First Indian Talking Movie Alam Ara
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आज के दिन रिलीज़ हुयी थी पहली बोलती फ़िल्म आलम आरा - जानिये इस फिल्म की कहानी

दिन था शनिवार, तारीख 14 मार्च, साल 1931! यह वह दिन था, वह अवसर था जब भारतीय फिल्मों में पहली बार ध्वनि सुनाई दी, यह वह दौर था जब भारतीय फिल्में गूंगी न रहकर बोलती फिल्म (टॉकी) में परिवर्तित हुई। 90 साल पहले निर्देशक आर्देशिर ईरानी के निर्देशन में भारत की पहली बोलती फिल्म "आलम आरा" 14 मार्च 1931 को रिलीज हुई। हालांकि भारत में फिल्म निर्माण की शुरुआत साल 1913 में "राजा हरिश्चंद्र" नाम की फिल्म से ही हो गई थी लेकिन तब फिल्में सिर्फ मूक (बिना आवाज) रूप में बनती थी। इन फिल्मों में आवाज डालने के कई प्रयास भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के द्वारा किए गए थे लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। प्रसिद्ध फिल्म इतिहास समीक्षक फिरोज रंगूनवाला की मुलाकात जब 50 के दशक में आलम आरा के निर्देशक आर्देशिर ईरानी से हुई थी तो फिरोज साहब ने बताया कि "मेरी मुलाकात जब उनसे हुई थी तो वे काफी उम्रदराज हो चुके थे, उन्होंने मुझे बताया कि उस दौर में भारतीय लोगों की फिल्मों के प्रति दिलचस्पी कम होने लग गई थी हॉलीवुड की कई बोलती फिल्म भारत आने लगी थी ऐसे में उन्हें लगा कि भारत में भी टॉकी फिल्म की शुरुआत करनी जरूरी है।"


कैसे हुआ फिल्म निर्माण


फिल्म निर्देशक आर्देशिर ईरानी और उनकी यूनिट इंटीरियर स्टूडियो ने टेनौर सिंगल सिस्टम कैमरा विदेश से आयात किया। जिस समय आलम आरा की शूटिंग आर्देशिर ईरानी के निर्देशन में हो रही थी ठीक उसी दौरान कृष्णा मूवीटोन, मदन थियेटर्स जैसी कंपनियां भी फिल्म निर्माण की कोशिश में लगी थी। इरानी आलम आरा फिल्म को जल्द से जल्द पूरी करना चाहते थे जिससे उनकी फिल्म भारत की पहली बोलती फिल्म बने। प्रथम बोलती फिल्म आलम आरा में कुल 78 कलाकार थे, उन सभी कलाकारों ने पहली फिल्म के लिए आवाज को रिकॉर्ड किया था। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुई, लेकिन अफसोस की बात है कि इस फिल्म की आज एक भी कॉपी मौजूद नहीं है, एक भी प्रिंट नेशनल अकाइव ऑफ इंडिया के पास मौजूद नहीं है।


फिल्म निर्माण में समस्या


प्रथम बोलती फिल्म भारत की, जिसे बनाना आसान नहीं था, फिल्म ने कई प्रकार की दिक्कतों का सामना किया। फिरोज रंगूनवाला बताते हैं कि फिल्म शूटिंग के दौरान आसपास बहुत आवाज आती थी जो साथ में रिकॉर्ड हो जाती थी, ऐसे में फिल्म की शूटिंग करना काफी मुश्किल हो जाता था। फिल्म के ज्यादातर कलाकार मूक फिल्मों के दौर के थे जिस कारण उन्हें फिल्म में काम करने के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्हें घंटों तक सिखाया जाता था कि किस प्रकार बोलना है और किस प्रकार बिना त्रुटि के शब्दों का प्रयोग करना है।


तकनीकी समस्या


उस दौर में देश में कुछ ज्यादा तकनीकी विकास नहीं हुआ था। फिरोज बताते हैं कि टेनौर सिंगल सिस्टम कैमरे से शूट करने में काफी दिक्कत आती थी, एक ही ट्रैक पर साउंड और पिक्चर रिकॉर्ड होती थी, इसलिए कलाकारों को एक ही टेक में शॉर्ट देना पड़ता था। डबिंग तकनीक का तो कोई मतलब ही नहीं था। कैमरे प्रिंट की समस्या यह थी कि उसे संरक्षित नहीं किया जा सकता था क्योंकि उस दौर में वह नाइट्रेट प्रिंट था, जो बड़ी जल्दी आग पकड़ लेता था।


फिल्म की कहानी


आलम आरा फिल्म जोसफ़ डेविड द्वारा लिखित एक पारसी नाटक पर आधारित है जिसमें एक राजकुमार और बंजारन लड़की की प्रेम कथा है। फिल्म इतिहासकार शरद दत्त ने बताया आलमआरा जोसेफ डेविड निर्देशित एक पारसी नाटक था। आर्देशिर ईरानी इसे देखकर प्रभावित हुए और उन्होंने तय किया कि वे गाने डालकर इस पर फिल्म बनाएंगे। 


क्यों बुलानी पड़ी पुलिस


जिस दौर में फिल्म के प्रति लोगों की रुचि कम होने लग गई थी, जहां उस वक्त हर किसी के बस का नहीं था सिनेमा हॉल में फिल्म देखना। लेकिन आलम आरा जब मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में रिलीज हुई तो फिल्म देखने के लिए मैजेस्टिक हॉल के बाहर इतनी ज्यादा भीड़ हो गई थी कि पुलिस को भीड़ नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज तक करना पड़ा। लगभग 8 हफ्तों तक आलम आरा मैजेस्टिक सिनेमा चलती रही।


फिल्म से जुड़े रिकॉर्ड


इस फिल्म ने रिलीज के साथ ही कई रिकॉर्ड अपने नाम किए। यह भारत की पहली बोलती फिल्म बनी। इस फिल्म से भारत को पहला प्लेबैक सिंगर वजीर मोहम्मद खान मिला, जिसने फिल्म में अभिनय भी किया था।

आलम आरा का पहला गाना "दे दे खुदा" काफी हिट रहा जिसे भारतीय सिनेमा का पहला गीत माना जाता है। इस फिल्म में कुल 8 गाने थे।


14 मार्च 1931 को रिलीज हुई "आलम आरा" फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुई।

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