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जलियांवाला हत्याकांड का बदला लेने वाले - Freedom Fighter Udham Singh

जलियांवाला बाग हत्याकांड एक निर्मम नरसंहार था जिसके बारे में आप लोग जानते ही होंगे। यह ब्रिटिश राज की सबसे बेरहम घटनाओं में से एक थी। आज इस हत्याकांड को 100 वर्षों से अधिक का समय बीत चुका है।


13 अप्रैल सन 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में रॉलेट एक्ट के तहत सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल को अंग्रेज़ो द्वारा बंदी बनाये जाने जाने के विरुद्ध में लोग एक शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे। इन हज़ारों पर ब्रिटिश शासक जनरल डायर द्वारा सीधा फायरिंग करने का आदेश दे दिया गया और बाहर जाने का एकमात्र मुख्य रास्ता बंद करके गोलियों की बरसात करने लगे। इस फायरिंग में अनेक लोगों की जान गई। जान बचाने के लिए कोई दीवार पर चढ़ गया तो कोई कुएं में कूद गया और बैसाखी के दिन इस तरह का तांडव देखकर हर कोई बौखला गया।


कई इतिहासकार यह मानते हैं कि इस नरसंहार के पीछे जनरल डायर का नहीं बल्कि पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ ड्वायर और ब्रिटिश शासकों का मुख्य हाथ था।


इस सबसे बहुत सारे लोग बौखलाए हुए थे, उनमें से एक नाम आता है उधम सिंह का। उन्होंने गवर्नर माइकल ओ ड्वायर को गोली मारकर सैकड़ों भारतीयों के नरसंहार का बदला लिया। क्या आप लोग जानते हैं कौन थे उधम सिंह और क्यों उनके नाम पर उत्तराखंड राज्य के एक जिले का नाम उधम सिंह नगर है?? आइए जानते हैं वीर क्रांतिकारी Freedom Fighter Udham Singh के विषय में.....


उधम सिंह: परिचय


इनका जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसम्बर 1899 को हुआ था। पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह था जो जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदारी का काम करते थे। सन 1901 में इनकी माता का निधन हो गया और सन 1907 में इनके पिता भी चल बसे। अब परिवार में ये और इनके भाई ही बचे थे। इनके बचपन का नाम शेर सिंह और भाई का नाम मुख्ता सिंह था।


माता पिता के निधन के बाद दोनों भाई अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में रहने लगे। यहां लोगों ने इनका नाम बदलकर उधम सिंह और साधु सिंह रख दिया।


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1917 में साधु सिंह की मृत्यु हो गयी। अब इनका दुनिया में कोई नहीं था। ये सभी धर्मों को बराबर मानते थे इसलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था।


1918 में मेट्रिक पास करने के बाद अनाथालय त्याग दिया और क्रांतिकारी बन गए। ये भगत सिंह के बड़े प्रशंसक थे। उनके काम और विचारों से प्रभावित थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे। 


उधम सिंह की बदले की प्रतिज्ञा


उधम सिंह के सामने ही जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। उन्होंने हज़ारों भारतीयों को अपनी आंखों के सामने बिना किसी अपराध के मरते हुए तड़पते हुए और अपनी जान बचाने की कोशिश में छिपते छिपाते हुए देखा था। जनरल डायर की करतूत का उन्हें पता था इसलिए उन्होंने बाग की मिट्टी अपने हाथों में लेकर प्रतिज्ञा की और जनरल डायर तथा उसके साथी पंजाब गवर्नर माइकल ओ ड्वायर को सबक सिखाने की कसम खायी।

अब वे कई वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील, जिम्बावे और अमेरिका की यात्रा करके पैसे जमा करते रहे। परंतु उनके लंदन पहुंचने से पहले ही जनरल डायर की 1927 में मौत हो गयी जिससे उनका पूरा ध्यान ड्वायर पर आ गया।


माइकल पर गोलियों की बौछार


सरदार उधम सिंह को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का अवसर 21 वर्षों बाद 13 मार्च 1940 को मिला। नरसंहार को उचित ठहराने वाला ड्वायर अब बचने वाला नहीं था। 13 मार्च को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काकसटन हॉल में बैठक थी और वहाँ वक्ताओं में से एक था माइकल ड्वायर। उधम सिंह भी वहाँ पहुंच गए।

उन्होंने अपनी बन्दूक को एक किताब में बड़ी ही चालाकी से छुपा लिया था। इसके लिए किताब के बीचों बीच रिवाल्वर के आकार और मोटाई के पेज काटकर वहाँ उसे छिपा दिया। बैठक के बाद मौका मिलते ही उन्होंने ड्वायर को निशाना बनाकर गोलियां चलाई, जिसमें से दो गोली माइकल पर लगी और उसकी मौत हो गयी। इस तरह से उधम सिंह ने अपने भाइयों और भारतवासियों की निर्मम हत्या का बदला लिया। 


उधम सिंह की मृत्यु


ड्वायर को गोली मारने के बाद वे वहां से भागे नहीं और अरेस्ट होकर कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट के इस सवाल पर कि ड्वायर के अलावा उसके दोस्तों को क्यों नहीं मारा तो जवाब में उन्होंने कहा कि वहां पर औरतें भी थीं और औरतों पर हमला करना हमारी संस्कृति में नहीं है। 

4 जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी करार करते हुए 31 जुलाई 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गयी।

यह कहानी आंदोलनकारियों के लिए हमेशा से ही प्रेरणा का स्रोत रही है।


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