constitution day of india 2020
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संविधान दिवस : मौलिक अधिकार, व्यक्तित्व विकास एवं महिला सशक्तिकरण की एक कुंजी

किसी भी समाज और समुदाय को चलाने के लिए कुछ नियम व कायदों की आवश्यकता होती है, जिससे कि समाज व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़े और समाज में रह रहे हर व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके। लोकतांत्रिक प्रणाली में "संविधान" के जरिए इसकी व्यवस्था की जाती है। संविधान किसी भी देश की शासन प्रणाली और राज्य को चलाने के लिए बनाया गया एक 'दस्तावेज' होता है। 

सदियों से भारत वर्ष पर विभिन्न जाति व समुदायों का शासन रहा है। जिससे भारत देश 'विविधता में एकता' की पूर्ण सामंजस्य को दर्शाता है। प्राचीन भारत में विभिन्न क्षेत्रीय वंशो का शासन, मध्य भारत में मुस्लिम समुदायों का दबदबा, तो वहीं उत्तर कालीन आधुनिक भारत में डच, फ्रेंच और अंग्रेजों का आधिपत्य रहा। प्राचीन एवं मध्य भारत के वंश व जाति अपने-अपने धर्मों व  कायदों के अनुसार राज-काज‌ को चलाती थी। सन 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के साथ ही अंग्रेजों के कदम भारतवर्ष में पड़े। धीरे धीरे अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे क्षेत्रों पर कब्जा करके कर वसूलना शुरू किया तथा कोलकाता में अपनी राजधानी स्थापित की। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों में ब्रिटिश संसद का हस्तक्षेप व नियंत्रण के लिए कई अधिनियमों को पारित किया गया। सर्वप्रथम 1773 रेगुलेटिंग एक्ट पास करके कंपनी के शासन के लिए पहली बार एक 'लिखित संविधान' प्रस्तुत किया गया। 


रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 


इस अधिनियम द्वारा बंगाल के शासन को गवर्नर जनरल तथा चार सदस्य परिषद में निहित किया गया। परिषद में निर्णय को बहुमत द्वारा लिए जाने की व्यवस्था की गई। इस अधिनियम के तहत बंगाल, मद्रास तथा बांबे तीनों प्रेसिडेंशियो को रखा गया। वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।

इसी अधिनियम के अंतर्गत ही कोलकाता में पहली बार 1774 ईस्वी में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई।

1781 के संशोधित अधिनियम में कोलकाता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। 


पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 


कंपनी पर आधिकारिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए तथा भारत में कंपनी की गिरती साख को बचाने के उद्देश्य से पारित किया गया। इसी प्रकार एक के बाद एक अधिनियम पास करके ब्रिटिश संसद ईस्ट इंडिया कंपनी को संविधान के दायरे में रखती गई। 


1833 का राजपत्र 


1813 के अधिनियम के बाद कंपनी के साम्राज्य का भारत में काफी विस्तार हुआ तथा महाराष्ट्र, मध्य भारत, पंजाब, ग्वालियर और इंदौर आदि पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1833 का चार्टर एक्ट पास करके इस प्रभुत्व को स्थायित्व स्थायीत्व प्रदान किया गया। 

इसमें बंगाल के गवर्नर जनरल को संपूर्ण भारत का गवर्नर जनरल को नियुक्त किया गया तथा लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने। भारत में दास प्रथा, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को गैरकानूनी घोषित करके सामाजिक स्वतंत्रता प्रदान की गई। 


1858 का अधिनियम 


1857 का भारत में स्वतंत्रता संग्राम व कंपनी की गलत नीतियों के कारण ब्रिटिश संसद ने 1858 का एक्ट पास करके भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत के गवर्नर जनरल को 'क्राउन का प्रतिनिधि' करके वायसराय की संज्ञा दी गई तथा लॉर्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय बने। इसके साथ ही भारत सचिव की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई। 

इसके बाद 1861 के एक्ट को पास करके भारत में 3 हाई कोर्ट को बांबे, मद्रास एवं कोलकाता में स्थापित किया गया। इसी प्रकार से कई अधिनियम भारत शासित के लिए पारित किए गए।


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सन 1919 के भारत शासन अधिनियम के बाद सन 1922 में पहली बार महात्मा गांधी ने कहा कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा"। 1919 के अधिनियम की धारा 84 के अनुसार सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य भारतीय संविधान को बनाने के लिए शक्तियां प्रदान करना था। सन 1927 में साइमन कमीशन का भारत में पुरजोर विरोध किया गया और 'साइमन कमीशन गो बैक' के नारे लगने लगे। विरोध का कारण यह था कि इस आयोग के सदस्यों में एक भी भारतीय नहीं था। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को ठुकरा कर कांग्रेस ने 1929 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार 'पूर्ण स्वराज्य' का प्रस्ताव पारित किया।  

साइमन कमीशन को टकराने के बाद सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, लॉर्ड वर्कनहेड ने भारतीय दलों को चुनौती दी कि यदि तुम में इतनी बुद्धि है तो "स्वयं के लिए, स्वयं ही संविधान का निर्माण करो"। इस चुनौती को स्वीकार करके कांग्रेस पार्टी ने 28 फरवरी 1928 को दिल्ली में सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया और संविधान का प्रारूप बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के अध्यक्षता में 9 सदस्यों की एक समिति बनाई। इस समिति द्वारा प्रस्तुत प्रारूप को ही "नेहरू रिपोर्ट" के नाम से जाना जाता है। 

इस रिपोर्ट में भी कुछ कमियों को देखते हुए 1935 का अधिनियम तथा तत्पश्चात 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया और संविधान निर्माण के लिए विचारों तथा तथ्यों को रखने लगा। 

लेकिन अंतिम रूप से साल 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। डॉ राजेंद्र प्रसाद को इसका सभापति और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए 13 समितियों का गठन किया गया। प्रारंभ में संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिसमें देसी रियासतों से  292 प्रतिनिधि, राज्यों के 93 प्रतिनिधि, चीफ कमिश्नर प्रोविजंस के 3 और बलूचिस्तान का एक प्रतिनिधि शामिल था। बाद में मुस्लिम लीग ने खुद को अलग कर लिया जिसके बाद संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 299 रह गई। 


पहला ड्राफ्ट और उस पर चर्चा 


जनवरी 1948 में भारत के संविधान का पहला प्रारूप चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया। 4 नवंबर 1948 को चर्चा शुरू हुई और 32 दिनों तक चली। इस अवधि के दौरान 7,635 संशोधन प्रस्तावित किए गए, जिसमें से 2,473 पर विस्तार से चर्चा हुई। 2 साल, 11 माह और 18 दिनों तक संविधान सभा की बैठक हुई, जिस दौरान संविधान को अंतिम रूप दिया गया। 


अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मर्पित 


24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए, जिनमें 15 महिला सदस्य भी शामिल थी।

26 नवंबर 1949 को भारत के इस महान व दुनिया के सबसे लंबे लिखित संविधान को अंगीकार किया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया। 


संविधान दिवस 


प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन को 'विधि दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। हमारा संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ लेकिन 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया गया था। 

वर्ष 2015 में संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वें जयंती के अवसर पर 'सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय' ने  26 नवंबर को "संविधान दिवस" के रूप में मनाने की केंद्र सरकार के फैसले को अधिसूचित किया था। संवैधानिक मूल्यों के प्रति नागरिकों में सम्मान की भावना को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। 


संवैधानिक तथ्य 


  • हमारा संविधान 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ।
  • संविधान की असली प्रतियां हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखी गई है, जिन्हें आज भी भारत के संसद में हिलियम भरे डिब्बे में सुरक्षित रखा गया है।
  • संविधान 25 भागो, 470 अनुच्छेद और 12 अनुसूची में बंटा हुआ है, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। 
  • मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थी, किंतु विभिन्न संशोधनों के परिणाम स्वरुप वर्तमान में इसमें कुल 470 अनुच्छेद 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं।
  • संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।

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