजेंसी के रूप में जानते हैं, यह वह भयानक काल था जिसने लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ा दी थी। नागरिकों के अधिकारों का हनन हुआ था। 


ऐसे तो इमरजेंसी की बैकग्राउंड वाली भूमिका बहुत बड़ी है परन्तु 12 जून 1975 का वह दिन नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। 12 जून की सुबह खबर आयी थी कि इंदिरा गाँधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) का एडवाइजर D P Dhar की मृत्यु हो चुकी है, दिन के वक्त दूसरी महत्वपूर्ण खबर आयी कि गुजरात के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाले दल से हार हो गयी है। उसके बाद एक और खबर आयी जो शाम तक पूरे देश में आग की तरह फ़ैल गयी, यह खबर थी की इंदिरा गाँधी को रायबरेली लोकसभा सीट से डिसक्वालिफाई कर दिया गया है। इंदिरा गाँधी के खिलाप सामाजिक कार्यकर्ता राज नारायण ने इलाहबाद (अब प्रयागराज) हाई कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया था, जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने इस मामले में सुनवाई की, इंदिरा गाँधी को चुनाव में सरकारी अधिकारी को अपने चुनाव में प्रयोग करने, एक तय सीमा से ज्यादा पैसे का खर्च और कई मामलों में दोषी पाया गया था। 


भारतीय अर्थव्यवस्था का ढर्रा सही नहीं चल रहा था, लोकनायक जय प्रकाश नारायण छात्रों के सरकार के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़े थे और उसे लीड भी कर रहे थे, ऐसे में इंदिरा गाँधी के खिलाप एक बड़ा माहौल बन रहा था। इंदिरा गाँधी ने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी परन्तु सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस V R Krishan Iyer से भी कोई रहत नहीं मिल सकी। 


जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 25 जून 1975 को एक बड़ी रैली हुयी जिसमे लाखों लोग दूर दूर से आये थे, एक बड़ा जान सैलाब दिल्ली में एकत्र हो गया था, रैली में फैसला लिया गया की 29 जून से सम्पूर्ण भारत सत्याग्रह आंदोलन किया जायेगा। परन्तु 26 जून की सुबह देश में सारा कुछ बदल चुका था। 26 जून की सुबह से रेडियो पर बार बार यह रिकॉर्ड बजने लगा था। 



" भाइयों और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इस से आतंकित होने का कोई कारण नहीं है"


और इसी के साथ ही ख़बरें इस तरह चलने लगी- 


प्रेस सेंसरशिप को थोप दिया गया है, सीनियर नेताओं को गिरफ्तार कर दिया गया है और नागरिकों के सामान्य अधिकारों को ख़तम कर दिया गया है। जे पी नारायण को भी कई अन्य बड़े नेताओं के साथ गिरफ्तार करके काल कोठरी में दाल दिया गया।


 इंदिरा गाँधी


इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी भारत के पहले प्रधानमंत्री की बेटी, राहुल गाँधी की दादी जो सन 1966 से 1977 और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रही। उस से पहले लाल बहादुर शास्त्री के कर्यकाल में सूचना और प्रसारण मंत्री भी रहीं। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद हुए इलेक्शन में इंदिरा गाँधी ने मोरार जी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। 


भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गाँधी का कार्यकाल काफी अलग रहा, उनके कार्यकाल में भारत पाकिस्तान में युद्ध हुआ और पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश को बनाया गया, 1975 से 1977 तक इमरजेंसी को लगाया गया जिसके फलस्वरूप एक तानाशाही रवैया देखने को मिला और फिर अंत में गोल्डन टेम्पल या स्वर्णमंदिर अमृतसर में सिख आतंकियों को मरने के लिए मंदिर परिसर में सेना के साथ तोप गोला दागा गया, 31 अक्टूबर 1984 में उन्ही के सिख अंगरक्षक ने उनके ऊपर गोलियां चलकर उनकी हत्या कर दी।


1971 के आम चुनाव


साल था 1971 का और देश में आम चुनाव हुए, इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव लड़ी और जीत हासिल की, साथ ही इंदिरा गाँधी की पार्टी ने दो तिहाई बहुमत को प्राप्ति की और इंदिरा एक बार फिर भारत की प्रधानमंत्री बन गयी। इंदिरा गाँधी का "गरीबी हटाओ" का नारे ने नागरिकों को बहुत प्रभावित किया और इंदिरा गाँधी को पूर्ण बहुमत से विजयी बना दिया। सन 1973 में इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के 3 सीनियर जस्टिसों को हटाकर ऐ ऐन राय को सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बना दिया।


छात्रों का आंदोलन 


इधर एक और जहाँ सरकार कई साड़ी परेशानियों और चुनौतियों से जूझ रही थी, वही दूसरी तरफ गुजरात में सरकार के खिलाप छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया, इस आंदोलन को मुख्या रूप से मोरारजी भाई देसाई का पूरा सपोर्ट मिला और यह आंदोलन धीरे धीरे उग्र और हिंसक होने लगा, जनवरी 1974 में छात्रों ने कई सरकारी बसों और ऑफिसों को आग के हवाले कर दिया जिसके कारण इंदिरा गाँधी को चिम्मनभाई पटेल की राज्य सरकार को ख़तम करने को बोला गया। 




एक ओर जहाँ गुजरात का आंदोलन पूर्णतया ख़तम नहीं हुआ था, वही दूसरी ओर बिहार में छात्र संघर्ष समिति ने लोकनायक जय प्रकाश नारायण को अपना आंदोलन को नेतृतव देने के लिए आमंत्रित किया और उनको जे पी नारायण का साथ भी मिल गया। 


तो एक ओर जहाँ अप्रैल 1974 में बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व के बाद छात्र आंदोलन फल फूल रहा था वही 8 मई 1974 को जॉर्ज फर्नाडीस ने सम्पूर्ण भारत में रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल का आवाहन किया, उनकी मांग मुख्य रूप से रेलवे कर्मचारियों का वेतन को बढ़ाने की थी। 3 हफ्ते की उस स्ट्राइक को केंद्र सरकार ने बुरी तरह कुचल दिया था। 


सिंहासन खली करो की जनता आती है


देश में जब हर जगह सरकार के खिलाप एक माहौल बन गया था, तब इंदिरा गाँधी और जे पी नारायण के बीच नवंबर 1974 को एक मीटिंग हुयी जो बेनतीजा रही। छात्र संघर्ष समिति चाहती थी की गुजरात के जैसे ही बिहार में भी विधान सभा भांग की जाये, परन्तु इंदिरा गाँधी और जे पी एक मत न हो सके। 


8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर राय ने इंदिरा गाँधी को एक लेटर लिख कर बताया कि देश में इमरजेंसी लगा कर जो लोग विरोध कर रहे हैं उनको गिरफ्तार कर लिया जाये। 12 जून 1975 को जो इंदिरा गाँधी की लोक सभा सदस्यता इलाहबाद हाई कोर्ट के आर्डर के बाद ख़त्म कर दी गयी। सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ ज्यादा रहत नहीं मिल पायी। 23 जून से ही विपक्षी नेताओं के गिरफ्तार होने की ख़बरें आने लगी थी और इसी के साथ, 25 जून को जे पी नारायण के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया जिसमे जे पी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्तियों का उद्घोष किया की, "सिंहासन खली करो की जनता आती है"। इस वाकये ने इंदिरा गाँधी को अंदर तक झकझोर कर दिया और उनको उनकी कुर्सी जाते दिखने लगी। 


इमरजेंसी 


25 की रात को ही अख़बारों के दफ्तरों और प्रिंटिंग प्रेस की बिजली को काट दिया गया था। रात में ही कई लोगों की गिरफ्तारी होनी शुरू हो गयी और फिर 26 जून 1975 को जे पी, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और कई अन्य लोगों को जेल में भेज दिया गया, प्रेस सेंसरशिप के लिए इंद्र कुमार गुजराल को सूचना प्रसारण मंत्री के पद से हटा दिया गया, उनकी जगह V C Shukla को IB मिनिस्टर बनाया गया। जनता को बार बार रेडियो पर इमरजेंसी के बारे में इंदिरा गाँधी का देश के नाम सन्देश सुनाया जाने लगा। नेता गिरफ्तारी के डर से इधर उधर वेश बदलकर छिपने लगे। 2 दिनों तक तो कोई समाचार पत्र ही नहीं छपा, फिर सेंसर की हुयी न्यूज़ आने लगी। 




30 जून 1975 को मैंटीनैंस ऑफ़ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) कानून का ऑर्डिनेंस लाया गया जिसके तहत कभी भी किसी को भी गिरफ्तार करने का कारण बताना अनिवार्य नहीं था, किसी भी नागरिक को बिना किसी कारण के गिरफ्तार किया जा सकता था। गौरतलब है कि बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी का नाम इसी कानून के नाम से मीसा भारती रखा। जुलाई 4 को आरएसएस, आनंद मार्ग, जमात-ऐ-इस्लामी और नक्सली विचारधारा के संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।


इंदिरा गाँधी द्वारा बताया गया इमरजेंसी का कारण-  


देश में आपातकाल का कारण 'आंतरिक अशांति' को नियंत्रित करना था, जिसके लिए संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता को वापिस ले लिया गया था।


पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने चरम कदम को सही ठहराने के लिए तीन कारण बताए - 


पहला, जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के कारण भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र खतरे में था।


दूसरा कारण बताया गया कि कि तेजी से आर्थिक विकास और वंचितों के उत्थान की आवश्यकता है।


तीसरा, उन्होंने विदेशों से आने वाली शक्तियों के हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी जो भारत को अस्थिर और कमजोर कर सकती हैं। 




क्या हुआ था इमरजेंसी में 


  • सारी शक्तियाँ केंद्र सरकार के हाथों में केंद्रित थीं।
  • सरकार ने इस अवधि के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया।
  • सभी चुनाव स्थगित कर दिए गए और नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया।
  • अधिकांश राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया।
  • प्रेस को सेंसर कर दिया गया था। सभी समाचार पत्रों को प्रकाशित होने वाले लेखों के लिए पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • संविधान में निरंकुश तरीके से संशोधन किया गया, खासकर 42वें संशोधन में।
  • यह घोषणा करते हुए एक संशोधन किया गया कि प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • संजय गांधी, जिनके पास उस समय कोई आधिकारिक पद नहीं था, ने प्रशासन पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
  • इस अवधि में संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन सामूहिक नसबंदी अभियान चलाया गया। 

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