S. Srinivasa Iyengar
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महान योद्धा शेषाद्री श्रीनिवास आयंगर की कहानी | S. Srinivasa Iyengar

भारत देश के एक विख्यात तथा प्रतिष्ठित वकील और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाले 'शेषाद्री श्रीनिवास आयंगर' जिन्हें शायद बहुत ही कम लोग जानते होंगे परंतु इनकी भूमिका भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाले संग्राम (जिसे स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है) में महत्वपूर्ण रही है। यह मद्रास प्रेसिडेंसी के एडवोकेट जनरल से लेकर कानून सदस्य और स्वराज पार्टी के अध्यक्ष के रूप में भी काफी चर्चित रहे हैं। 


आइए जानते हैं 'दक्षिण का शेर' नाम से प्रचलित S. Srinivasa Iyengar से संबंधित महवपूर्ण घटनाएं एवं उनके जीवन के बारे में कुछ बातें


प्रारंभिक जीवन (जन्म)


प्रमुख रूप से वकील तथा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले S. Srinivasa Iyengar 11 सितंबर 1874 को रामनाथपुरम जिले में जन्मे थे। यह जिला उस समय ब्रिटिश प्रेसिडेंसी के अंतर्गत आता था। श्रीनिवास आयंगर का जन्म जिले के प्रमुख जमींदार शेषाद्री आयंगर के परिवार में हुआ था। वे मद्रास प्रेसिडेंसी के बड़े ही रूढ़िवादी वैष्णव ब्राह्मणों में से एक थे। आयंगर की प्राथमिक शिक्षा तमिल भाषा में ही हुई तथा उसके बाद मदुरई से उन्होंने स्कूल की शिक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात मद्रास में स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज से ही उनकी स्नातक की पढ़ाई पूरी हुई।


कानूनी शिक्षा


1898 से ही S. Srinivasa Iyengar ने एक वकील के रूप में अभ्यास कार्य मद्रास उच्च न्यायालय में प्रारंभ कर दिया था।  उन्हें हिंदू धर्म शास्त्र का भी काफी ज्ञान था जिससे उन्हें एक अलग पहचान बनाने में काफी मदद मिलती थी। अयंगर के अनुयाई उन्हें "दक्षिण का शेर" कहा करते थे। आयंगर शंकरन नायर के बहुत सारे कार्य किया करते थे जिस कारण वे उनके दाहिने हाथ के रूप में जाने जाने लगे। इसी दौरान स्वराज्य पार्टी के अध्यक्ष सत्यमूर्ति ने भी आयंगर के जूनियर के रूप में उनके नीचे कार्य किया तथा उसके पश्चात स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने आयंगर का अनुसरण करते हुए प्रदर्शन किया। सत्यमूर्ति ने अयंगर को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया था तथा वे उनके नक्शे कदमों पर ही चल पड़े थे।

  • 1911 में आयंगर ने एक आंदोलन का नेतृत्व किया जोकि सिविल मैरिज बिल विधेयक के विरोध में किया जा रहा था।
  • 1912 में मद्रास बार काउंसिल में आयंगर को नियुक्ति मिली और उन्होंने 1912 से 1916 तक अपनी सेवा वहाँ दी।
  • 1916 में वे मद्रास प्रेसिडेंसी के एडवोकेट जनरल बनाए गए जो कि इस पद पर बैठने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।
  • 1912 से 1916 तक उन्होंने मद्रास सीनेट के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भी कार्य किया। 
  • 1916 से 1920 तक श्रीनिवास आयंगर ने मद्रास के गवर्नर की कार्यकारी परिषद में कानून सदस्य के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • श्रीनिवास आयंगर 1920 के नए साल के सम्मान में तथा उनकी सेवाओं की मान्यता में 'भारतीय साम्राज्य का साथी' (CIE) की नियुक्ति मिली।


राजनीतिक गतिविधियों में भूमिका

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के योद्धा के रूप में

पहले पहल श्रीनिवास आयंगर ने अपनी छोटी-छोटी रूचि राजनीति में प्रस्तुत की थी। उसके बाद सूरत में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक सत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण रूप से 1960 में भाग लिया था, जिसे कि चरमपंथियों तथा मॉडरेट के विभाजन के लिए याद किया जाता रहा है। इसके बाद आयंगर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड वाली घटना के बाद ही गंभीरता से राजनीति में प्रवेश किया।


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सन 1920 में आयंगर ने राज्यपाल की कार्यकारी परिषद से जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरुद्ध आवाज उठाई तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की इससे पहले उन्होंने मद्रास के एडवोकेट जनरल (महाधिवक्ता) के पद से इस्तीफा दे दिया।

अपने इस विरोध के कारण उन्होंने फरवरी 1921 में CIE भी वापस लौटा दिया तथा असहयोग आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सन 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 29वें सत्र की अध्यक्षता की जोकि मद्रास में पूर्ण हुआ।

1920 में श्री निवास आयंगर ने टिननेवे में आयोजित मद्रास के प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता कि उसके बाद 1921 में अहमदाबाद, 1922 में गया, 1923 में काकीनाडा तथा दिल्ली 1924 में बेलगाम, 1925 में कानपुर, 1926 में गोहाटी, 1927 में मद्रास, 1928 में कोलकाता तथा 1929 में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्रों की अध्यक्षता की।

श्रीनिवास आयंगर का एक विशेष योगदान हिंदू मुस्लिम एकता को बचाने में भी है। इसके लिए उन्होंने अत्यंत मेहनत की तथा दोनों समुदायों के राजनीतिक नेताओं के बीच एक राजनीतिक समझौता भी कायम किया।

सन 1927 में आयंगर ने भारत के भविष्य के लिए सरकार की एक संघीय योजना की रूपरेखा तैयार की तथा स्वराज संविधान को भी प्रकाशित किया। जब 1923 में कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो गई थी जिसमें एक में गांधीवादी तथा दूसरे में परिषद के प्रवेश का समर्थन था, तब श्रीनिवास जी गांधीवादी विरोधी खेमे में थे और उन्होंने मद्रास प्रांत स्वराज्य पार्टी की स्थापना भी की।

30 अगस्त सन 1928 को में जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर श्रीनिवास ने "इंडियन इंडिपेंडेंस लीग" का गठन किया। तत्पश्चात श्रीनिवास आयंगर को कांग्रेस की डेमोक्रेटिक पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया तथा सचिव के रूप में सुभाष चंद्र बोस को इसके लिए निर्वाचित किया गया।

सन 1930 के शुरुआती दौर में ही श्रीनिवास ने अपने सक्रिय सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्ति की घोषणा कर दी थी।जिसके बाद उनका जीवन 1938 में फिर से राजनीति की ओर लौट पड़ा। परंतु इस समय में वे संक्षिप्त रूप से ही राजनीति में लौटे तथा उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सुभाष चंद्र बोस जी का भी विशेष समर्थन किया।

लेकिन जब सुभाष चंद्र बोस जी ने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' का गठन किया था तो तब उन्होंने इसका विरोध करते हुए इसे एक 'टपका हुआ नाव' बताया था। इस तरह श्रीनिवास जी राजनीति में 1938 के बाद बहुत कम समय के लिए ही सक्रिय रहे।


आयंगर की मृत्यु


श्रीनिवास आयंगर का राजनीति में पुनः प्रवेश का वक्त बहुत कम इसलिए कहा जाता है क्योंकि 29 मई 1941 को 66 वर्ष की उम्र में उनके निवास स्थान पर अचानक उनका देहांत हो गया था तथा एक महान वकील और राजनीतिज्ञ हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर चला गया।

1939 की अयंगर की एक पुस्तक 'मेयनेज हिंदू लॉ' को उनके जीवन की विशेष तथा उत्कृष्ट कृति माना जाता है। श्रीनिवास जी को कामराज जैसे प्रतिष्ठित नेता को कांग्रेस में शामिल करने का श्रेय जाता है। दक्षिण भारत के एक छोटे से गांव में जन्मे इस व्यक्ति ने कांग्रेस को लोकप्रियता दिलाने में विशिष्ट तथा महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

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