श में चल रहे लॉकडाउन में जहां हर प्रकार के अपराध में गिरावट दर्ज की गई तो वहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला। जहां लॉकडाउन में हिंसा में कमी आनी चाहिए थी तो वहां प्राथमिकी शिकायत दर्ज में कमी पाई गई, इसका कारण लॉकडाउन में हुए चौकी और थानों का बंद होना। जिस प्रकार की स्थिति लॉकडाउन से पहले थी; जैसे कि दहेज हत्या, ग्रह कलेश, व महिलाओं का अन्य प्रकार से शोषण, वही स्थिति अभी भी जस की तस है।
Crime Against Womens
वैश्विक महामारी कोरोना ने जहां समूचा विश्व प्रभावित कर लिया, तो वहीं लोगों की लाइफ स्टाइल में भी बदलाव उत्पन्न कर लिया। शारीरिक गतिविधियों से लेकर मानसिक प्रतिक्रिया तक बदलाव देखने को मिला। इस आपदा काल में समूचे विश्व के विशेषज्ञ महामारी से बचने के लिए जीवनपयोगी वैक्सीन बनाने की कवायद में जुटे है। मानव जाति को इस मुश्किल घड़ी से बचाने के लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं तो वहीं इस स्थिति में भी महिलाओं की सुरक्षा एक अहम प्रश्न बनी हुई है, क्योंकि संकट की इस घड़ी में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है।
अनलॉक प्रक्रिया में जिस प्रकार से महिलाओं के अपराध में सभी स्वरूपों में वृद्धि हुई देखने को मिली, तो वही लॉकडाउन के दौरान भी खुद पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ महिला इस समाज से खामोश लड़ती नजर आई। लॉकडाउन में समाज के हर व्यक्ति के जीवन में बदलाव देखने को मिला परंतु भारतीय स्त्रियों के लिए परिस्थितियां जस की तस बनी रही। जो दलदल उन्हें अनलॉक के दौरान था वैसा ही दलदल लॉकडाउन में भी उन्हें नसीब हुआ।
राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्षा कहती हैं कि लॉकडाउन में हर प्रकार के अपराध में गिरावट आई मगर बदकिस्मती से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिला। शहर हो या गांव हर जगह महिलाएं अपराध के लगभग सभी स्वरूपों का शिकार हुई। हालांकि लॉकडाउन में इस अपराध के खिलाफ हिंसा की रिपोर्ट कम दर्ज कराई गई क्योंकि लॉकडाउन से पहले महिलाओं के खिलाफ होने वाली अधिकांश घटनाएं थानों, चौकियों में दर्ज की जाती थी लेकिन लॉकडाउन में बाहर निकलने पर पाबंदी होने से औरतों का यह दुख-दर्द घर की चार दीवारों में दफन होकर रह गई।
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लॉकडाउन में बंदी के कारण वाहन चोरी, हत्या, लूटपाट जैसी हर प्रकार के अपराधों में कमी आई, लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का सिलसिला निरंतर जारी रहा। इस बंद के कारण महिलाओं को शारीरिक के साथ-साथ मानसिक यातना को भी सहना पड़ा था। इस संबंध में परिवार परामर्श केंद्र की सलाहकार निर्मल बख्शी कहती हैं कि लॉकडाउन में सब बंद था, 24 घंटे पति-पत्नी एक छत के नीचे रह रहे थे। काम धंधा बंद होने से मानसिक रूप से परेशान पति अपना गुस्सा पत्नी पर ही निकालने लगा, ऐसे में घरेलू हिंसा की घटनाओं का बढ़ना स्वाभाविक था। यही कारण है कि मार्च से मई तक आपराधिक आंकड़ों में कमी आई लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में खास अंतर नहीं आया। मेडिकल कॉलेज की मनोविज्ञानी और सलाहकार डॉ पूनम देवदत्त कहती हैं कि भारतीय महिलाओं की अपराध सहने की प्रवृत्ति बचपन से ही हो जाती है। Crime Against Womens
देश में उपजे लॉकडाउन उनके कारण शिक्षित, नौकरीपेशा, कामगार और घरेलू सभी महिलाओं को अपमान का सामना करना पड़ा। शहरी और नौकरीपेशा महिलाओं पर लॉकडाउन में घर के कामों का बोझ बढ़ा। परिवार के सभी सदस्यों की जरूरत व इच्छाओं का ख्याल रखने की बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गई। परिवार की इच्छाओं के साथ ही 'वर्क फ्रॉम होम' को भी पूरा करना एक बड़ी चुनौती थी। महिला मुद्दों की जानकारी अतुल शर्मा कहती हैं कि शिक्षा जगत में 80 फ़ीसदी महिलाएं हैं, विशेषकर देश में फैले प्राइवेट स्कूलों में महिला शिक्षकों की बड़ी संख्या है। ऐसे में उन्हें घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करनी है, अन्य कंपनियों व निजी सेक्टर में नौकरी पेशा महिलाओं को भी वर्क फ्रॉम होम मिल गया।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल कहती हैं कि जिस समय पूरा देश कोरोना के खिलाफ एकजुट होकर लड़ रहा था, दुख की बात यह है कि उस समय भी रेप, साइबर क्राइम, घरेलू हिंसा के मामले सामने आ रहे थे। राजधानी दिल्ली में अपराधों की संख्या कम हुई लेकिन बलात्कार, घरेलू हिंसा, पॉक्सो और साइबर अपराध के मामलों में कोई कमी नहीं आई। आयोग की हेल्पलाइन 181 को औसतन रोजाना 1500-1800 कॉल मिलती थी। लॉकडाउन के दौरान महिला अपराध की सर्वाधिक शिकायतें उत्तर प्रदेश से आई। Crime Against Womens
लॉकडाउन काल में केवल भारत के ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि दर्ज नहीं की गई बल्कि ब्रिटेन जैसे विकसित और उच्च शिक्षित वर्ग कहे जाने वाले यूरोपीय देशों में भी यह आंकड़ा बढ़ोतरी की ओर चला। उच्च विकसित देशों में भी महिला अपराधों में वृद्धि होना कहीं ना कहीं 'महिला सशक्तिकरण' पर प्रश्न खड़े करता है। समाज को शिक्षित के साथ-साथ सभ्य और मानसिक रूप से भी महिला के प्रति शिक्षित होना जरूरी है। तभी समाज में महिला हिंसा में कमी देखने को मिल सकेगी।