राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष रहे, एक बेदाग नेता, प्रखर बुद्धि, बात करने का ठेठ देहाती लहज़ा और जनता के बीच शामिल रहने का शौक। ये बात हो रही है अपने बेबाक अंदाज़ से सभी के दिलों में एक अलग जगह बनाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह की। वे लालू प्रसाद यादव के बहुत करीबी थे और इसलिए उन्हें लालू प्रसाद यादव का संकटमोचन भी कहा जाता था, परंतु अपने काम से प्रसिद्ध इस नेता ने 10सितम्बर, 2020 को पहले 32 साल पुरानी पार्टी छोड़ी और फिर 13 सितंबर, 2020 को सदा के लिए दुनिया से अलविदा ले ली।
आइये इस लेख के जरिये उनके जीवंत और प्रभावी जीवन के विषय में जानते हैं।
बिहार की राजनीति के जाने माने चेहरे और पिछली पार्टी कही जाने वाली राजद(राष्ट्रीय जनता दल) सवर्णों के प्रिय नेता थे रघुवंश प्रसाद सिंह। उनका पूरा जीवन राजनीति को समर्पित था। अपने आदर्शों और विचारों से दूसरे नेताओं के लिए वे हमेशा से ही प्रेरणा स्रोत रहे थे। राजनीति के गंदे दलदल में भी वे बेदाग कमल के फूल की तरह थे। उनकी खरी बोली और प्रखर व्यक्तित्व तथा सफल नेतृत्व की वजह से ही उनके करीब के लोग उन्हें ब्रम्ह बाबा कहकर पुकारते थे। उनका व्यक्तिव अत्यंत ही प्रभावशाली था। जनता उनके द्वारा किये गए कार्यों और संघर्षों को सदा याद करती रहेगी। पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे रघुवंश बाबू ने रविवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में आईसीयू में भर्ती थे। जिसके चलते उन्होंने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया वे 74 वर्ष के थे।
राजनीति से पहले का जीवन:
रघुवंश बाबू 6 जून, 1946 को वैशाली के शाहपुर में जन्मे थे। पहले वे गणित विषय पढ़ाते थे। उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित से एमएससी की और गणित में ही डॉक्टरी की उपाधि ली तथा लगभग 5 वर्षों (1966 से 1974) तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में गणित के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
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रघुवंश बाबू ने अनेक आंदोलनों में जनता के नायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में रहकर भाग लिया और जेल की हवा भी खायी। पहली बार वे 1970 में टीचर्स मूवमेंट के चलते जेल गए थे। उसके बाद उनका संपर्क कर्पूरी ठाकुर से हुआ, परन्तु इसके बाद वे 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (s.s.p) के सेक्रेटरी बनाये गए और इसी पार्टी के आंदोलन की वजह से जेल भी गए।
1977 से 1995 तक राजनीतिक जीवन पर एक नज़र:
रघुवंश बाबू 1977 से 1995 तक बिहार विधान मंडल के सदस्य बने रहे।
- 1973 सोशलिस्ट पार्टी के सचिव (सेक्रेट्री) बने।
- 1977-1979 बिहार के ऊर्जा मंत्री का पदभार मिला तथा बाद में लोकदल के अध्यक्ष बने।
- 1985-1990 इस समय लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष रहे और लालू प्रसाद यादव के साथ दोस्ती की शुरुआत हुई।
- 1990 बिहार विधानसभा चुनाव में इनकी 2405 वोट हार हुई। रघुवंश बाबू ने पार्टी के भीतर के ही कई नेताओं को इसका जिम्मेदार बताया, परन्तु यह पार्टी सूबे में चुनाव जीत चुकी थी तथा लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बन गए।
- 1988 में रघुवंश प्रसाद की मदद को याद रखते हुए लालू प्रसाद यादव ने उन्हें विधान परिषद भेजा।
- 1995 में लालू के मंत्रिमंडल में ऊर्जा और पुनर्वास मंत्री बनाये गए।
- 1996 में पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर पहुंचे।
- 1998 में दूसरी बार लोकसभा के सदस्य बने।
- 1999 में तीसरी बार यह सौभाग्य प्राप्त हुआ तथा इस कार्यकाल में वे गृह मामलों की समिति के सदस्य थे। बाद में जनता दल केंद्र में आयी तो एच सी देवगौड़ा प्रधानमंत्री पद पर आए और रघुवंश बाबू को केंद्र में राज्य मंत्री बिहार (पशुपालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया।
- 1997 में प्रधानमंत्री बने इंद्र कुमार गुजराल तथा रघुवंश प्रसाद सिंह को दूसरे मंत्रालय (खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय) का कार्यभार सौंप दिया गया।
- 2004 में चौथी बार लोकसभा गए और 2009 तक ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री भी बने रहे।
- 2009 में पांचवी बार लोकसभा सदस्य के रूप में गए। तबसे पार्टी में बने रहने के बाद भी 10 सितम्बर 2020 को राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दे दिया लेकिन इसे लालू प्रसाद यादव द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।
नौकरी से किया गया बर्खास्त:
जानकारी के अनुसार जब देश में इमरजेंसी के हालात थे तब वे लगभग 11 बार जेल गए थे। 1974 के जेपी आंदोलन में रघुवंश बाबू ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जिसके दौरान उन्हें बहुत बार जेल भेज दिया गया। इस समय केंद्र और राज्य में कांग्रेस सरकार थी तथा बिहार में जगन्नाथ सरकार ने रघुवंश बाबू को जेल भेजकर प्रवक्ता के पद से उन्हें निकाल दिया। तब से लेकर अब तक उन्होंने कभी अपनी इस पिछली ज़िन्दगी की तरफ नहीं देखा।
लालू प्रसाद यादव से हुई दोस्ती:
रघुवंश प्रसाद सिंह बेलसंड से 1977 में पहली बार विधायक बने लेकिन 1988 में कर्पूरी ठाकुर का देहांत हो गया। उसके बाद सरकार जगन्नाथ मिश्र की बनी। तभी जेपी आंदोलन के तहत रघुवंश बाबू मुजफ्फरपुर जेल में बन्द हो गए। इसके बाद मुजफ्फरपुर जेल से उन्हें बांकीपुर जेल भेज दिया गया। जहाँ वे लालू प्रसाद यादव से रूबरू हुए। इस दौरान लालू यादव कर्पूरी की जगह लेने की कोशिश में लगे थे। स्टूडेंट लीडर के रूप में पटना विश्वविद्यालय से जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे थे। यहीं से दोस्ती की एक बेमिसाल कहानी शुरू हुई। जो आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करती है वो है लालू और रघुवंश की दोस्ती। कहा जाता है कि अपनी इस दोस्ती के खातिर ही कांग्रेस पार्टी से मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए आया हुआ एक प्रस्ताव भी उनके द्वारा ठुकरा दिया गया था। Bihar Leader Raghuvansh Prasad Singh
रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका:
2009 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो सोनिया गांधी की अध्यक्षता में एक समिति(राष्ट्रीय सलाहकार समिति) बनी। इसकी एक मीटिंग में रोजगार गारंटी कानून बनाने का प्रस्ताव पास किया गया। इसके 6 महीने बाद तक भी इसे कानून का रूप प्रदान नहीं किया गया। तत्पश्चयात ग्रामीण विकास मंत्रालय जो कि रघुवंश प्रसाद के अधीन था। उसे इस कार्य के लिए नामित किया गया। अत्यंत संघर्षों के बाद रघुवंश बाबू ने एक वर्ष में ही इसे कानून बना दिया और पूरे देश के 200 जिलों में महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना 2फरवरी, 2006 से लागू हो गयी तथा यह योजना 2008 से सभी जिलों में में भी प्रसारित हो गयी।
जीवन के अंतिम दिनों में दिया पार्टी से इस्तीफा:
जानकारी के अनुसार रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार सीएम नीतीश कुमार को पत्र लिखकर अपनी तीन इच्छाएं जताई थी। पहली 26 जनवरी को वैशाली में गणतंत्र दिवस मनाने निवेदन किया। दूसरा भगवान बुद्ध का दानपात्र जो कि अफगानिस्तान में है उसे बिहार लाने का आग्रह किया। तीसरी मनरेगा योजना को किसान खेतीबाड़ी और एससी-एसटी कल्याण से जोड़ने की सिफारिश।
जीवन के अंतिम दिनों में लालू यादव को भी एक पत्र के माध्यम से इस्तीफा देते हुए लिखा था कि -"जननायक कर्पूरी के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें”। परंतु इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि- "वे कहीं नहीं जा रहे"।
अपने परिवार में दो बेटे और एक बेटी होने के बावजूद भी कोई परिवार का सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं होने के सवाल पर रघुवंश बाबू ने कहा था-"आज जिस हालत में हम अभी पड़े हैं। अपने बच्चों को भी उसी में धकेल देते, यह हरगिज सही नहीं होता। ये भी कोई भला ज़िन्दगी है पूरे जीवन भर त्याग, त्याग और सिर्फ त्याग"।