The Story of Sudha Chandran
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सुधा चंद्रन: दृढ़ संकल्प शक्ति की मिसाल | The Story of Sudha Chandran

"सुधा चंद्रन" भारतीय सिनेमा का एक ऐसा नाम है, जिन्होंने "भरतनाट्यम" की उम्दा कलाकार के रूप में शोहरत हासिल की है। मात्र 5 साल से 16 साल की उम्र में सुधा चंद्रन ने 75 से अधिक स्टेज शो देकर अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और ख्याति प्राप्त की है। अपने नृत्य और शानदार एक्टिंग कला के बल पर सुधा चंद्रन ने फिल्मी दुनिया से लेकर टीवी सीरियल्स की दुनिया में दमदार किरदारों के जरिए पूरे भारत में प्रसिद्धि पाई है। अपने फिल्मी करियर और शानदार एक्टिंग के लिए सुधा ने अनेक संघर्ष किये जिसकी बदौलत "सुधा चंद्रन की कहानी" आज हर भारतीय के लिए प्रेरणादायी है।


जीवन परिचय (Sudha Chandran Introduction


21 सितंबर 1964 को मुम्बई के एक मध्यवर्गीय परिवार में सुधा चन्द्रन का जन्म हुआ था। इनकी उच्च शिक्षा भी मुंबई में हुई। बचपन से ही सुधा को नृत्य का बेहद शौक था। गानों की धुन सुनते ही वह थिरकने लगती थी। स्कूल से आने के बाद वह अपना नृत्य किया करती थी। मात्र 3 साल की उम्र में उन्होंने "भारतीय शास्त्रीय नृत्य" सीखना प्रारंभ किया और अपने नृत्य कौशल के जरिए छोटी सी उम्र में ही सबका दिल जीत लिया था।


संघर्ष का दौर (Struggle Phase of Sudha Chandran)  


यह दिन सुधा अपने माता-पिता के साथ तमिलनाडु के "चिरुचिरापतली" में स्थित मंदिर से वापस लौट रही थी सहसा सामने से एक ट्रक ने उनकी गाड़ी को जोर से टक्कर मारा। इस भयंकर दुर्घटना में बहुत से लोग घायल हो गए और सुधा के पैर की हड्डी टूट गई। सुधा को हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टर ने उनके पैर पर पट्टी बांधी मगर कुछ क्षण बाद डॉक्टर ने कहा कि दाहिने पैर में "गैंग्रीन" जो एक प्रकार का संक्रमण होता है उनके पैर में हो गया है यदि वक्त रहते उनका पैर न काटा गया तो उनकी जान को खतरा है।

जान का खतरा सुनते ही तुरंत सुधा के माता-पिता ने डॉक्टर को पैर काटने की अनुमति दे दी। पैर काटने के बाद गाने की मात्र एक धुन पर थिरकने वाली सुधा मौन हो गई। वह चल फिर नहीं सकती थी, बिस्तर पर पड़े वह अपनी किस्मत को कोसती रहती थी। वह लड़की जो मशहूर डांसर होने का सपना देखा करती थी अब पूरी तरह टूट चुकी थी मानो उसकी दुनिया ही बदल गई उसे लगता था कि उसका भविष्य हर तरह से अंधकारमय हो गया, सब कुछ खत्म हो गया है और अब वह कभी भी डांस नहीं कर पाएगी।


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समाज में उनकी इस स्थिति को देखकर लोग उनको दया और रहम की नजर से देखते थे जिसका सुधा के माता-पिता के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। सुधा की विकलांगता के अप्रिय सवालों से बचने के लिए सुधा के माता- पिता सब्जी लेने के लिए भी रात को जाया करते थे। इन अप्रिय सवालों और समाज का उनके प्रति दृष्टिकोण और व्यवहार से सुधा को बहुत बुरा लगता था। सुधा ने प्रण लिया, कि वह समाज  को एक दिन जरूर जवाब देगी। उन्हें कुछ ऐसा कार्य करना है जिससे वे समाज को दिखा सके कि उनकी जिंदगी में कोई हादसा नहीं हुआ। वह जैसी पहले थी आज भी बिल्कुल वैसी ही हैं उसे कुछ ऐसा काम करना है जिससे उनके माता-पिता को उन पर गर्व हो। इसके लिए सुधा ने "नृत्य" को अपना लक्ष्य बनाया।


नृत्य कला में महारत (Sudha Chandran the Dancer)  


अस्पताल में पड़े एक दिन सुधा की नजर "इंडिया टुडे" के अखबार में प्रकाशित "चमत्कारी पैर" इश्तिहार पर पड़ी जिसमें डॉक्टर सेटी के "जयपुर फूट" की विस्तृत चर्चा की गई थी। डॉक्टर सेटी को "जयपुर फुट" के अविष्कार के लिए "मैग्सेसे अवार्ड" से सम्मानित किया गया था। उस इश्तेहार को देखते हुए सुधा ने डॉक्टर सेठी को पत्र लिखा और उनसे मिलने के लिए कहा। डॉक्टर सेठी ने उनका पत्र पढ़ा और उनसे मिलने आए। सुधा ने डॉक्टर सेटी से बिना देरी किए हुए "जयपुर फूट" लगाने की बात की। सुधा ने डॉक्टर से पूछा कि क्या वह "जयपुर फुट" की सहायता से नृत्य कर पाएगी? तो डॉक्टर सेठी ने जवाब दिया - बेशक...! यह सब तुम्हारी सोच पर निर्भर करता है, अगर तुम फिर से नृत्य करना चाहती हो तो तुम कर सकती हो...। इन शब्दों का सुधा के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। ऑपरेशन हुआ और "जयपुर फुट" लगाया गया। दर्दनाक दुर्घटना को भूलकर सुधा ने फिर से अपने सपने की तरफ ध्यान दिया अपने कृत्रिम पैर के जरिए उन्होंने नृत्य कला को सीखा। वह रात- दिन नृत्य करती थी जिसे उनके पैर से खून भी निकलता था पूरे अभ्यास में उन्हें बेहद पीड़ा होती थी। 2 साल तक सुधा ने कड़ी मेहनत की और अब व नृत्य में पारंगत हो चुकी थी अब उन्हें बस अपनी कला को प्रदर्शित करने का मौका चाहिए था।


जिंदगी की उचाइयां को छूना (Sudha Chandran Success)  


जब स्टेज पर सुधा ने अपने कृतिम पैरों से प्रदर्शन किया तो पूरे सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज पड़ा। लोगों की प्रतिक्रिया प्रेरणादायक थी। इस प्रकार धीरे-धीरे उनके बारे में चर्चा होने लगी। अब सुधा की जिंदगी को नया मोड़ मिला अपने नृत्य कौशल से उन्होंने सबका दिल जीता। पत्र-पत्रिकाओं में सुधा की कहानी छपने लगी। तभी जाने-माने फिल्म निर्माता "रामोजी राव" की नजर उनकी कहानी पर पड़ी। उन्होंने सुधा की जिंदगी पर तेलुगु में "मयूरी" नाम की फिल्म बनाई जिसमें सुधा ने मुख्य पात्र की भूमिका निभाई वह फिल्म काफी सफल साबित हुई पूरी दुनिया में फिल्म की बेहद सराहना हुई जिसके लिए उन्हें "राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। इसके बाद सुधा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई उन्होंने बहुत सारी फिल्मों में काम करना शुरू किया उन्होंने मुख्य रूप से मलयालम, तमिल, तेलुगू, हिंदी, मराठी, गुजराती और फिल्म उद्योग में काम किया। वर्तमान में सुधा हिंदी सीरियल में काफी सक्रिय है। "नागिन" की "यामिनी सिंह रहेजा" जैसे सुधा के किरदार पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

अपने नकली पैर की जरिए जिस्मानी कमी को एक काबिलियत में तब्दील कर सुधा ने एक ऐसा किरदार खड़ा किया जो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। 

अपनी विकलांगता को उन्होंने कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। भयानक दुर्घटना के बावजूद उन्होंने अड़चनों को अपने सपनों के सामने आड़े नहीं आने दिया और मुसीबतों का सामना कर अपनी इच्छाशक्ति के बल पर सफलता हासिल की। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सुधा चंद्रन : "दृढ़ संकल्प शक्ति" की एक अनोखी मिसाल है जो हर मानव जाति के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

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