श्रीनगर श्री क्षेत्र हो अलकनंदा नदी के किनारे बसा है चारो ओर से मठ मन्दिरों से आच्छादित अपनी आलौकिक सुंदरता अपने आप में विशिष्ट व प्रभावकारी दृष्टि गोचर होती है। बस इसी कारण से इस क्षेत्र की उपादेयता को देख कर प्राचीन काल से ही राजा महाराजाओ ने इसे अपनी राजधानी बनाया। पंवार वंश के राजा अजयपाल के शासन काल मे श्रीनगर राजधानी रही। पांडवो ने अज्ञातवास में इस धरती में रहकर 'परमशक्ति' के साथ आत्मसात किया है। जगत गुरु शंकराचार्य जी को ' श्री यंत्र' ने अपनी ओर आकृष्ट किया। यह वो क्षेत्र है।
इस श्री क्षेत्र प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर भी है धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण के केदार खंड में यह विवरण मिलता है कि शिल्ह नाम के एक ब्राह्मण ने इस स्थान में 5 हजार 5 सौ वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी तो भगवान शिव ने प्रसन्न वो ज्योतिलिंग के रूप में दशर्न दिए थे। वही से इसे शिल्हेश्वेर महादेव के नाम से जाना जाता है। त्रेता युग मे भगवान राम ने रावण का वध करने के बाद ब्रम्हहत्या के पाप से मुक्ति के यहां 1000 कमल अर्जित किया तो भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए शिव जी ने 1 कमल छुपा दिया। तो 1 पुष्प कम होने पर उन्होंने अपनी आंख निकाल कर अर्पित करने लगे जैसे ही आँखों को निकालने लगे तो भगवान शिव ने साक्षात दर्शन दिए तभी से शिल्हेश्वेर महादेव को कमलेश्वेर महादेव के नाम से जाना जाता है।
कमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में 1 और मान्यता है कि यहां निः संतान दंपति यदि सच्ची निष्ठा से बैकुंठ चतुर्दशी के दिन रात्रि में माँशक्ति और शिव का स्मरण करते हुए खड़े दिये जलाते है तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। Amazing Facts about Srinagar
यहाँ का दूसरा प्रसिद्ध उत्सव है- घृत कमल जो माघ मास में बसन्त पंचमी के बाद पड़ने वाली सप्तमी के दिन संम्पन होता है। इस दिन भगवान शिव का गौरी देवी के समान सोलह श्रृंगार किया जाता है। इस दिन मन्दिर के पुजारी महन्त लँगोट धारण करके नग्नावस्था में मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते है। जो इस दृश्य को देखता है उसके क्रूर ग्रह शांत हो जाते है।
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श्रीनगर में माँ कंसमर्दनी का मंदिर भी है इस मंदिर के विषय मे मान्यता है कि नन्द के घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया था वही देवकी के घर मे लड़के ने जन्म लिया कंस के डर से दोनों बच्चो को इधर से उधर कर दिया गया। कन्या का पता जैसे ही कंस को पता चला तो वो उसको पटक कर मरना चाहा वह तुरंत खुले आकाश में योग माया बनकर कंस को सचेत करती है कि तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है।
श्रीनगर से 13 km की दूरी पर धारी देवी का मंदिर भी है।जिसे शमशान काली महाकाली दक्षिण काली आदि नामों से जाना जाता है। चारो धामो के यात्री लोग माँ धारी का आश्रीवाद लेने जरूर जाते है। इसमें यह मान्यता है कि मां दिन के तीनों पहरों पर अपना अलग अलग रूप बदलती है।प्रातः काल मे बाल सौम्य रूप, दोपहर में उग्र प्रचण्ड काली रूप, शाम के समय वृद्धा रूप में अवतरित होती है।जो माँ की चौखट में कदम रखता है उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।मा धारी देवी ने सदियों से उत्तराखंड की रक्षा की है। हमारे गढ़वाल की यह आधारभूत विशेषता रही है कि यहां हर त्योहार में माँ शक्ति की पूजा होती है।हाल ही में श्रीनगर में अलकनंदा नदी में राफ्टिंग का भी प्रारंभ किया है। इस क्षेत्र को दिल्ली की संज्ञा भी दी है।
इस प्रकार कहा जाता है कि श्रीनगर माँ शक्ति का प्रतीक है जो जीवन में संचार को पैदा करती है।