क्या आप जानते हैं हमारे देश का राष्ट्र गान किसने लिखा है?- गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने। इस गान को उन्होंने एक कविता के रूप में बंगाली भाषा में लिखा था। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के द्वारा इसके हिन्दी संस्करण को हमारे देश के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया। यह एक ऐसा गीत है जो देश की गरिमामयी परंपरा और जीवंत इतिहास को दर्शाता है। यह तो सभी जानते हैं कि हमारे देश का राष्ट्रगान जन-गण-मन है परंतु कुछ ही लोग ऐसे हैं जो इसके बनने के पीछे का सत्य जानते हैं।
संसार की कई पुरानी सभ्यताओं में से एक है भारत। जिसे ‘सोने की चिड़िया’ कहकर पुकारा जाता था। आज भले ही यह नाम ना के बराबर रह गया हो परंतु इसकी अनेक रंगों में सजी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासतें यह हकीकत बयां करती हैं। भारत के स्वाभिमान के अनेक प्रतीक हैं जैसे राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय पशु-पक्षी आदि। उसी तरह से इसके इतिहास से लेकर वर्तमान तक साथ चला है राष्ट्रगान। आज भारत देश का हर निवासी चाहे वह बच्चा हो, जवान हो या हो कोई बूढ़ा सभी जानते हैं कि हमारे देश का राष्ट्रगान है जन-गण-मन। बच्चों को हर विद्यालय में हमेशा से ही इसके बोल इसकी धुन और गाने का तरीका सिखाया जाता है। इसके साथ-साथ बच्चों को देश के बारे में बताकर देश प्रेम की भावना को जागृत करने का प्रयास किया जाता है, उन्हें यह अवगत करवाया जाता है कि राष्ट्रगान देश की एकता का प्रतीक और आन-बान-शान है, भारतवासियों का अभिमान है और देश के इतिहास, संस्कृति, समृद्धि और गौरवशाली परंपरा की गाथाएं सुनाता है। यह मुख्य रूप से विभिन्न राष्ट्रीय अवसरों पर पूरे भारत में गाया जाता है। साधारणतः प्रत्येक विद्यालय में भी इसे हर दिन गाया जाता है।
परंतु क्या आप लोग यह जानते हैं कि National Anthem of India कैसे, कब और क्यों लिखा गया था? आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं-
किसने की और कब हुई राष्ट्रगान की रचना?
राष्ट्रगान जन-गण-मन को विश्व प्रसिद्ध कवि, दार्शनिक और साहित्यकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने एक कविता के रूप में 1905 में लिखा था। यह बंगाली भाषा में लिखा गया था।
राष्ट्रगान का इतिहास:
पहले भारत की राजधानी बंगाल हुआ करती थी और 1911 तक यही राजधानी थी। परंतु जब 1905 में बंगाल विभाजन हुआ तो देश में आंदोलनकारियों ने जनता के साथ मिलकर इस विभाजन का विरोध करने लगे। तब अंग्रेजों द्वारा भारत की राजधानी कलकत्ता की जगह दिल्ली को बनाया गया। इसके बाद हिंदुस्तानियों के मन में स्वतंत्रता की भावना विकसित होने लगी और कलकत्ता के एक कोने में आरम्भ हुआ एक विख्यात गीत 'जन-गण-मन अधिनायक जय हे' का। जिसे प्रख्यात कवि रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था।
इस गीत को पहली बार आज से लगभग 109 वर्ष पूर्व 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन कलकत्ता में हिंदी और बंगाली में गाया गया था। सरला देवी चौधरानी जो रिश्ते में टैगोर जी की भतीजी लगती थी उन्होंने कुछ बच्चों के साथ मिलकर इसे कांग्रेस अध्यक्ष विशन नारायण दत्त, अंबिका चरण मजूमदार, भूपेंद्र नाथ बोस और अन्य नेताओं के सामने अपनी आवाज में गाया था। बाद में इसका हिंदी और उर्दू में रूपांतरण आबिद अली द्वारा किया गया।
24 जनवरी, सन 1950 को संविधान सभा ने इसे आजाद भारत का अपना राष्ट्रगान घोषित किया था। इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद 'दि मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया' 1919 में स्वयं गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा ही किया गया था। इसके बाद अंग्रेजी संगीतकार हरबर्ट मुरिल्ल ने इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के विशेष अनुरोध के कारण बजाया था। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने बांग्लादेश का राष्ट्रगान (आमार सोनार बांग्ला) और श्रीलंका का राष्ट्रगान भी लिखा। वे दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को एक से अधिक देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया है।
जन-गण-मन को राष्ट्रगान बनाने के पीछे का कारण:
जन-गण-मन को राष्ट्रगान बनाने के पीछे सबसे मुख्य कारण है इसका अर्थ। इसके कुछ भाग का अर्थ यह होता है कि ‘भारत के नागरिक भारत की सम्पूर्ण जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है। हे अधिनायक! तुम ही भारत के भाग्य विधाता हो’। इसके साथ-साथ इसमें देश के अलग-अलग विभिन्न प्रांतों का जिक्र भी किया गया है और उनकी अद्वितीय खूबियों के बारे में बताया गया है इसीलिए स्पष्ट रूप से इसे राष्ट्रगान बनाया गया। इसमें 11 पक्तियां हैं।
दूसरी तरफ वंदे मातरम को भी राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी लेकिन उसे राष्ट्रगीत के रूप में मान्यता मिली क्योंकि उसकी आरंभ की चार पंक्तियां तो देश को समर्पित हैं किन्तु बाद की सभी पंक्तियां मां दुर्गा को समर्पित हैं। अर्थात यह बंगाली भाषा में है और उनमें मां दुर्गा की स्तुति की गई है और इस वजह से उस समय ऐसे किसी भी गीत को राष्ट्रगान बनाना उचित नहीं समझा गया। जिसमें देश की बात ना होकर देवी-देवताओं का जिक्र हो।
अतः वंदे मातरम को राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत बनाया गया और राष्ट्रगान के साथ-साथ राष्ट्रगीत को भी मान्यता मिली थी।
राष्ट्रगान के लिए बनाए गए कानून:
राष्ट्रगान का अपमान करने, इसे किसी भी प्रकार से गाने से रोकने पर या इसे आधार बनाकर किसी को परेशान करने के जुर्म में किसी भी संबंधित व्यक्ति और समूह के खिलाफ ‘प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971’ की धारा-3 के तहत कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। यदि सम्बन्धित व्यक्ति राष्ट्रगान के अपमान का दोषी पाया जाता है तो उसे 3 वर्ष का कारावास और जुर्माने का भी प्रावधान है। संपूर्ण देशवासियों से यह उम्मीद की जाती है कि जब भी राष्ट्रगान बज रहा हो या गाया जा रहा हो तो वह अपना सारा काम छोड़ कर अपनी जगह पर सावधान मुद्रा में खड़े होकर इसका सम्मान करेंगे। राष्ट्र ध्वज फहराते वक्त या फिर परेड के साथ केंद्रीय व राज्य सरकारों के कार्यक्रम में राष्ट्रगान बजाया जाता है। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो का राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र को संबोधित करने से ठीक पहले और अंत में राष्ट्रगान बजाने का नियम अहम है।
सुभाष चंद्र बोस द्वारा अपनाया गया था यह गीत:
गुरुदेव द्वारा लिखे गए राष्ट्रगान में 5 पद है परंतु राष्ट्रगान के रूप में इसके पहले पद को ही अपनाया गया था। अपनी आजाद हिंद फौज में ‘जय हे’ के नाम से इस गीत को सुभाष चंद्र बोस ने भी अपनाया था। जन गण मन का 1912 में 'तत्वबोधिनी' नामक पत्रिका में पहली बार प्रकाशन हुआ था और तब इसका शीर्षक 'भारत विधाता' था। हरियाणा के फरीदाबाद जिले के मनकपुर गांव में और तेलंगाना की जम्मी कुंटा गांव में हर सुबह राष्ट्रगान सामूहिक रूप से गाया जाता है।
राष्ट्रगान को लेकर हुए विवाद:
राष्ट्रगान को लेकर अनेक विवाद सामने आए हैं। आरंभ में एक अजीब सा विवाद इसे लेकर खड़ा हुआ। इसके बारे में यह कहा जाने लगा कि इस राष्ट्रगान को जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया है परंतु इस पर स्वयं गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने सफाई देते हुए इसका खंडन किया।
दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था कि सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने के बाद राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए, परंतु कुछ जगहों पर इसका पुरजोर विरोध हुआ। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। अब वर्तमान समय में सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाता है।
अंग्रेजों द्वारा अनिवार्य किया गया था यह गीत:
सन 1870 में जब गुलामी का दौर चल रहा था तो अंग्रेजों ने एक गीत को गाना अनिवार्य कर दिया था जिसका नाम था 'गॉड सेव द क्वीन'। अंग्रेजों के इस आदेश से उस वक्त के सरकारी अधिकारी रहे बंकिम चंद्र चटर्जी को काफी बुरा लगा। जिसके बाद उन्होंने इस गीत के विकल्प के तौर पर 'वंदेमातरम्' एक नए गीत की रचना की। इसे सन 1876 में संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से तैयार किया गया था। शुरुआत में इसके केवल 2 पद ही रचे गए थे जो संस्कृत में थे।
राष्ट्रगान से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य:
राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय चिन्ह की तरह ही राष्ट्रगान के सम्मान को बरकरार रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। जैसे राष्ट्रगान को पूरा गाने में 52 सेकंड का समय लगता है और विभिन्न अवसरों पर इसे पूरा गाया जाता है। परंतु कई अवसरों में इसे संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है। जिसमें 20 सेकंड का समय लगता है इस तरह के संक्षिप्त गान में राष्ट्रगान के शुरुआती और आखिरी की लाइनों को ही गाया जाता है।
इसमें कुल 5 पद थे परंतु पहले पद को ही राष्ट्रगान के रूप में लिया गया है।
राष्ट्रगान जन-गण-मन के बोल और संगीत दोनों ही रविंद्र नाथ टैगोर जी द्वारा स्वयं तैयार किए गए हैं और आज हम राष्ट्रगान को जिस लय में गाते हैं उसे रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा ही संगीतबद्ध किया गया था। यह कार्य आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले मदन पिल्लै में हुआ था।
मशहूर कवि जेम्स कज़िन की पत्नी मारग्रेट ने भी राष्ट्रगान का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। वह बेसेंट थियोसॉफिकल कॉलेज की प्रधानाचार्य थीं।
राष्ट्रगान से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे गाते वक्त सावधान की अवस्था में खड़े होना चाहिए।
बंगाली में लिखे राष्ट्रगान में ‘सिंध’ नाम आता है लेकिन जब देश का बंटवारा हुआ तो सिंध पाकिस्तान का एक भाग बन गया इसलिए इसे लेकर विरोध हुआ और बाद में इसे सिंध की जगह ‘सिंधु’ कर दिया गया।