Top 10 Tourist Places to Visit in Tripura
पर्यटन

उज्जयंता महल व उनाकोटी के अलावा इन अन्य जगहों को देखें त्रिपुरा में

भारत के बहु सांस्कृतिक तथा बहुभाषिक परिवेश से परिचित कराते हैं यहां के उत्तर पूर्वी राज्य। इन अत्यंत खूबसूरत राज्यों की इस सूची में त्रिपुरा का नाम मुख्य रूप से सम्मिलित होता है। त्रिपुरा सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले इन उत्तर पूर्वी राज्यों में से खूबसूरती और विभिन्नताओं से भरा हुआ एक छोटा सा राज्य है। यह भारत के छोटे राज्यों के क्रम में तीसरे स्थान पर आता है। यह राज्य भले ही क्षेत्रफल में छोटा सा हो परंतु अपनी संस्कृति सभ्यता तथा विरासत को संजोए रखने में बड़े-बड़े राज्यों को भी मात दे देता है। इसकी सबसे दिलचस्प बात यह है यहां पर कई प्रकार की जातियां रहती हैं जो विभिन्न तरह से अपनी बोली भाषाओं का प्रयोग करती हैं तथा इस विभिन्नता के कारण ही पूरे राज्य में कई प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। यह प्रत्येक जनजाति के हिसाब से अलग-अलग समय पर संपन्न होते हैं।

इसके अलावा तीन ओर से बांग्लादेश से घिरा हुआ यह राज्य असम तथा मिजोरम से सटा हुआ है। हरी-भरी पहाड़ियां, विशाल प्राचीन महल, विभिन्न ऐतिहासिक स्मारक, पौराणिक मंदिर, चाय के बागान तथा अपने आश्चर्य से चकित कर देने वाले विस्तारों के कारण यह राज्य सबसे पुरानी रियासतों में शामिल है। यहां पर विभिन्न दर्शनीय पर्यटन स्थल मौजूद हैं जो दूर-दूर से कई पर्यटक को को यहां आने पर मजबूर कर देते हैं और एक बार यहां आने के बाद उनके मन पर छप जाते हैं। 

इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो संभवत यह राज्य कई आश्चर्यजनक रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है। इसका जिक्र हिंदू महाकाव्य महाभारत, पुराणों तथा सम्राट अशोक के शासन के समय निर्मित स्तंभ शिलालेखों से भी मिलता है। इस राज्य के उद्धरण का एक सूक्ष्म आरेख यहां की माता त्रिपुर सुंदरी से माना जाता है। इस के कारण ही राज्य का नाम त्रिपुरा रखा गया। आइए आपको त्रिपुरा के ऐसे पर्यटक आकर्षणों के बारे में बताते हैं, यहां की यात्रा एक बार अवश्य करें और निश्चय ही अपने अनुभवों को साझा करें।


मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (Maa Tripura Sundari Temple)


मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर उदयपुर में बनाया गया है। यह भव्य मंदिर त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 55 किलोमीटर दूर अवस्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर 500 वर्ष पुराना पौराणिक मंदिर है। जोकि माता शक्ति के 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। शक्तिपीठों में होने का इसका मुख्य कारण वह स्थान है जहां पर यह मंदिर बनाया गया था। दरअसल पौराणिक मान्यता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया है जहां पर माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा कट कर गिरा था। अत्यंत पवित्र माने जाने वाली यह जगह त्रिपुरेश्वरी के रूप में भी विख्यात है। इसका एक दूसरा नाम मातबरी भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1501 में किया गया था। इस दिव्य मंदिर की एक दिलचस्प बात यह है कि यह एक छोटी सी पहाड़ी पर बनाया गया है जोकि कछुए के आकार का प्रतीत होता है। इसी वजह से यह कुरमा पीठ के नाम से विख्यात है। मंदिर के साथ-साथ भैरव त्रिपुरेश यहां पर स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में माता की दो एक जैसी मूर्तियां रखी गई हैं। जिनमें एक मूर्ति 5 फीट की है और दूसरी 2 फीट की। बड़ी मूर्ति मां त्रिपुरा सुंदरी की मानी जाती है और छोटी मूर्ति माता चंडी की है, जिसे छोटी माता के रूप में पुकारा जाता है। प्राकृतिक रूप से देखा जाए तो इस मंदिर के पूर्वी भाग में एक बड़ा सा ताल स्थित है। इसे कल्याण सागर कहते हैं। यहां पर कई सारे विभिन्न प्रकार के कछुए पाए जाते हैं। इस राजश्री सुंदर तथा शानदार मंदिर में हर वर्ष कई भक्त गण तथा पर्यटक दर्शन करने आते हैं तथा दीपावली में यहां भव्य उत्सव मनाया जाता है। यदि आप भी पौराणिक स्थलों को देखने में रुचि रखते हैं तो आपको यहां एक बार अवश्य आना चाहिए। 


उनाकोटी (Unakoti)


त्रिपुरा अपने अंदर विभिन्न  पौराणिक  और प्राकृतिक स्थलों के साथ-साथ कई सभ्यताओं से भरे हुए रहस्यों को भी संग्रहित किए हुए है।

उनाकोटी त्रिपुरा के पसंदीदा धरोहर स्थलों में से एक है। यह जगह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा संरक्षित की गई है। इस जगह की विशेष बात यह है कि यहां पर एक साथ कई भगवानों की सुंदर प्रतियां पत्थरों पर बनाई गई हैं। देवी देवताओं की ये अनगिनत मूर्तियां जंगलों के बीच में स्थित है। यहां पर आस-पास ना तो कोई घर है और ना ही किसी का निवास स्थान। यह बात हर किसी पर्यटक को इस रहस्य को जानने पर मजबूर कर देती है कि आखिर यह रॉक कट नक्काशी की किसने? दरअसल इसके प्रमाण कई दंत कथाओं में मिलते हैं। इन पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान शिव तथा माता पार्वती का एक शिल्पकार भक्त (कालू) निवास करता था और वह देवों के साथ कैलाश जाने को तत्पर था। परंतु यह कार्य संभवत अधिक कठिन था। इसलिए भगवान द्वारा उसके सामने शर्त रखी गई कि यदि उसने एक रात में ही देवी देवताओं की एक करोड़ मूर्तियों का निर्माण कर लिया तो उसे कैलाश ले जाया जाएगा। शिल्पकार रातों-रात देवी देवताओं की कई सारी मूर्तियां बना लेता है। इस पर जब मूर्तियों की गिनती हुई तो पता चला की यह मूर्तियां एक करोड़ में से एक कम निकलीं। जिससे वह शिल्पकार भगवान के साथ नहीं जा पाया और इस जगह को उनाकोटी नाम दिया गया। यहां उनाकोटी का अर्थ है- एक करोड़ से एक कम। इस स्थान पर भगवान श्री राम, गणेश, शिवजी, नंदी बैल आदि मूर्तियां पूरी जगह में फैली हुई हैं जो पर्यटकों को इस स्थान की यात्रा करने के लिए मजबूर कर देती हैं।


उज्जयंता महल (Ujjayanta Palace)


त्रिपुरा राज्य के अगरतला शहर में स्थित यह महल ऐतिहासिक समय में राजाओं का शाही महल था। जो इस जगह की खूबसूरत धरोहरों में नामित है। यह महल पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के सबसे आकर्षक निर्माणों में से एक है। पहले यह महल 1897 में भूकंप से ध्वस्त हो गया था जिसे 1901 में राजा राधा किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा दोबारा से बनाया गया। इसका नाम यहां के प्रसिद्ध आगंतुक रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा रखा गया था। उज्जयंता महल के चारों और पूर्ण रूप से चार मंदिर बनाए गए हैं। लक्ष्मी नारायण मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, दुर्गाबाड़ी तथा उमा महेश्वर मंदिर। किवदंती  के अनुसार राजा को अपने दिन की शुरुआत इन चारों मंदिरों के दर्शन से करनी होती थी। यह महल 800 एकड़ की विस्तृत जमीन पर बना हुआ है, जो अब एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है। इस संग्रहालय में बड़े-बड़े दरबार हॉल, पुस्तकालय, चीनी कक्ष, सिहांसन रूम तथा रिसेप्शन निर्मित है। रूचिपूर्ण बात यह है इस संग्रहालय में 16 गैलरी बनाई गई हैं जिनमें प्रत्येक गैलरी में समूचे उत्तर भारत की कई विशुद्ध झलकियां दिखाई जाती हैं। यह संग्रहालय भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के सबसे बड़े संग्रहालयों में गिना जाता है। इसके चारों ओर हरियाली तथा विभिन्न तरह के संगीत में फव्वारे भी स्थित हैं। कृत्रिम झीलों और विभिन्न रीति-रिवाजों तथा संस्कृतियों से सजा यह क्षेत्र अपने शिल्प का प्रदर्शन कुछ इस तरह से करता है कि पर्यटक इस की ओर खींचे चले आते हैं और यहां आकर इसकी खूबसूरती में खो जाते हैं।


सिपाहीजला वन्य जीव अभ्यारण (Sephaijala Wildlife Sanctuary)


वन्यजीव अभयारण्य लगभग सभी क्षेत्रों के लिए पर्यटक आकर्षण का केंद्र रहते हैं। सिपाहीजला वन्य जीव अभ्यारण भी त्रिपुरा के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। यह स्थान अपने बहुत बड़े विस्तार के लिए प्रसिद्ध है जोकि अगरतला से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। यह अभयारण्य 1972 में बनाया गया था और 18.5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में निर्मित है। यहां पर तरह-तरह के अनेक पशु-पक्षी तथा जानवर पाए जाते हैं। यह माना जाता है कि इस स्थान पर लगभग 150 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां निवास करती हैं तथा इसमें कई सारी ऐसी प्रजातियां हैं जो अपने प्रवास के दौरान यहां पर आती हैं। यह क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य होने के साथ-साथ एक अनुसंधान केंद्र भी है। इसकी दिलचस्प बात यह है कि यहां पर अलग-अलग जीवों को प्रदर्शित करने के लिए पांच अलग-अलग भाग बनाए गए हैं। जो प्राइमेट सेक्शन, अनगुलेट सेक्शन, रेप्टाइल सेक्शन, एवएरी सेक्शन तथा कार्निवोरस सेक्शन के नाम से जाने जाते हैं। यहां दो प्राकृतिक झीलें भी हैं जिनके नाम आभा सारिका तथा अमृत सागर रखे गए हैं। इस अभयारण्य के अंदर बोटिंग की व्यवस्था भी की गई है, जिससे यहां आकर पर्यटक रोमांच के साथ-साथ प्राकृतिक वातावण का आनंद भी ले सकते हैं।


नीरमहल (Neermehal)


 इस महल को 'द लेक पैलेस ऑफ त्रिपुरा' के नाम से भी जाना जाता है। यह महल समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में निर्मित सबसे विशाल महल है। इस महल की खासियत यह है कि यह रुद्र सागर झील के बीचों बीच स्थित है। इसे राजा वीर विक्रम किशोर माणिक्य बहादुर ने अपने शाही परिवार के लिए ग्रीष्मकालीन महल के रूप में निर्मित करवाया था। हमारे देश भारत में दो जल महल स्थित हैं जिनमें से एक महल त्रिपुरा का नीर महल माना जाता है। इस महल की सुंदरता देखते ही बनती है। इस महल को देखने के लिए दो भागों में बाँटा गया है। पश्चिमी ओर से अंधेर महल तथा पूर्वी छोर से सुरक्षाकर्मियों का निवास स्थान कहलाने वाला यह महल अब एक संग्रहालय के रूप में भी पर्यटकों को लुभाता है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के शाही सामानों की प्रदर्शनी लगती है। आज भी इस महल की शानदार संरचना अतीत के कई गहरे रहस्यों को उजागर करती है। इस महल में हर वर्ष जल उत्सव मनाया जाता है जिसमें विभिन्न प्रकार की नौका दौड़ होती हैं।  हर दिन शाम को यहां पर लाइट और साउंड का शो भी पर्यटकों को काफी लुभाता है। यदि आप भी इस प्रकार के अतीत से भरे हुए ऐतिहासिक इमारतों को देखने के शौकीन हैं तो यहां आपके लिए बहुत कुछ है।


त्रिपुरा सरकार संग्रहालय (Tripura Government  Museum)


त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में स्थित यह संग्रहालय सरकार द्वारा ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त विभिन्न वस्तुओं के संरक्षण के लिए बनाया गया है। यह संग्रहालय त्रिपुरा की समृद्ध संस्कृति को दुनिया के सामने जाहिर करता है और इस राज्य के वृहद सांस्कृतिक और सभ्य परिवेश से सभी को रूबरू करवाता है। विभिन्न शिल्पों के रूप में यह स्थान त्रिपुरा के जाने-माने स्मारकों में से एक है। यहां पर विभिन्न प्रकार के वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है। सोने और चांदी की मूर्तियां, टेराकोटा के विभिन्न टुकड़े, मूर्तिकला के संग्रह, पत्थर की मूर्तियां, प्राचीन धरोहरों से मिली हुई वस्तुएं, तांबे तथा कांसे के अलग-अलग शिलालेख, कांस्य के चित्र, रेखा चित्र, तेल चित्र, विभिन्न प्रकार के आभूषण, आदिवासी कलाकृतियों तथा विभिन्न प्रकार की पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाई जाती है।


बाइसन राष्ट्रीय उद्यान (Bison National Park)


इस उद्यान का दूसरा नाम राजबाड़ी राष्ट्रीय उद्यान भी है। 31.63 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान तृष्णा वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है। इस स्थान पर भारतीय गौड (जिसे बाइसन के नाम से जाना जाता है) आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस वजह से इसका नाम बाइसन राष्ट्रीय उद्यान पड़ा। इस उद्यान में कई सारी जीव-जंतुओं की प्रजातियां देखने को मिलती हैं, जिनमें हिरण, लंगूर, तीतर, गोल्डन आदि जंगली जानवर देखे जा सकते हैं। इस उद्यान को बनाने का मुख्य उद्देश्य यहां पाए जाने वाले बाइसन नामक प्रजाति के प्राकृतिक आवास को बनाए रखना था तथा उन्हें शिकारियों से बचाने की भरसक कोशिशों के बावजूद उनके लिए बनाए गए कानूनों को सख्ती से लागू करना था। यह स्थान अपने प्राकृतिक वातावरण तथा हरे-भरे बागानों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस जगह को कई नालों और निकायों से जल की पूरी आपूर्ति कराई जाती है तथा यहां की प्रजातियां के पोषण का पूरा ध्यान रखा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र में 330 से अधिक पेड़, लगभग 110 झाड़ियां तथा 400 से अधिक विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां मिलती हैं। इनके अलावा यहां चार विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। इनमें बांस के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। चार मुख्य प्रकार के वनों में उष्णकटिबंधीय वन, पूर्वी हिमालय वन, सवाना वुडलैंड तथा मिश्रित पर्णपाती वन शामिल हैं। यदि आप प्राकृतिक वातावरण और जीव जंतुओं में रुचि रखते हैं तो आपको इस सुरम्य प्राकृतिक वातावरण की सैर अवश्य करनी चाहिए।


कैलाशहर (Kailasehar)


यह शहर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित त्रिपुरा का एक प्रसिद्ध स्थल है। कहा जाता है कि यहां त्रिपुरा के शाही साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। इस शहर को शाही अतीत का शहर माना जाता है जो न सिर्फ अपने मंदिर बल्कि लोकप्रिय ट्रैकिंग डेस्टिनेशन के लिए भी विख्यात है। इस क्षेत्र में कई सारे आकर्षण विद्यमान हैं, जिनमें उनाकोटी, 14 देवता मंदिर, रंगुती आदि सम्मिलित हैं। यहां के लखी नारायण बरी में कृष्ण की प्रसिद्ध मूर्ति स्थापित है। इस स्थान को भारत के अति महत्वपूर्ण प्राचीन स्मारकों के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में 16 से भी अधिक चाय के बागान अवस्थित हैं। यहां की चाय के बागान अपनी चाय पत्ती की सर्वोत्तम गुणवत्ता के लिए भी माने जाते हैं। क्षेत्र के 14 देवता मंदिर त्रिपुरा से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र मंदिर 14 देवी देवताओं के लिए बनाए गए हैं। यहां पर खर्ची पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा जुलाई महीने में संपन्न होती है तथा इस समय इस मंदिर में त्यौहार जैसा माहौल होता है। अतः यदि आप हरी-भरी धरती और विशुद्ध प्राकृतिक वातावरण में जाने के लिए तैयार हैं तो यह स्थान आपके लिए जन्नत से कम नहीं है।


जम्पुई हिल्स (Jampui Hills)


जम्पूई हिल्स त्रिपुरा के विभिन्न पर्यटन स्थलों में से लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह शहर से भले ही बहुत दूर स्थित है परंतु यहां की यात्रा करके इतना शानदार अनुभव हो सकता है कि इसके बाद आप ऐसे ही मौसम में रहने की सोचेंगे। दरअसल यहां पर पहाड़ियों के बीच लगभग 10 गांव बसे हुए हैं। यहां सुंदर घाटियों, पर्वतीय क्षेत्रों तथा संतरों की खेती का मजा लिया जा सकता है। यहां पर संतरों का बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है जिससे इस क्षेत्र को 'त्रिपुरा का कश्मीर' भी कहा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि संतरों के कारण यहां पर हर वर्ष ऑरेंज एंड टूरिज्म फेस्टिवल को बड़े पैमाने पर त्यौहार की तरह मनाया जाता है, जो कि नवंबर महीने में आयोजित किया जाता है। इस त्यौहार को सेलिब्रेट करने दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं। इसके अलावा यहां चाय के बागान भी दूर-दूर तक फैले हुए अपनी आभा को बिखेरते हैं। प्रकृति प्रेमियों का यहां आना  किसी भी तरह से व्यर्थ नहीं जाता।


पिलक (Pilak)


पिलक त्रिपुरा में स्थित एक ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थल है जो धीरे धीरे अस्तित्व में आ रहा है। इस क्षेत्र से कई सारे पुरातत्व अवशेष प्राप्त हुए हैं जो मध्ययुगीन भारत के प्रतीत होते हैं। इन अवशेषों में बलुवा पत्थर की मूर्तियां हिंदू तथा बौद्ध धर्म की अलग-अलग संस्कृतियों का बखान करते हैं। ऐसा लगता है मानो 9-13 शताब्दियों के दौरान इस प्रकार की स्थितियां मौजूद रही होंगी। त्रिपुरा के यह ऐतिहासिक खंडहर आपको अनेक प्रकार की जानकारी तो देते ही हैं इसके साथ-साथ ऐसा रोमांचक अनुभव कराते हैं कि आप इतिहास को पढ़ने में भी रुचि का अनुभव करते हैं। अतः इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों को इस क्षेत्र की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।


त्रिपुरा का प्रसिद्ध भोजन (Famous Food of Tripura)


भोजन के मामले में यहां का स्ट्रीट फूड काफी लोकप्रिय है। स्थानीय लोगों द्वारा इस भोजन को 'मूई बोरोक' कहा जाता है। इस भोजन में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां, सुगंधित मसाले तथा अन्य चीजें मिलाई जाती हैं। त्रिपुरा के स्वादिष्ट भोजन की दिलचस्प बात यह है कि यहां पर भोजन तेल के बिना तैयार किया जाता है। इसके अलावा बरम (सूखी और किण्वित मछली) बांस शूट अचार, बंगी चावल, मछली स्टू , बांस के अंकुर के मछली स्टाॅज आदि यहां पर प्रमुख रूप से मिलते हैं। त्रिपुरा में चाइनीज और मसालेदार बंगाली भोजन भी बड़े स्वाद से खाया जाता है।


कैसे पहुंचे


त्रिपुरा जाने के लिए आप परिवहन के किसी भी रूट का इस्तेमाल कर सकते हैं।

फ्लाइट-  हवाई मार्ग से जाने के लिए इस राज्य में कई सारे हवाई अड्डे विभिन्न शहरों से जोड़ते हैं। यहां का निकटतम हवाई अड्डा है अगरतला। यह स्थान अगरतला से भी 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से कोलकाता तथा गुवाहाटी जैसे शहरों के लिए फ्लाइट जाती रहती हैं।

ट्रेन-  त्रिपुरा की यात्रा करने के लिए ट्रेन भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। सबसे करीबी रेलवे स्टेशन कुमार घाट है जो कि इस क्षेत्र को दिल्ली, इंदौर, कोलकाता आदि शहरों से जोड़ता है।

बस-  सड़क मार्ग से यात्रा का मजा ही कुछ और है। यहां पर पर्यटकों के लिए राज्य सरकार की विभिन्न बसें उपलब्ध हैं। इनके अलावा निजी बसें भी यहां पर संचालित की जाती हैं जो मनु, आइजोल, कुमार घाट आदि शहरों तक आसानी से पहुंचाते हैं।

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