पराली जलाने से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है, जिसको देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश जारी कर पराली ना जलाने की बात कही है। साथ ही किसानों को इससे खाद बनाने का निर्देश दिया है लेकिन इसके बाद भी पराली जलाने के मामले कम नहीं हो रहे हैं। पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक हस्तक्षेप कर चुके हैं।
दशहरे के बाद धान की फसल की कटाई शुरू हो जाएगी और उसके बाद किसान पराली जलाना शुरू कर देंगे। दशहरे के बाद केंद्र सरकार के निर्देश का पालन किया जाएगा और कितने राज्य अपने यहां किसानों को पराली से खाद बनाने के लिए प्रेरित करेंगे, इसका पता चलेगा। लेकिन पहले जानते हैं कि पराली जलाने से पर्यावरण को कितना नुकसान होता है
इन गैसों का होता है उत्सर्जन
1.मीथेन
2.कार्बन मोनो ऑक्साइड
3.कार्बन डाइ ऑक्साइड
4.पार्टिकुलेट मेटर (इससे वायुमंडल में कोहरा सा छा जाता है)
दिवाली में पटाखों पर पाबंदी के बाद भी लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, जिसके बाद प्रदूषण का लेवल कम होने की तो कोई गुजांइश ही नहीं, लेकिन जिस तरह से हम कोरोना और प्रदूषण को मामूली समझने की गलती कर रहे हैं वो कब भयंकर रूप ले लेगी इसका पता भी नहीं चलेगा। स्वस्थ लोगों पर बेशक इसका अटैक इतनी जल्दी देखने को न मिले लेकिन हमें इस वक्त अपने साथ-साथ बच्चों और बुजुर्गों के बारे में ज्यादा सोचना है। प्रदूषण बढ़ाने के लिए क्या चीज़ें हैं जिम्मेदार, ये कोई नया टॉपिक नहीं है लेकिन आपको आगाह करते रहना जरूरी है।
इसका कौन है जिम्मेदार
पराली जलाने वाले वक्त के दौरान दिल्ली को प्रदूषित करने वाली सबसे बड़ी वजह पराली का धुआं ही है। इस दौरान, प्रदूषण फैलाने में पराली की हिस्सेदारी 40 परसेंट तक होती है। इसमें दूसरे नंबर पर इंडस्ट्री और तीसरे नंबर पर गाड़ियां आती हैं। पूरी सर्दियों की बात की जाए तो प्रदूषण की बड़ी वजह इंडस्ट्री है, जिसकी हिस्सेदारी 30 परसेंट तक बताई गई है। इस दौरान, पराली की हिस्सेदारी महज 4 परसेंट है।
हमारा किचन में मोजूदा वायु प्रदूषण के कारण
घरों में वायु प्रदूषण के बढ़ते दुष्प्रभावों का सबसे बड़ा कारण आजकल ज्यादातर घरों में विभिन्न घरेलू कार्यों में तरह-तरह के रसायनों का बढ़ता उपयोग माना जा रहा है। ऐसे ही रसायनयुक्त पदार्थों के बढ़ते चलन के ही कारण घरों के अंदर फॉर्मेल्डीहाइड, बेंजीन, एल्कोहल, कीटोन जैसे कैंसरजनक हानिकारक रसायनों की सांद्रता बढ़ जा रही है, जिनका बच्चों के स्वास्थ्य पर घातक असर पड़ता है। विभिन्न अध्ययनों में ये तथ्य सामने आ चुके हैं कि घरों के अंदर का प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है।
इससे उत्पन्न बीमारियों का खतरा
हृदय संबंधी समस्याएं
वायु प्रदूषण से दिल की बीमारियां हो सकती हैं। इसमें असंतुलित धड़कन, हार्ट फेल होना और हाइपरटेंशन हैं।
अस्थमा
यह सबसे आम बीमारियों में से एक है जो प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले मनुष्यों को प्रभावित कर सकती है। अस्थमा के रोगियों के लिए प्रदूषित हवा बेहद खतरनाक होती है।
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फेफड़ों का कैंसर
प्रदूषित हवा में ज्यादा समय गुजरने पर प्रदूषक तत्व फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं और उन्हें क्षतिग्रस्त भी करते हैं। वायु प्रदूषण को लंग कैंसर के प्रमुख कारणों से में एक माना गया है। प्रदूषण के कारण फेफड़ों में अनियंत्रित कोशिकाओं की वृद्धि होती है।
निमोनिया
प्रदूषित वायु से निमोनिया और किडनी संबंधी बीमारी का भी खतरा है।भारत सहित पुरे विश्व में प्रदूषण अपने चरम स्तर पर है. इसके रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम न उठाने पर ये और भी बढ़ता जा रहा है. बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा खतरनाक स्तर से छह गुना अधिक जहरीली हो गई है। ऐसे हाल में स्वस्थ व्यक्ति की सेहत पर भी सीधा खतरा है। इससे बचने के लिए हमें अपने शरीर में ऑक्सीकरण रोधी स्तर को बढ़ाना होगा।
वहीं हमारी रसोई में ही इसके उपाय छिपे हैं जो शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देंगे, जिससे प्रदूषण के खतरे से लड़ा जा सकता है। शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिए नौ पोषक तत्वों का सेवन जरूरी है। जिनमें विटामिन ए, बीटा कारोटीन, विटामिन बी-2, रिबोफ्लेविन, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, मैग्नीशियम और सेलेनियम शामिल हैं।
ये औषधि, फल, सब्जी और मसालों में मिलते हैं।
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काली मिर्च : इसमें बहुत प्रभावशाली ऑक्सीकरण रोधी तत्व कैप्सेइसिन होता है जो फेफड़ों की सुरक्षा करता है। प्रदूषण और सिगरेट के धुएं से होने वाले प्रभावों से बचाने में काली मिर्च का सेवन सबसे असरदार है।
अजवायन : प्रदूषित हवा के कारण खांसी और गले में सूजन महसूस हो तो अजवायन की चाय पियें। यह शरीर की अन्य प्रतिरक्षा संबंधी (इम्यून) समस्याओं को खत्म करने कारगर है।
हल्दी : इसे घी के साथ मिलकर खाने से खांसी और अस्थमा में राहत मिलेगी। हल्दी का सेवन कैंसर का खतरा कम करता है। शोध में पाया गया है कि इसमें पाया जाने वाला करक्यूमिन एंटीऑक्सीडेंट जानवरों में कैंसर का खत्मा करने में सक्षम है।
गुड़ : इस समय हर कोई जुकाम और बलगम से परेशान है। इससे राहत के लिए सोने से पहले हरद और गुड़ का सेवन करें तो बलगम घट जाएगा।
रोजमेरी : इसे गुलमेंहदी भी कहते हैं जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उगने वाला पौधा है। आमतौर पर यह घरों में औषधि की तरह प्रयोग होता है। इस ऑक्सीकरण रोधी पौधे का अर्क पीना फायदेमंद होगा।
जहरीले तत्वों का असर रोकेगा इनका सेवन : इस बेहद संवेदशनशील समय में अगर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नींबू के पत्तों की चाय, ग्रीन चाय, चुकंदर, नीम, पपीता के पत्ते, आंवला, एलोवेरा, गिलोय, आश्वगंघा, गेहूं की घास, सहजन का सेवन प्रदूषण के जहरीले तत्वों का शरीर पर असर घटाएगा।
देशी घी बढ़ाएगा प्रतिरोधक क्षमता
देशी घी के अलावा सरसों, नारियल, तिल और जैतून का तेल जैसे वसा खाने से शरीर खतरनाक तत्वों से लड़ने के लिए मजबूत होगा।
भाप लेने से खत्म होगी श्वसन में परेशानी
इस समय सांस लेने में खासी दिक्कत महसूस होती है, इससे निपटने के लिए भाप लेना फायदेमंद होगा। यह श्वास लेने के तंत्र में नमी आएगी और खून के जमाव की समस्या खत्म होगी। इसके अलावा क्षारीय जल पीने से भी फायदा मिलेगा। ऐसे समय में सेहत सही रखने के लिए कम प्रदूषित स्थान पर ही व्यायाम करें और तनाव घटाने के लिए योग व ध्यान लगाएं।