बात अगर वतन की है तो हमारी यही पहचान है,
लहू के एक-एक कतरे में बसा हिंदुस्तान है
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी अद्वितीय संस्कृति और सभ्यता के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। पुराने समय में 'सोने की चिड़िया' कहे जाने वाले इस देश में कई सारी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताएं हैं जो कि आज इसकी विशेषता बन चुके हैं। भारत की अनेक रंगों में सजी यह विविधता ही इसके समृद्ध और सांस्कृतिक इतिहास को सभी के सामने बयां करती है। भारत के स्वाभिमान को दर्शाते इसके अनेक प्रतीक आज विश्व भर में अपनी एक अलग ही पहचान बनाए हुए हैं।
संसार के प्रत्येक देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज है। यह ध्वज उस देश की स्वतंत्रता तथा उसकी समृद्धि का प्रतीक है। भारत में भी एक राष्ट्रध्वज है जिसे 'तिरंगा' कहा जाता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को संविधान सभा की बैठक (22 जुलाई 1947) में अपनाने का फैसला लिया गया था। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात 26 जनवरी 1950 को तिरंगे को भारतीय राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता मिली। जिस प्रकार भारत की पर्वत, समुद्र, नदियों से विशिष्ट भौगोलिक पहचान है, उसी प्रकार भारतीय राष्ट्रध्वज भी भारत के सर्वोच्च बलिदान की कहानी को दर्शाता है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की पट्टियां हैं जो कि क्षैतिज रूप से विभाजित हैं। सबसे ऊपर केसरिया रंग इसे सुशोभित करता है। बीच में सफेद और अंत में गहरे हरे रंग द्वारा ध्वज की शोभा को बढ़ाया गया है। यह तीनों पट्टियां समान अनुपात में हैं तथा इस ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 है। राष्ट्रीय ध्वज के बीच में सफेद रंग की पट्टी है, जिस पर गहरे नीले रंग का एक चक्र विद्यमान है। यह चक्र अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ के शेर के स्तंभ से लिया गया है। इस चक्र में 24 तीलियां हैं। भारत का तिरंगा राष्ट्र के राजनीतिक विकास को दिखता है, जो स्वयं अनेक परिवर्तनों से होकर गुजरा है।आइए जानते हैं तिरंगे के विकास का रोचक इतिहास।
प्रथम भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अस्तित्व 1906 में आया था। यह राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त सन 1906 को पारसी बागान चौक (जिसे अब ग्रीन पार्क के नाम से जानते हैं) कोलकाता में फहराया गया था। इस ध्वज में तीन पट्टियां विद्यमान थीं। इसमें सबसे ऊपर गहरा हरा रंग बीच में पीला तथा अंत में लाल रंग था। हरे रंग की पट्टी पर कमल के फूल चित्रित किए गए थे। बीच में वंदे मातरम तथा लाल रंग की पट्टी में एक तरफ सूर्य और एक तरफ चांद विद्यमान था। यह पट्टियां भी क्षैतिज रूप से विभाजित की गयी थी। यह राष्ट्रीय ध्वज गैर आधिकारिक ध्वज था।
दूसरा राष्ट्रीय ध्वज
मात्र 1 वर्ष पश्चात ही इस गैर आधिकारिक ध्वज को बदल दिया गया। सन 1907 में पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ के कुछ क्रांतिकारियों द्वारा यह ध्वज फहराया गया था। इस ध्वज में भी तीन पट्टियां क्षैतिज रूप में विभाजित की गई थीं। इसमें सबसे ऊपर केसरिया बीच में पीला तथा अंत में गहरा हरा रंग विद्यमान था। इस ध्वज में हरे रंग की पट्टी में चांद-सितारे तथा सूर्य मौजूद था और सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी में सात तारे सप्त ऋषि को दर्शाते हुए बनाए गए थे। इस ध्वज को बर्लिन के एक सम्मेलन में भी दिखाया गया था।
तीसरा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
भारत गणराज्य का यह तीसरा ध्वज 1917 में अस्तित्व में आया। सन 1917 में होमरूल लीग आंदोलन के दौरान एनी बेसेंट और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा इसे फहराया गया था। इस राष्ट्रीय ध्वज में 5 लाल पट्टियां तथा चार गहरी हरे रंग की पट्टियां विद्यमान थीं। इन्हें क्षैतिज रूप से विभाजित किया गया था। इसमें हर एक पट्टी में एक के बाद एक सात तारे बनाए गए थे, जो कि सप्त ऋषि के आकार को दर्शाते थे। बाई ओर ऊपर की तरफ यूनियन जैक था तथा दूसरे कोने में सफेद रंग में एक सितारा तथा चांद दर्शाया गया था।
चौथा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
इस चतुर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को 1921 में गैर आधिकारिक रूप में शामिल किया गया था। पहले राष्ट्रीय ध्वज के आने के 4 साल के भीतर ही यह नया राष्ट्रीय ध्वज भारत में सम्मिलित किया गया। आंध्र प्रदेश के एक युवक द्वारा यह राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया था और इसे गांधी जी को दिया गया। इस ध्वज में मात्र दो रंग विद्यमान थे जो कि क्षैतिज रूप में विभाजित थे। पहली पट्टी हरे रंग तथा दूसरी लाल रंग से निर्मित थी। उस वक्त यह दो रंग दो धर्मों को प्रदर्शित करते थे जो कि हिंदू और मुस्लिम थे। बाद में गांधी जी द्वारा इसमें एक चरखे को भी जोड़ा गया।
पांचवा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
चतुर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को गांधीजी के सुझाव के अनुसार संशोधित किया गया। पहले इसमें दो रंग विद्यमान थे जो कि दो समुदायों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। गांधी जी द्वारा दिए गए सुझाव पर इसमें भारत देश के अन्य समुदायों के प्रतिनिधित्व के तौर पर एक सफेद पट्टी तथा प्रगति के लिए चलता हुआ चरखा दर्शाया गया। इस नए ध्वज को 1931 में अपनाया गया था।
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अब इस झंडे में सबसे ऊपर केसरिया रंग मध्य में सफेद तथा अंत में गहरा हरा रंग विद्यमान था। इस में सफेद रंग की पट्टी के बीच में चलता हुआ चरखा बनाया गया था। वर्ष 1931 में ही तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ था और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा औपचारिक रूप से इसे अपनाया गया था।
छठवां तथा वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय ध्वज
भारत का वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' के नाम से जाना जाता है। इसे 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा एक मुक्त भारत देश के ध्वज के रूप में मान्यता मिली थी। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इसे संविधान सभा द्वारा महत्व प्रदान किया गया। बाद में इस ध्वज में चरखे के स्थान पर अशोक के धर्म चक्र को दर्शाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी के ध्वज को ही अंततः देश का राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया। बाद में इस ध्वज में विद्यमान तीन रंगों और चक्र का महत्व भी निर्धारित किया गया।
तिरंगे के असली रंग
भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में विद्यमान तिरंगा इसकी आन-बान-शान है। तिरंगे में सबसे ऊपर की केसरिया रंग की पट्टी भारत के पराक्रम उसकी शक्ति और उसके साहस को दिखाता है। इसके बीच में स्थित सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। अंत में हरे रंग की पट्टी देश की उर्वरता, इसकी भूमि की पवित्रता तथा इसके विकास का प्रतीक है। सफेद रंग के बीच में नीले रंग का चक्र विद्यमान है जिसे विधि का चक्र कहा जाता है। इस चक्र को दर्शाने के पीछे जीवन का गतिशील होना बताया गया है तथा इस चक्र में 24 तीलियां 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
क्या बताती है ध्वज संहिता
ध्वज संहिता भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के कुछ नियम और विनिमय को दर्शाती है। 26 जनवरी 2002 को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के मामले में संशोधन किए गए। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के कई सालों बाद नागरिकों को अपने घरों कार्यालयों में और फैक्ट्रियों में किसी भी दिन बिना रुकावट के झंडे को फहराने की अनुमति प्रदान की गई। पहले तक यह अनुमति सिर्फ राष्ट्रीय पर्वों पर ही दी जाती थी। अब भारत के लोगों द्वारा शान से किसी भी वक्त पर तिरंगा फहराया जा सकता था, परंतु इसकी कुछ विशेष शर्तें भी थी, जो कि ध्वज संहिता के कठोरता से पालन करने के विषय में थीं।
वर्ष 2002 में भारतीय ध्वज संहिता को सहजता के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है।
ध्वज संहिता का पहला भाग बताता है कि राष्ट्रीय ध्वज का विवरण किस प्रकार से है। इसके दूसरे भाग में भारतीय जनता, विभिन्न शैक्षणिक संस्थान तथा निजी संगठनों के सदस्यों द्वारा ध्वज के प्रदर्शन के बारे में व्याख्या की गई है। ध्वज संहिता का तीसरा और अंतिम भाग केंद्रीय तथा राज्य सरकारों और उनके संगठनों के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भारत के गौरव का प्रतीक है। यह नागरिकों की आशाओं उनकी उम्मीदों तथा राष्ट्र पर अपना जीवन न्योछावर कर देने वाले वीर क्रांतिकारियों की गाथाएं सुनाता है। इसीलिए इसकी निष्ठा का विशेष ध्यान रखते हुए देश के नागरिक इसका सम्मान करते हैं।