भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की आधी से ज्यादा आबादी कृषि कार्यों में सलंग्न है। कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, इसलिए कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की 'रीढ़' भी कहा जाता है। कृषि की उपजों को और अधिक बढ़ाने व किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए समय-समय पर केंद्र व राज्य सरकारें कानून व योजनाओं को लाकर किसानों व कृषि दोनों के विकास को गति प्रदान करती है। इसी उद्देश्य से केंद्र सरकार ने तीन नए कृषि विधयेको को लोकसभा में पेश किया था, जिसे संसद के दोनों सदनों से पारित करने के बाद, राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल चुकी है और यह विधेयक कानून के रूप में लागू हो गया है।
केंद्र सरकार के खेती-किसानी से जुड़े इन तीन कानूनों का लागू होने के साथ ही, किसान संगठनों का भी विरोध शुरू हो गया। सबसे अधिक विरोध अभी तक हरियाणा-पंजाब में देखने को मिल रहा है जहां के किसान लामबंद होने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। यहां के किसान संगठन इस कानून के खिलाफ अपनी नाराजगी जताने के लिए ट्रैक्टरों, गाड़ियों आदि के साथ सड़कों पर उतर चुके हैं। जबकि केंद्र सरकार इस कानून को किसानों के लिए फायदेमंद बता रही है। आइए जानते इन कृषि कानूनों में क्या है ?
केंद्र सरकार कृषि से जुड़े तीन बिलों को पार्लियामेंट में पास करवा चुकी है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल अब कानून बन चुके हैं। केंद्र सरकार कृषि से जुड़े इन तीन कानूनों को किसान के हित में बता रही है। केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगपा के साथ बातचीत में कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा समझौता अधिनियम और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम के उद्देश्यों के बारे में बताया।
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केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है। जिससे 'वन नेशन, वन मार्केट' को मूर्त रूप मिल जाएगा। किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफार्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं, इससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
इसके अलावा इस अधिनियम से एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान होगा जिससे कि राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने की बात भी इस अधिनियम में कही गई है।
एसेंशियल एक्ट, 1955 में बदलाव
इस अधिनियम से अनाजों, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटा कर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मुक्त कर देगा। यह निजी उद्यमियों को भरोसा और उन्हें इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इन सभी अधिनियम के जरिए सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का मकसद हासिल कर सकेगी।
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इस एक्ट में कृषि करारो पर राष्ट्रीय फ्रेम वर्क का प्रावधान किया गया है। कानून कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फ्रमो, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ने के लिए सशक्त करता है।
अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
क्यों हो रहा है विरोध
किसान संगठनों का कहना है कि नए कानून से कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों या कारपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों का नुकसान होगा।
कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा के मुताबिक किसानों को अगर बाजार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते ?
उनका कहना है कि जिन उत्पादों पर किसानों को एमएसपी नहीं मिलती, उन्हें वह कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं।
पंजाब में होने वाले गेहूं और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफसीआई द्वारा किया जाता है या फिर एफसीआई उसे खरीदा है। साल 2019-20 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीजन में केंद्र सरकार द्वारा खरीदे गए करीब 341 लाख मीट्रिक टन गेहूं में से 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति अकेले पंजाब ने की थी।
किसानों को डर है कि एफसीआई अब राज्य की मंडियों से खरीद नहीं पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को करीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा, साथ ही राज्य भी अपना 6% कमीशन खो देगा, जो वह एजेंसी की खरीद पर लगाता आया है।
किसान नहीं बाजार के लिए यह अधिनियम - दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के प्रावधान पर देवेंद्र कहते हैं कि 86% छोटे किसान एक जिले से दूसरे जिले नहीं जा पाते, किसी दूसरे राज्य के जाने का सवाल ही नहीं उठता। यह अधिनियम बाजार के लिए बना है, किसान के लिए नहीं।
विपक्ष का विरोध - किसान संगठनों को विपक्ष का साथ मिल चुका है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इन्हें किसान विरोधी षड्यंत्र बताया है। इसके साथ ही इस कानून के विरोध में हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के कड़े रुख का संकेत दिया था।
सरकार का तर्क
प्रधानमंत्री मोदी ने इसे "आजादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आजादी" देने वाला विधायक बताया था। उन्होंने कहा कि किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिलने की बात गलत है, राजनीतिक पार्टियों ने इसका दुष्प्रचार किया।
ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि किसानों के पास मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की विवशता क्यों? अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा।
करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा, वह समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा तथा सरकार उसके हितों को संरक्षित करेगी।