पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री जिन्हें सभी चाचा नेहरू कहकर बुलाते हैं, उन्हें 15 जुलाई 1955 को भारत रत्न जैसे बड़े सम्मान से तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के द्वारा नवाजा गया था। उस समय पंडित नेहरू प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान थे परंतु जब से यह सम्मान पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ तब से बार-बार इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं तथा उसका जवाब ढूंढ रहे हैं कि क्या नेहरू जी ने स्वयं ही भारत रत्न के लिए अपना नाम दिया था? क्या देश के इस बड़े सम्मान के लिए नेहरू ने स्वयं ही अपना नाम भेज दिया था? चाचा नेहरू के बाद ऐसी ही घटना इंदिरा गांधी के साथ 1971 में भी हुई थी जब उन्हें भारत रत्न दिया गया।
इस लेख के माध्यम से आज हम ऐसे ही सवालों के जवाब आप सभी को बताने जा रहे हैं। इससे पहले यह जानना आवश्यक है कि ऐसा सवाल सबके मन में क्यों उठ जाता है? आइए इसका जवाब जानते हैं:
बात यह है कि भारत रत्न उस इंसान को दिया जाता है जो मानवता के लिए किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन या काम करता है इसलिए नियम के अनुसार देश का प्रधानमंत्री हर साल भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न के लिए राष्ट्रपति को कुछ प्रस्तावित नाम या प्रस्ताव भेजते हैं तथा राष्ट्रपति उसे अंत में फाइनल करते हैं और यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है। परंतु जिस समय नेहरू को यह पुरस्कार दिया गया था उस समय नेहरू स्वयं प्रधानमंत्री थे इसलिए यह कशमकश और संशय लोगों के मन में बना रहता है।
दरअसल बात यह है कि एक बार अशोक नाम के एक व्यक्ति ने इस बात को जानने के लिए आरटीआई लगाई थी। उन्होंने अपनी आरटीआई को विस्तार से बताया है कि 23 नवंबर 2013 को उन्होंने राष्ट्रपति सेक्रेट्रिएट में एक आरटीआई लगाई थी। जिसमें उनके द्वारा यह पूछा गया था कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए किसने प्रस्तावित किया था तथा इस आरटीआई के जवाब में यह बात निकलकर आयी है कि सरकार इस बात का कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखती है कि भारत रत्न के लिए नेहरू जी का नाम किसने प्रस्तावित किया था। इस बात का जिक्र 2018 में एक खबर में हुआ है परंतु अन्य जगहों से यह जानकारी मिलती है कि उस समय के अखबारों में छपी हुई खबर के अनुसार यह माना गया था कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम किसी ने भी भारत रत्न के लिए प्रस्तावित नहीं किया था। यह किसी की भी सिफारिश या प्रधानमंत्री और कैबिनेट की सलाह पर नहीं हुआ था बल्कि बिना किसी की सलाह के उन्हें जो भारत का सर्वोच्च सम्मान देने का निर्णय लिया गया जो कि असंवैधानिक माना जाता है। अब यह बात सीधे-सीधे यह अर्थ बताती है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने कभी भी खुद को भारत रत्न के लिए प्रस्तावित नहीं किया था बल्कि यह फैसला राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का था और उन्होंने यह कहा था कि इस फैसले को जिसे असंवैधानिक मानना है वह मान सकता है।
राष्ट्रपति द्वारा लिया गया फैसला
गौरतलब है कि उस समय जब शीत युद्ध के बाद 13 जुलाई 1955 को जवाहरलाल नेहरू विभिन्न देशों के दौरे से वापस भारत लौट आए थे। यह देश थे सोवियत संघ तथा यूरोपीय देश इस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत को स्थापित करने में कई कोशिशें की और अपनी एक भूमिका उसमें अदा की। इस यात्रा में भी उन्हें सबका समर्थन मिला। एक यही वजह थी कि तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद नेहरू को लेने के लिए अपने सारे प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए एयरपोर्ट तक पहुंच चुके थे और इसके बाद कहा जाता है कि 15 जुलाई को राजेंद्र प्रसाद द्वारा एक विशेष भोज का आयोजन किया गया जो कि राष्ट्रपति भवन में होना सुनिश्चित हुआ था। इस भोज में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी आमंत्रित थे तथा यहीं पर उन्हें अपने दौर का शांति का अग्रदूत कहा गया और भारत रत्न देने की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा की गई थी।
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आइए अब जानते हैं भारत रत्न और उससे संबंधित सुविधाओं के बारे में
भारत रत्न पाने वाले हर व्यक्ति को जिंदगी भर भारत में एयर इंडिया तथा रेलवे की प्रथम श्रेणी में मुफ्त यात्रा करने के लिए मिलती है तथा इनकम टैक्स भी नहीं भरना पड़ता।
जब भी जरूरत हो व्यक्ति को Z ग्रेड की सुरक्षा तथा सुविधा दी जाती है।
विदेश से संबंधित यात्रा में व्यक्ति को भारतीय दूतावास द्वारा सुविधा मिलती है तथा हर राज्य में स्टेट गेस्ट का सम्मान भी दिया जाता है तथा इन्हें वीवीआईपी के समान ही माना जाता है।
भारत रत्न किसी भी नस्ल, भाषा, लिंग या जाति के आधार पर नहीं दिया जा सकता।
भारत रत्न सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही नहीं बल्कि विदेशियों को भी दिया जा सकता है। अब तक 2 विदेशियों को भारत रत्न मिल चुका है। जिनमें अब्दुल गफ्फार खान (1987) में और नेलसन मंडेला (1990) का नाम शामिल है।
एक साल में अधिक से अधिक सिर्फ तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न पुरस्कार से नवाजा जा सकता है।
पहले के नियमानुसार मरने के बाद किसी भी व्यक्ति को भारत रत्न नहीं दिया जा सकता था लेकिन 1955 के बाद यह प्रक्रिया शुरू हो गई और मरने के बाद भी उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को भारत रत्न दिया जाने लगा।
भारत में अब तक 45 लोगों को भारत रत्न पुरस्कार से नवाजा जा चुका है जिनमें से 5 महिलाएं हैं एवं 40 पुरुष हैं।
भारत रत्न का सम्मान भारत के राष्ट्रपति द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिया जाता है। भारत रत्न के साथ किसी भी प्रकार की रकम नहीं दी जाती बल्कि राष्ट्रपति का साइन किया हुआ एक प्रमाण पत्र दिया जाता है तथा इसके साथ-साथ एक मेडल से भी नवाजा जाता है।
भारत रत्न को नाम के साथ किसी भी तरह की पदवी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।