धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म 27 मार्च 1923 को 'पाकिस्तान' के 'सियालकोट' में हुआ था। इनके पिता श्री की सियालकोट में प्रसिद्ध मसालों की दुकान हुआ करती थी वहां पर लोग इन्हें ' देगी मिर्च' वालों के नाम से जानते थे इनके पिता जी इन्हें पढ़ाना चाहते थे परंतु धर्मपाल जी का पढ़ाई में कोई खास रुचि ना होने के कारण इन्होंने पांचवी तक की ही पढ़ाई पूरी करी। उसके बाद आमदनी कमाने के लिए अनेकों कार्यों में हाथ आजमाने लगे। कभी कपड़े की फैक्ट्री तो कभी चावल की फैक्ट्री में काम करने जाते, अपने कार्य से संतुष्टि ना होने के कारण इन्होंने यह कार्य भी छोड़ दिया।
सन् 1947 में जब 'भारत' 'पाकिस्तान' विभाजन हुआ तो तब यह लोग 'सियालकोट' 'पाकिस्तान' से भारत की राजधानी 'दिल्ली' में आए कुछ समय तक की इन्हें रिफ्यूजी कैंप में भी रहना पड़ा । जब यह दिल्ली आए तो इनके पास मात्र पन्द्रह सो रुपए ही शेष थे। इन्होंने दिल्ली में 'तांगे' चलाने से शुरुआत करी, जब इन्हें तांगे चलाने से भी संतुष्टि नहीं मिली तो इन्होंने 'करोलबाग' दिल्ली में ही एक छोटे से मसालों की दुकान खोल दी धीरे-धीरे इनके मसालों के चर्चे पूरी दिल्ली में आग की तरह फैल गये फिर इन्होंने मसालों की फैक्ट्री खोल दी और यह विदेशों में भी अपने मसालों का निर्यात करने लगे।
पांचवी तक पढ़ने वाले धर्मपाल गुलाटी जी को सफलता एक ही दिन में प्राप्त नहीं हुई बल्कि इसके पीछे का संघर्ष और उनकी मेहनत ने उन्हें इस बड़े मुकाम तक पहुंचाया।
धर्मपाल गुलाटी जी को यह मुकाम उनके कर्म और विचारों दोनों के मेल से मिला यह जब अपनी सफलता की कहानी को लोगों को बताते हैं तो इनके विचार लोगों को प्रभावित कर जाते हैं।
धर्मपाल गुलाटी जी के विचार कुछ इस प्रकार से हैं (Dharam Pal Gulati Quotes)
'पेट के लिए की गई मेहनत और ईमानदारी से किया कोई भी कार्य बुरा नहीं होता'।
'अन्नदान वस्त्र दान और ज्ञान का दान यह तीनों दान सबसे बढ़कर है'।
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'आदमी करोड़पति हो सकता है परंतु जब तक उसने अपने मां-बाप और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद ग्रहण नहीं किया तब तक उसका मन कभी भी शांत नहीं हो सकता'।
'ज्ञान वह रखो जिससे चरित्र का निर्माण हो जो ज्ञान भले बुरे का भेद करने में सक्षम हो जो ज्ञान आपके जीवन को आगे बढ़ा सके और आपके खानदान आपके गांव और आपके राष्ट्र का नाम रोशन कर सकें'।
'कामयाबी और किसी कार्य को करने की काबिलियत दोनों का आपस में गहरा संबंध है जो एक दूसरे के बिना अधूरे हैं'।
'सुबह सूरज के जगने से पहले उठ कर अपने लिए समय निकाल लो सूरज उगने के बाद का समय देश को समर्पित होता है'।
'यदि समय रहते हमने अपने देश अपने समाज अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य नहीं किया तो आने वाला समय हमारे लिए संकटों से भरा हो सकता है'।
'हमें यह बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए की एकांगी विकास से सुख शांति हासिल कर पाना नामुमकिन है, सुख शांति हासिल करने के लिए व्यक्ति का सर्वांगीण विकास जरूरी है और यह सद्ज्ञान से ही मुमकिन हो सकता है'।
'मुर्दे क्या खाक जिया करते, हम जिंदा हैं आपके प्यार से, अच्छा काम करो मरने के बाद भी आप अपने अच्छे कार्यों से लोगों के दिलों में जिंदा हो जाया करते हैं'।
'सफल होना इतना भी कठिन कार्य नहीं होता छोटी-छोटी कामयाबी हो से ही सफलता हासिल होतीहै'।
धर्मपाल गुलाटी जी महान् उद्योगपति, महान् विचारक के साथ-साथ एक महान् समाज सेवक भी थे , जिन्होंने मसालों की दुनिया में अपना सर्वोत्कृष्ट कार्य किया साथ ही अपने वेतन का 90% भाग दीन -हीन या गरीब लोगों की शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में लगा दिया। समाज के हित में इन्होंने कई अस्पताल और विद्यालयों का निर्माण कराया। इन्हीं महान् कार्यों के लिए भारत सरकार ने 2019 में इन्हें 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया।