यह गुलजार थोड़े अलग मिजाज के हैं, गीतकार ऐसे कि रुमाल और जुबान से हमें नवाजा है; उससे भी कई अलग। ये जो उनकी नज्में सीधे सवाल भी ना करें तो भी कई सवाल छोड़ कर चले जाते हैं।
ये नज्में ईश्वर तक पर भी गुस्सा कर देती हैं, कहीं हल्का सा तंज करके उन्हें उनकी ओढ़ी हुई ऊंचाइयों में छोटा कर देती है। ईश्वर से कहते हैं कि तुम्हारे भक्त तुम्हारे ऊपर तेल भी डालते हैं और शहद भी, कितनी चिपचिपाहट होती होगी। अगर सब कुछ देख रहे हो तो एक बार घी से उठे हुए धुएं पर जरा छींक कर ही दिखा दो, लेकिन फिर उन्हें महसूस होता है कि दुनिया भर की नज़्मों को कितनी जुबानें आती हैं, उनमें से कोई भी उस सर्वशक्तिमान की समझ में नहीं अंटती- "न तो गर्दन हिलाता है, न वो हंकारा भरता है"। Paji Nazmein Book by Gulzar
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गुलजार एक मशहूर शायर है, जो फिल्में बनाते हैं। फिल्मकार के साथ-साथ वे एक कहानीकार भी हैं, कविताएं भी लिखते हैं। विमल रॉय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुए सफर में फिल्मों की दुनिया में उनकी कविताएं इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा।
गुलजार चांद की तख्ती पर गालिब का एक शेर लिखते हैं कि शायद वो फरिश्तों ही से पढ़वा ले कि इंसान को उसकी इंसानियत में छोटा बनाने वाले वे खुदा के चहेते ही शायद पढ़कर उसे सुना दे। लेकिन अफसोस की बजाए इसके वह उसे या तो धो देता था या कुतर के फांक के जाता है यानि वह खुदा अपना शायद पढ़ा-लिखा भी नहीं है। अगर होता तो कम से कम चिट्ठी पत्री तो कुछ करता। ताकत की सबसे ऊंची मचान पर इससे बड़ी चोट और क्या होगी! गुलजार की यह नज्में बड़बोली नहीं है, ना अपनी कद-काठी में और ना अपनी जुबान में! लेकिन वे हमें बड़बोली कि एक एंटी-थिसिस देती हैं। वह बड़ी समझदारी के साथ हमें यह हिम्मत जुटाने की दावत देती है कि मोबाइल की ठहरी हुई इस दुनिया में "पर्टीपाल" नाम के आदमी की बरतरी को "पाली" नाम के कुत्ते की कमतरी के साथ रखकर तौला आ सकता है।