The Indian lethal commando unit gorilla commandos
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जानिए: जंगल वार में पारंगत गुरिल्ला कमांडोज की ट्रेनिंग के बारे में

गुरिल्ला कमांडो की ट्रेनिंग दुनिया के सबसे मुश्किल ट्रेनिंग मानी जाती है जहां से रास्ता खत्म हो जाता है वहां से रास्ते का निर्माण करने में सक्षम गुरिल्ला कमांडोज को काउंटर इंसरजेसी ऑफ जंगल वारफेयर स्कूल में ट्रेनिंग दी जाती हैं। दुनिया की बेस्ट फोर्सेज में से एक गुरिल्ला कमांडो की ट्रेनिंग बेहद टफ होती है जिसकी वजह से गोरिल्ला कमांडो का फिजिकल और मेंटल लेवल बेहद कठोर और आम इंसान से अलग होता है।


वर्तमान समय में मिजोरम में प्रतिघात विद्रोह तथा जंगल संघर्ष विद्यालय स्थित है जो अब तक 3,00,000 से अधिक सैनिकों को प्रशिक्षित कर चुका है इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1967 में की गई यह विद्यालय भारतीय सेना के प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के रूप में अपरंपरागत युद्ध, विशेषता प्रतिघात विद्रोह तथा गुरिल्ला छापामार संघर्ष का प्रशिक्षण देने वाला विश्व के प्रमुख प्रतिघात विद्रोह प्रशिक्षण संस्थान में से एक है इस विद्यालय का आदर्श वाक्य "Fight the guerrilla like a guerilla" है।


क्या है गुरिल्ला युद्ध?


गुरिल्ला मूलतः स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है लघु युद्ध या छापामार युद्ध। यह युद्ध विशेषकर अर्धसैनिक बलों तथा अनियमित सैनिकों द्वारा लड़ा जाता है जिसमें शत्रु सेना के पीछे से आक्रमण कर इन्हें खत्म करने और शत्रु दल में आतंक फैलाने के उद्देश्य से किया जाता है। छापामार नियमित सेना को धोखा देकर विध्वंस कार्य करते हैं दिन में साधारण नागरिकों की भांति दिखने वाले छापेमार की कोई वेशभूषा नहीं होती जो रात में छिपकर आतंक फैलाते हैं।


अपनी विशेष बुद्धि, बल ,साहस और शत्रुओं का पीछा करते हुए गोरिल्ला "मारो या भाग जाओ" के सिद्धांत का पालन करते हैं । छापामार योद्धा सहसा आक्रमण कर अदृश्य हो जाते हैं अनियमित विधियां, ज्ञान उपयुक्त दलदली भूमि, पहाड़ी भूखंड को उपयुक्त समझने वाले गोरिल्ला अपने बचाव के लिए विशेष उपयोगी विधियों का प्रयोग कर क्षेत्र को घेरते हैं अपने ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए यह लोग गांव वालों के साथ मिलकर छोटी-छोटी टुकड़ियों में घूमते हैं।


क्यों दी जाती है गुरिल्ला कमांडोज की ट्रेनिंग


भारत के पूर्वी भाग में कुछ राज्य ऐसे हैं जहां वृहत पैमाने पर उग्रवाद तथा नस्लवाद का प्रकोप आए दिन देखने को मिलता है इन नक्सलवादियों से कैसे निपटा जाए और देश में सामाजिक शांति कैसे स्थापित की जाए के उद्देश्य से स्पेशल गोरिल्ला फ़ोर्स का गठन किया गया है। पूर्वी राज्य में व्याप्त नस्लवादी जंगलों में रहकर आमजन को नुकसान पहुंचाते हैं यह बड़े खूंखार और बर्बर होते हैं कभी भी कहीं भी यह मानव हिंसा को जन्म देने का काम करते हैं जिसके चलते स्पेशल गुरिल्ला कमांडो की नियुक्ति की गई है।


गुरिल्ला कमांडोज करते हैं सांप, केकड़े इत्यादि का सेवन


किसी भी परिस्थिति में लड़ने के लिए सक्षम गुरिल्ला  कमांडोज को उग्रवादियों से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है जंगलों में कड़ी ट्रेनिंग करते हुए यह कमांडोज जंगल में गिद्ध और छिपकली को छोड़कर सांप ,केकड़े इत्यादि का सेवन कर खुद को बचाते हैं। जिससे इनकी मानसिक मजबूती का पता लगाया जा सकता है इन कमांडोज को बेहद सामान्य चीजों के साथ जंगलों में छोड़ दिया जाता है और दुश्मन के क्षेत्र में कैसे सरवाइव करना है इसकी ट्रेनिंग भी दी जाती है।


जानवरों के जहर को चेक करने की दी जाती है ट्रेनिंग

    

72 घंटे तक बिना खाए पिए यह कमांडो अपने ऑपरेशन को अंजाम देने में लगे होते हैं ट्रेनिंग पीरियड के दौरान इन्हें 5 रात और 5 दिन के लिए जंगलों में सीमित साधनों के साथ छोड़ दिया जाता है जंगलों में भोजन पकाने के लिए ये प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं कोई भी कमांडो किसी जहरीले जानवर का सेवन न कर पाए इसके लिए उन्हें जानवरों के जहर को चेक करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।


जंगल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं यह गुरिल्ला कमांडोज

 

ऊंचे पर्वतों ,सघन झाड़ियो, विशालकाय पठारों और सदाबहार वनों के बीच बड़े-बड़े वृक्षों और कटीली झाड़ियों के बीच रहने वाली यह गोरिल्ला योद्धा खुद को जंगल के मुताबिक ढाल देते हैं सघन वन क्षेत्र में रहने  वाले यह कमांडोज उग्रवादियों का आशंकित स्थानों का सफाया कर देते हैं।


होते हैं जंगल वार में पारंगत


जंगल वार में पारंगत गुरिल्ला सैनिक ताकत, शक्ति और गति, में तेज तरार होते हैं चील जैसी निगाहें, बाज जैसी फूर्ति इन कमांडोज में होती है यह दुश्मन के घर पर जाकर उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं पहाड़ों पर भी दुश्मन इन से नहीं बच पाते हैं। 72 घंटे तक बिना खाए -पिए ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम यह गोरिल्ला कमांडो नक्सलियों के खिलाफ जंगल में ऑपरेशन को अंजाम देते हैं इनकी गोलीबारी से दुश्मन खुदकुशी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।


नमक मसाले के बजाय एनर्जी पर होता है फोकस


5 दिन और 5 रात गुरिल्ला सैनिक अपनी ट्रेनिंग के दौरान जंगल में गुजारते हैं। गोरिल्ला कमांडो की ट्रेनिंग लेने के लिए विश्व के अनेक देश भारत पहुँचते हैं। वर्तमान समय में 42 देशों की सेना गोरिल्ला कमांडो के साथ ट्रेनिंग ले रही है। आग में तपकर तैयार होने वाले यह कमांडोज जंगल वार फेयर में माहिर होते हैं जंगली कीड़े -मकोड़ों का सेवन करने वाले यह गुरिल्ला कमांडोज नमक मसाले के टेस्ट के बजाय खाने से मिलने वाली एनर्जी पर ज्यादा फोकस करते हैं।

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