Rani Padmini Chittorh Ka Pratham Jauhar
पुस्तक समीक्षा

इतिहास को बयां करती किताब | Rani Padmini Chittorh Ka Pratham Jauhar

जौहर नाम से तो आप सभी परिचित होंगे। माना जाता है कि चित्तौड़़ का प्रथम जौहर रानी पद्मिनी द्वारा किया गया था जो 1303 में दूसरा 1535 और तीसरा 1568 में हुआ था तथा  पुरुषों के द्वारा किए गए इस आत्मदाह को शाका कहा जाता था। यह बात उस शोध लेख में स्पष्ट हुई है जिसके आधार पर इस पुस्तक की रचना हुई। रानी पद्मिनी: चित्तौड़ का प्रथम जौहर।

पिछले कुछ दशकों में राजस्थान की रानी पद्मिनी जिसे पद्मावती के नाम से जाना जाता है उनके बारे में अनेक तथ्य तथा विवाद सामने आए हैं। इन विवादों का मुख्य कारण रहा है फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई गई फिल्म पद्मावत। इस फिल्म में रानी पद्मावती के अद्वितीय सौंदर्य को चित्रित किया गया कि वह इतनी सुंदर थी कि दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी उसका चेहरा दर्पण में देखते ही विभोर हो गया था और उसे पाने की जिद में युद्ध कर बैठा। अंत में रानियों के जौहर से इस कथा का अंत हुआ। जौहर का अर्थ है आत्मदाह करना। इसी भाग को फिल्म की सफलता का मुख्य श्रेय दिया गया। परंतु राजपूत समाज ने इसका बहुत अधिक विरोध किया और इस पर कई आंदोलन चलाए। कारण यह था कि इसमें किए गए पद्मावती के चित्रण को समाज प्रमाणिक नहीं मानता था। तो फिर अब बात आती है कि यदि यहां सब अप्रमाणिक दिखाया गया था तो प्रमाणिक क्या है? प्रमाणिकता तो कोई भी नहीं जानता क्योंकि इतिहास के साथ-साथ सारी तरह की झूठ, कल्पनाएं सभी पूरी तरह घुल-मिल जाती हैं और सत्य बहुत ही धुंधला-धुंधला दिखाई देता है।

इतिहास की बात की जाए तो उसमें यह स्पष्ट रूप से अंकित है कि दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत सारे किलों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था और चित्तौड़ के किले पर आक्रमण किया था। उनका शासनकाल 1296-1316 बताया जाता है। इस युद्ध में अनेक राजपूतों के शहीद होने के बाद उनकी रानियों ने भी जौहर कर लिया था परंतु जौहर की यह घटना 1303 में हुई थी जोकि खिलजी के शासन काल से भिन्न है। Rani Padmini Chittorh Ka Pratham Jauhar

रानी पद्मावती की कथा को कथा बद्ध करने का श्रेय मलिक मोहम्मद जायसी को जाता है। जिन्होंने मेवाड़ के राजा रतन सिंह और सिंहल देश की राजकुमारी पद्मावती की प्रेम कथा को पद्मावत जैसे महाकाव्य में लिखा। इसमें उन्होंने ब्राह्मण राघव चेतन का भी वर्णन किया है। इस तरह से चित्तौड़ की अनेक घटनाओं को दूसरे कवियों ने भी अपने लेख में निबद्ध किया। इसे अपभ्रंश भाषा में लिखा गया। इन काव्यों में रानी  पद्मिनी का जिक्र होता है, उस समय के राजपूत योद्धाओं गोरा बादल आदि का वर्णन है तथा पद्मिनी के शौर्य का वर्णन, उसके सौंदर्य का वर्णन और सुल्तान द्वारा रतन सेन को बंदी बनाकर  किए गए युद्ध का वर्णन तथा हार के बाद शाका और जौहर जैसी घटनाएं आदि वर्णित हैं। परंतु यह सब जो भी गाथाओं में वर्णित है मिथक भी हो सकते हैं। इसलिए इन पर विश्वास करना कितना सार्थक है यह स्वयं को जानना होगा। 

यह तो किसी सामान्य बुद्धि के बालक को भी समझ में आएगा कि जिस समय सुल्तान ने दर्पण से पद्मिनी का चेहरा देखा था उस समय 1303 में दर्पण जैसी कोई वस्तु तो होती ही नहीं थी। हालांकि फिल्मों के लिए यह सारे दृश्य मार्मिक होते हैं जो फिल्म को जीवंत और मनोरंजक बनाते हैं। परंतु इसके बाद ही इस तथ्य पर कई दिनों तक छानबीन हुई और अनेक प्रयत्न किए गए। तत्पश्चात भी अभी तक इस बात की प्रमाणिकता साबित नहीं हुई है।


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ऐसी ही चीजों को प्रमाणित करने के लिए राजस्थान की पृष्ठभूमि से एक पुरातत्व,मध्यकालीन इतिहास और संत साहित्य के विशेषज्ञ बृजेंद्र कुमार सिंहल ने हाल ही में एक किताब छापी है। जिसका नाम रखा गया रानी पद्मिनी: चित्तौड़ का प्रथम जौहर। उस समय के इतिहास को लेकर कई सारी घटनाएं वास्तविकता की ओर इशारा करती हैं। इसमें इतिहास में रचित दो पुस्तकों का मूल पाठ दिया गया है। जिसका सिंघल ने हिंदी अनुवाद किया है क्योंकि यह पुस्तकें अपनी भाषा में लिखित हैं। पद्मिनी की कथा पर प्रकाश डालते हुए इसमें लेखक ने इतिहास के अनेक ग्रंथों के आधार पर तथ्यों का विश्लेषण किया और अपने शब्दों में कथा का संचार किया है।

दो मूल पुस्तकें अज्ञात द्वारा लिखित पद्मिनी समिओ और जटमल द्वारा लिखित गोरा बादल कथा हैं। यह दोनों पुस्तकें 17 वीं सदी के पूर्वार्ध में लिखी गई थी और अब पांडुलिपियों में संग्रहित हैं।




लेखक द्वारा इन पुस्तकों के बारे में बताया गया है कि पद्मिनी समिओ एक ऐसी पुस्तक है जिसमें पद्मिनी के चरित्र, रतन सिंह और पद्मिनी का प्रेम, राघव चेतन के द्वारा विश्वासघात तथा सुल्तान का आक्रमण (जोकि पद्मिनी को पाने के लिए किया गया था), बादल की सहायता से पद्मिनी का पालकी में बैठकर सुल्तान के पास जाना तथा वहां से रतन सिंह को छुडा लाना, इसके बाद आक्रमण तथा युद्ध में रतन सिंह का जितना आदि सभी चीजें वर्णित हैं।

गोरा बादल की कथा एक ऐसी पुस्तक जिसमें सुल्तान द्वारा रतन सिंह को बंदी बनाना तथा पद्मिनी को उसे सौंप देने पर दबाव बनाना तथा उसका मान जाना और पद्मिनी का नाराज होना, इसके बाद गोरा बादल की सहायता से युद्ध होना, इसमें गोरा का शहीद होना और बादल का जितना इन सभी प्रसंगों का वर्णन है। वैसे तो रानी पद्मिनी पर कई सारी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और पद्मिनी के प्रसंग जिन भी पुस्तकों में आए हैं उन सब का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए। कई सारे अध्ययनों में इन तथ्यों के प्रमाण भी हैं। जिसमें यह बताया गया है कि पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा की पुत्री है और कुछ लोग यह द्वीप सीलोन (श्रीलंका) को मानते हैं। जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार मरुभूमि के आसपास के क्षेत्र को सिंहल माना जाता है। रामचंद्र शुक्ल ने भी अपने मत में यह बताया है रणथंभौर ही सिंगल के रूप में वर्णित है और वहां के राजा हमीर सिंह की पुत्री थी पद्मिनी इसके प्रमाण भी दिए गए हैं।

बृजेंद्र कुमार सिंहल ने अपनी पुस्तक में रानी का सती होना, जौहर और शाका जैसी घटनाओं पर प्रकाश डाल कर यह बताया है कि किस तरह रानी द्वारा कई और सारी रानियों को साथ लेकर जौहर किया गया। इस तरह इन दोनों काव्यों के मूल का अनुवाद और उसकी विस्तृत भूमिका बृजेंद्र कुमार ने जाहिर की है। पद्मिनी की कथा का सारा इतिहास और उस समय की स्थिति का विश्लेषण लेखक ने बड़ी ही सुंदर तरह से पेश किया है और यह पाठकों के लिए अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। पाठकों से आशय है कि शोधार्थी तथा मनोरंजन के लिए पढ़ने वाले सभी पाठक इसे पढ़ने के लिए उत्साहित रहेंगे क्योंकि इसमें पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी सामग्री पेश की गई है।


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