महाशय धर्मपाल गुलाटी
जीवन परिचय
उपनाम- मसाला किंग, दादाजी, महाशयजी, मसालों के राजा
व्यवसाय-व्यवसायी
प्रसिद्ध - एमडीएच मसालों के मालिक होने के नाते
महाशय गुलाटी एमडीएच मसाले
व्यक्तिगत जीवन
जन्मतिथि- 27 मार्च 1923 (मंगलवार )
जन्मस्थान- सियालकोट, उत्तर-पूर्व पंजाब, पाकिस्तान
मृत्यु तिथि- 3 दिसंबर 2020 (गुरुवार)
आयु (मृत्यु के समय)- 97 वर्ष
मृत्यु का कारण- दिल का दौरा [1]
शैक्षणिक योग्यता- पांचवी पास (पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी)
पुरस्कार एवं सम्मान
वर्ष 2016 - एबीसीआई वार्षिक पुरस्कारों में 'इंडियन ऑफ़ द ईयर'
वर्ष 2017- लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए उत्कृष्टता पुरस्कार
वर्ष 2017- एफएमसीजी क्षेत्र में सबसे ज्यादा
पत्नी - लीलावन्ती
गुलाटी का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था, जहां उनके पिता “महाशियाँ दी हट्टी” नामक एक दुकान से मसाले बेचने का कार्य करते थे।
वह आर्य समाज के बहुत बड़े अनुयायी हैं।
10 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ दी (जब वह पांचवी कक्षा में थे) और अपने पिता की दुकान पर कार्य करना शुरू कर दिया।
7 सितंबर 1947 को, वह भारत-पाक विभाजन के बाद अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से दिल्ली, भारत लौट आए।
उसके बाद, वह दिल्ली के करोल बाग़ में अपनी भतीजी के घर पर रहने लगे, जहां पानी, बिजली की आपूर्ति नहीं थी।
जब वह दिल्ली आए, तब उनके पिता ने उन्हें ₹1500 दिए थे, जिसमें से धर्मपाल गुलाटी ने ₹650 का तांगा (घोडा गाड़ी) खरीद लिया और कनॉट प्लेस से करोल बाग़ तक यात्रियों से 2 आने लेते थे।
उन्हें अपनी आजीविका के लिए पर्याप्त रूप से साबित नहीं होने के कारण अक्सर अपमानित होना पड़ता था। इसलिए उन्होंने अपनी तांगा (घोडा गाड़ी) को बेच दिया और अजमल खान सड़क के किनारे एक छोटी सी दुकान बनाई और अपने परिवार का पुराना कारोबार मसालों को बेचना शुरू किया।
प्रारंभ में सफलता के बाद, उन्होंने वर्ष 1953 में चांदनी चौक में एक और दुकान किराए पर ली, जिसके चलते वर्ष 1959 में उन्होंने स्वयं की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए कीर्ति नगर में जमीन खरीदी, जहां उन्होंने एमडीएच मसालों के साम्राज्य यानि महाशियां दी हट्टी लिमिटेड की स्थापना की, जिसका अर्थ है “एक महानुभाव आदमी की दुकान” पंजाबी में।
एमडीएच स्विट्ज़रलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाड़ा, यूरोपीय देशों, इत्यादि में मसालों का निर्यात करता है।
वर्तमान में, एमडीएच भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मसालों की श्रेणी में सबसे बड़े ब्रांडों में से एक के रूप में उभरा है, जिसका 90 साल की उम्र पार करने के बाद भी धर्मपाल गुलाटी स्वयं एमडीएच उत्पादों का विज्ञापन करते हैं।
एमडीएच 50 से भी अधिक विभिन्न उत्पादों को बेचता है।
उनके द्वारा “महाशय चुन्नीलाल चैरिटेबल ट्रस्ट” चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत 250 बिस्तरों वाला एक अस्पताल और झोपड़पट्टी के निवासियों के लिए एक मोबाइल अस्पताल चलाया जा रहा है। इसके अलावा दिल्ली में 4 स्कूल भी चलाता है। इस ट्रस्ट के द्वारा वित्तीय सहायता भी सामाजिक संगठनों को दी जाती है।एमडीएच संदेश पत्रिका भी चलाता है, जो भारत के पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों को प्रदर्शित करता है।
वह अपनी सेहत के प्रति काफी सजग रहते हैं, जिसके चलते वह सुबह 5 बजे योगा करते हैं।
महाशय धर्मपाल गुलाटी एक उद्यमी तथा समाजसेवी हैं. दुनियाभर में अपने मसालों के जायकों के लिए पहचाने जाते हैं. विज्ञापन में मसाला की दुनिया के बादशाह ‘मसाला किंग’ के नाम से जाने जाते है. इन्हें विश्वप्रसिद्ध MDH (महाशिया दी हट्टी) मसाला कम्पनी समूह की स्थापना की थी.आज भारत के अलावा दुबई और लंदन में भी MDH मसलों का कारोबार था।
मसालों की दुनिया के बादशाह “मसाला किंग” कहे जाने वाले बुजु्र्ग महाशय धर्मपाल गुलाटी दुनियाभर में अपने मसालों के जायकों के लिए पहचान जाते है. 95 साल के युवा मसाला किंग की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है. महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल की सियालकोट (पाकिस्तान) में ‘महाशय दी हट्टी’ नाम से दुकान थी. भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त परिवार सियालकोट से दिल्ली के करोलबाग में आकर बसा था.
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जब धर्मपाल करोलबाग पहुंच थे तो उनकी जेब में 1500 रुपये ही थे. पिता से मिले इन 1500 रुपये में से 650 रुपये का धर्मपाल गुलाटी ने घोड़ा और तांगा खरीद लिया और इस तरह धर्मपाल गुलाटी, तांगवाला बन गए. वे अपना तांगा दिल्ली के कुतुब रोड पर दौड़ाया करते थे. पर इस काम में महाशय का मन ज्यादा दिन तक नहीं लगा और उन्होंने अपने पुश्तैनी व्यापार मिर्च मसालों के धंधे को जिसका नाम महाशियां दी हट्टी था को फिर से शुरू करने का निश्चय किया जो आज मसालों की दुनिया में MDH के नाम से एक बड़ा ब्रांड बन चुका है.
महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म अविभाजित भारत के सियालकोट (पाकिस्तान) के मोहल्ला मियानपुरा में 27 मार्च, 1923 को हुआ था. महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल मिर्च मसालों की एक दुकान चलाते थे, जिसका नाम महाशियां दी हट्टी था. सियालकोट के बाजार पंसारिया में चुन्नीलाल की मसालों की दुकान जम चुकी थी. पूरे सियालकोट में उनकी देगी मिर्च की धूम थी. महाशय चुन्नीलाल के पांच बेटियों औऱ तीन बेटों का भरा पूरा परिवार था.
महाशय धर्मपाल गुलाटी का आरम्भिक जीवन
वर्ष 1933 में, उन्होंने 5 वीं कक्षा पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ा था.सात साल के धर्मपाल का मन पढ़ाई में कम पतंगबाजी और कबूतरबाजी में ज्यादा रमता था. पढाई से दूर भागने वाले महाशय धर्मपाल को पहलवानी का भी शौक था. 1937 में, उन्होंने अपने पिता की मदद से मिरर दिखने का एक छोटा सा व्यवसाय स्थापित किया और इसके बाद साबुन व्यापार और अनेको नौकरिया और व्यापार किये पर उनका मन इनमें से किसी भी व्यवसाय में नहीं लगा. इसके बाद वे अपने पिता के व्यवसाय में ही उनका हाथ बंटाने लगे. देश के विभाजन के बाद, वह भारत आए और दिल्ली पहुंच कर मसाला व्यवसाय में सफलता हासिल की.
टीवी विज्ञापन से मशहूर हुए महाशय धर्मपाल गुलाटी
96 साल की उम्र में आज भी जब महाशय धर्मपाल गुलाटी टीवी विज्ञापन में आते हैं तो लोग इस उम्र में भी उन्हें देख कर स्वस्थ रहने का राज खोजते है.
क्या है MDH वाले गुलाटी जी के सेहत का राज
महाशय धर्मपाल के फिटनेस का राज अनुशासित और संयमित जिंदगी के कड़े नियम है. वह सुबह सूर्योदय के समय बिस्तर छोड़ देते हैं और लगभग पांच बजकर सैर के लिए घर से निकल पड़ते हैं. सूरज की पहली किरण से पहले ही महाशय धर्मपाल पार्क में सैर के लिए पहुंचते हैं. उनकी सैर का ये सिलसिला सालों से इसी तरह चला आ रहा है. सैर के दौरान ही महाशय धर्मपाल योगा और वर्जिश भी करते हैं. धर्मपाल शुद्ध संतुलित भोजन और संयमित जीवन को ही अपनी फिटनेस का राज बताते हैं.
युं बने मसाला किंग
विभाजन के समय सियालकोट का ये संपन्न परिवार जब भारत आया तो इनके पास कुछ नहीं था. किसी तरह दिल्ली पहुंचने के बाद साल 1948 में धर्मपाल ने अपना तांगा ख़रीदा और पर 2 महीने बाद ही तागे का धंधा छोड़ कर करोलबाग की अजमल खां रोड पर एक छोटी सी दुकान बना ली.
सियालकोट की एक बड़ी और दुकान से उठ कर अब धर्मपाल का पूरा परिवार एक छोटे से खोखे में आ गया था. मेहनती और व्यापार में निपुण धर्मपाल ने अखबारों में विज्ञापन देने शुरु किये “सियालकोट की देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में है” जैसे-जैसे लोगों को पता चला धर्मपाल का कारोबार तेजी से फैलने लगा और 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी करोलबाग में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी. मसालों की शुद्धता गुलाटी परिवार के धंधे की बुनियाद थी.
यही वजह थी कि धर्मपाल ने मसाले खुद ही पीसने का फैसला कर लिया. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. महाशय की ये मुश्किल ही उनकी कामयाबी की वजह बन गई. गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी. जिसका सालाना करोडों रुपयों का टर्न ओवर है.
महाशय धर्मपाल का वैवाहिक जीवन
देश में चारों तरफ जब आजादी का आंदोलन पूरे उफान पर था. उस दौर में 18 बरस की उम्र में धर्मपाल जी का विवाह लीलावती के साथ हुआ. शादी के बाद नई जिम्मेदारी को धर्मपाल बखूबी निभाया. 1992 में महाशय धर्मपाल की पत्नी लीलावती का निधन हो गया.
महाशय धर्मपाल गुलाटी का सामाजिक कार्य
साल 1975 में, सुभाष नगर, नई दिल्ली में एक छोटे 10 बिस्तरों का अस्पताल शुरू किया. समाज सेवा के काम को आगे बढ़ाते हुए महाशय ने, महाशय धर्मपाल के ट्रस्ट के जरिये दिल्ली में स्कूल, अनाथ आश्रमों अस्पताल गौशाला और अनेको सामाजिक कामों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
MDH कंपनी
मसालों का एक लंबा और प्राचीन इतिहास है, खासकर भारत में, जहां वे जीवन और विरासत का हिस्सा हैं. MDH करोड़ों रुपये के मसालों का निर्माण आधुनिक मशीनों द्वारा करता है. 1000 से अधिक स्टॉकिस्ट और 4 लाख से अधिक खुदरा डीलरों के नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत और विदेशों में MDH मसाले बेचे जाते हैं.