देश की स्वतंत्रता के लिए कई क्रांतिकारी वीरों तथा नेताओं ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता के आसमान पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से अंकित किया। ऐसे विजयी भारत के दो अनमोल रत्न थे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल। ये दो ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपने हिम्मत और होंसले के दम पर स्वतन्त्रता के संघर्ष की धारा को ही बदल कर रख दिया। कहा जाता है कि सरदार वल्लभभाई पटेल तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच हमेशा से ही वैचारिक मतभेद थे परंतु वे दोनों आजादी के संघर्ष में सदा अंग्रेजों के विरुद्ध एक साथ अपनी आवाज को बुलंद करते हुए शामिल होते थे। ऐसे ही टकराव भरी एक स्थिति यह थी जब यह दोनों महान नेता एक जायदाद को लेकर आमने-सामने थे। यह जायदाद थी विट्ठल भाई पटेल की। विट्ठल भाई पटेल जो कि रिश्ते में सरदार पटेल के बड़े भाई थे तथा यह मुकदमा ब्रिटिश अदालत में पूरे एक साल तक लड़ा गया।
अब आप सबके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि फिर आखिर क्यों सुभाष चंद्र बोस विट्ठल भाई पटेल की संपत्ति पर अपना हक जता रहे थे और इतना बड़ा दावा कर रहे थे? Sardar Patel and Subhas Chandra Bose
इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें सबसे पहले इस विवाद की सम्पूर्ण कहानी को विस्तार से जानना होगा। आइये देश के बड़े नेताओं से जुड़े इस रहस्य को जानते हैं !
सरदार वल्लभभाई पटेल
सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। ये पांच भाई थे जिनमें विट्ठल भाई पटेल इन से बड़े थे। दोनों ने बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की हुई थी और दोनों ही अपने जमाने के प्रसिद्ध वकीलों में से एक थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल के सुभाष चंद्र बोस के साथ कई सारे मतभेद थे। वल्लभ भाई पटेल की जीवनी में यह उल्लेख किया गया है कि "वे सुभाष की क्षमता पर संदेह करते थे। इसके अलावा उन दोनों में कई सारे मतभेद थे जैसे सरदार वल्लभ भाई पटेल जी चाहते थे कि 1937 में चुनी गई कांग्रेस की सरकार अपना कार्य जारी रखें ओर इसे निरंतर करते रहें जबकि बोस चाहते थे कि सरकारें अपना पद त्याग कर लें और अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष में शामिल हो जाएं। वहीं दूसरा मतभेद गांधी जी से सम्बंधित था। सुभाष चंद्र जी गांधी जी को गैर जरूरी मानते थे परंतु सरदार पटेल गांधीजी को बेहद अहम किरदार में देखते थे। इसी तरह से इन दोनों नेताओं के बीच कभी कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर टकराव हुआ तो कभी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के तरीकों को लेकर।
सरदार पटेल अपने जमाने में सबसे अधिक फीस लेने वाले वकील थे। परंतु जब प्रथम विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में रोलेट एक्ट लागू कर दिया और निजी आजादी को भी छीन लिया गया। उस समय पंजाब में भी दमन हुआ तथा गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया। इसी समय सरदार पटेल जी ने अपने वकील के पद को छोड़कर आजादी के आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया।
विट्ठल भाई पटेल
विट्ठल भाई पटेल का जन्म 27 सितंबर 18 सितंबर को हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई स्थानीय स्तर पर हुई। उसके बाद वह बैरिस्टर बनने के लिए पढ़ाई को लेकर लंदन जाने के बहुत इच्छुक थे। उनके साथ-साथ सरदार पटेल जी का भी यह सपना था कि वह बैरिस्टर बनने के लिए लंदन जाएं, परंतु पारिवारिक हालात को देखते हुए उनका यह सपना सच होना मुश्किल था। इसी कारण विट्ठल भाई ने वकालत की डिग्री ली और गोधरा में जूनियर वकील के तौर पर अभ्यास करने लगे।
एक गलती और विट्ठल चले गए लंदन
कहते हैं जो चीज किस्मत में लिखी होती है वह एक न एक दिन अवश्य मिलती है इसी वाक्य को सच करते हुए एक घटना घटी। इस घटना का वर्णन एक पुस्तक के माध्यम से इस प्रकार है- "इंग्लैंड में बैरिस्टरी पढ़ने के लिए वल्लभभाई पटेल बड़ी मेहनत से रुपए जमा कर रहे थे। आखिर उनके पास ठीक-ठाक रुपए इकट्ठा हो गए थे। उन्होंने एक प्राइवेट एजेंसी से अपने लिए पासपोर्ट और टिकटों का इंतजाम भी करवा लिया।" उस जमाने में लंदन जाने का टिकट और पासपोर्ट डाक द्वारा सभी को भेजा जाता था। इधर वल्लभभाई लंदन जाने की तैयारी में रोज डाक का इंतजार करते रहते थे तथा दूसरी ओर डाक विट्ठल भाई पटेल के घर पहुंच गई। असल में बात यह थी कि दोनों भाइयों के नाम अंग्रेजी के V अक्षर से शुरू होते थे। बड़े भाई का नाम विट्ठल भाई झावेरी पटेल तथा छोटे का नाम वल्लभभाई झावेरी पटेल था और पासपोर्ट की डिलीवरी Mr. V. J. Patel, Pleader के नाम पर हुई। इस तरह से विट्ठल भाई को यह लगा कि लंदन जाने का यह मौका उनके लिए था। उन्होंने छोटे भाई को बताया। सामाजिक मर्यादाओं में बंधे होने के कारण छोटे भाई चुप रह गए तथा विट्ठल भाई पटेल अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए लंदन पहुंच गए। वल्लभ भाई पटेल ने लंदन जाने के लिए फिर से पैसे जोड़े तथा 5 साल बाद वे भी वकालत के लिए लंदन चले गए।
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भारत वापसी के बाद
36 महीने का कोर्स 30 महीने में पूरा करके विट्ठल 1913 में वापस भारत लौट आए तथा प्रसिद्ध वकील बन गए। 1915 में उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद उन्होंने वकालत में खूब सम्पत्ति इकट्ठा की। तत्पश्यात विट्ठल कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन जब 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन बंद कर दिया गया तो इस बात से निराश होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। तब उन्होंने एक नई पार्टी स्वराज पार्टी बनाई, जिसमें मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास उनके साथ शामिल थे। 1932 में जेल जाने के बाद विट्ठल को हेल्थ ग्राउंड पर रिहा किया गया था। इसके बाद 1932 मार्च में उन्होंने भारत छोड़ दिया। वह पहले अमेरिका और यूरोप की यात्रा पर गए काफी लोगों से उन्होंने संपर्क स्थापित किया तथा आजादी के आंदोलन में गांधी के नेतृत्व से उन्हें निराशा हो रही थी, फिर वे ऑस्ट्रिया आ गए। इसी समय सुभाष चंद्र बोस भी उनके साथ थे।
वसीयत लिखी बोस के नाम
जब विट्ठल भाई ऑस्ट्रिया में थे तो वे काफी बीमार हो चुके थे। उस समय उनकी सुभाष चंद्र बोस द्वारा बहुत सेवा की गई थी। इसी दौरान उन्होंने अपनी वसीयत में सुभाष चंद्र बोस को 1/4 हिस्सेदारी सौंप दी। इसमें यह लिखा कि इस धन का प्रयोग विदेशों में भारत की आजादी के आंदोलन की रफ्तार को तेज करने के लिए किया जाएगा। इसके बाद 1933, 22 अक्टूबर को स्विट्जरलैंड के जिनेवा में 87 वर्ष के विट्ठलभाई का देहांत हो गया। जब उनका शव भारत पहुंचा तो वल्लभ भाई पटेल नासिक जेल में बंद थे।
वसीहत पर उठे कई सवाल
वल्लभ भाई पटेल स्वयं एक प्रसिद्ध वकील थे। इसलिए उन्होंने विट्ठल कि इस वसीहत पर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कोर्ट में इसे चुनौती दे दी और कहा- यदि जेनेवा में विट्ठल भाई के तीन और परिचित मौजूद थे (जिनमें भूलाभाई देसाई, वालचंद हीराचंद और अंबालाल साराभाई का नाम अहम है) तो उस समय उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया? तथा इस पर डॉक्टर डीटी पटेल या अन्य किसी डॉक्टर के हस्ताक्षर क्यों नहीं हैं? एक और दलील इस बारे में पेश की गई थी। इस वसीहत के सभी गवाह बंगाल के ही क्यों हैं? जबकि वहां पर कई सारे कांग्रेस नेता भी मौजूद थे। मुंबई हाई कोर्ट में चले इस मुकदमे में जस्टिस बीजे वाडिया की अदालत ने पटेल को सही ठहराया तथा विट्ठल के कानूनी उत्तराधिकारी वल्लभ भाई पटेल को घोषित करते हुए उन्हें संपत्ति का वारिस करार दिया। इसमें सुभाष चंद्र बोस के वकील शरत चंद्र बोस थे। इसके बाद भी सुभाष चंद्र बोस ने फेडरल कोर्ट में एक बार फिर मुकदमा दायर किया परंतु इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
ट्रस्ट बनाकर दान की संपत्ति
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने अपनी जीत के बाद एक विट्ठलभाई मेमोरियल नाम का ट्रस्ट बनाया और पूरी जायदाद इस ट्रस्ट के नाम कर दी। यह ट्रस्ट समाज कल्याण पर काम करता था।