भारत सरकार द्वारा अन्नदाताओं के हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर अनेक प्रकार की लाभ व्यवस्था प्रदान की जाती है संसद में तमाम प्रकार के कृषि सुधार से संबंधित विधेयक पारित किए जाते हैं इसी प्रकार का एक विधेयक है - MSP
अपने इस लेख के माध्यम से आज हम आपको बताएंगे कि आखिर एमएसपी क्या है? What is MSP? इससे किसानों को क्या लाभ मिलता है? और सबसे बड़ा सवाल कि किसानों को एमएसपी मिलती भी है या नहीं?
Minimum Support Prices- (न्यूनतम समर्थन मूल्य) MSP
फसलों की कीमत में होने वाले उतार- चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके यह कदम केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है। भारत सरकार ने कृषि मंत्रालय के अधीन कृषि लागत और मूल्य आयोग( कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कास्ट एंड प्राइसेज CACP) की अनुशंसा के आधार पर एमएसपी तय की जाती है।
MSP का इतिहास
इतिहास गवाह है कि किसानों को उनकी मेहनत के अनुसार फसल की कीमत प्रदान नहीं की जाती है आजादी से पूर्व ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारत से यह कुप्रथा चली आ रही है अफसोस की बात यह है कि आजादी के बाद भी किसानों की यथा स्थिति में परिवर्तन नहीं आया है किसानों द्वारा अपने अनाजों को खरीद तथा बिकरी का कार्य किया जाता है जब अनाज कम पैदा होता है तो कीमतों में बढ़ोतरी होती है और ज्यादा होता है तो कीमतों में गिरावट आने लगती हैं इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा 1957 में एक खाद्य अन्य जांच समिति का गठन किया गया समिति ने अपने अनेक सुझाव प्रस्तुत किए इसके बावजूद भी कोई फायदा नहीं हुआ तब सरकार ने अनाज की कीमत तय करने के बारे में सोचा।
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वर्ष 1964 में खाद्य अनाज मूल्य समिति का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की अध्यक्षता में किया गया जिसमें यह तय किया गया कि किसानों को उनकी उपज के बदले कम से कम इतने पैसे दें कि उनका नुकसान ना हो। सबसे पहले गेहूं तथा धान का एमएसपी निर्धारित किया गया इनकी कीमतों को तय करने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि मूल्य आयोग का गठन किया जिसका नाम वर्ष 1985 में बदलकर कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) हो गया।
फसलों की कीमतों का निर्धारण
कृषि लागत और मूल्य आयोग एमएसपी द्वारा अंतरराष्ट्रीय बाजार के मूल्यों के आधार पर किसी फसल का एमएसपी तय करता है फसल का उत्पादन करते समय खेती के उत्पादन लागत के निर्धारण में नकदी खर्च ही नहीं बल्कि खेत और परिवार के श्रम का खर्च भी शामिल होता है खेती की लागत को तीन भागों में बांटा जाता है-
- A2- (इसमें बीज खाद ईंधन और सिंचाई लागत शामिल होती है)।
- A2+ FF (नगद खर्च के साथ पारिवारिक श्रम ,यानी उत्पादन में लगी अनुमानित मेहनताना)
- C2 (खेती के व्यवसायिक मॉडल + नगद लागत + पारिवारिक श्रम + खेत की जमीन का किराया + कुल पूंजी पर लगने वाला ब्याज इसमें शामिल होता है)
MSP के निर्धारक कारक
एमएसपी के निम्नलिखित निर्धारक तत्व है:
- मांग की आपूर्ति
- उत्पादन की लागत
- घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजार में मूल्य प्रवृतियां
- अंतर फसल मूल्य समता
- कृषि और गैर कृषि के बीच व्यापार शर्तें
- उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर एमएसपी का संभावित प्रभाव।
MSP निर्धारण का उद्देश्य
- एमएसपी निर्धारण का मुख्य उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा व शोषण से बचाकर उनकी उपज का अच्छा मूल्य प्रदान करना और अनाज की खरीद करना है।
- यदि किसी फसल का अच्छा उत्पादन होता है तो उसका मूल्य घटने की स्थिति में सरकारी एजेंसियां किसानों की अधिकांश फसल को एमएसपी मूल्य पर खरीदेगी।
किसानों को MSP मिलती है या नहीं?
मोदी सरकार द्वारा 2020 -21 में 3 करोड़ 90 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी जिसमें 4300000 किसानों को फायदा मिला जो कि वर्ष 2019 के मुकाबले 22% ज्यादा है हालांकि इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स रिलेशंस की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000- 2017 तक किसानों के उत्पादन को सही मूल्य न मिल पाने से उन्हें 4500000 टन करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाने की मांग कर रहे संगठनों और नेताओं ने सरकार द्वारा बढ़ाई गई एमएसपी को नाकाफी बताया है ।कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह ने पिछले 10 वर्षों में गेहूं की एमएसपी में बढ़ोतरी का आंकड़ा जारी करते हुए कहा है कि 2021 में मौजूदा बढ़ोतरी 2.6 % सबसे कम होगी ।
फसलों की एमएसपी को लेकर प्रधानमंत्री की अधिकृत वेबसाइट नरेंद्र मोदी डॉट इन पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक दिया गया एमएसपी लागत डेढ़ गुना है। एमएसपी से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप पीएम मोदी की साझा की गई जानकारी को उनकी वेबसाइट narendramodi.in पर भी देख सकते हैं।