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आयुर्वेदिक चाय हो सकती है अत्यंत लाभदायक- Ayurveda Remedies for Asthma

कहते हैं एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है और एक स्वस्थ मस्तिष्क हो तो इंसान सभी कार्य भली प्रकार से कर सकता है। परंतु रोगों का आजकल पता नहीं चलता कब लग जाये इसलिए इनसे दूर रहने लिए कई उपाय अपनाने पड़ते हैं। आजकल कई बीमारियाँ इंसानी शरीर पर हावी हो रही हैं। ऐसी ही बीमारियों में से एक है अस्थमा जिसे सामान्य भाषा में दमा कहा जाता है। यह बीमारी बदलते मौसम में अपनी जकड़ और मजबूत कर लेती है। मौसम बदलने के साथ धूल उड़ती है, कीटाणु अधिक बढ़ जाते हैं, इस तरह के पर्यावरण के कारण इसके मरीज़ों को एलर्जी की समस्या बढ़ने लगती है। इस तरह के मरीज़ों को आयुर्वेदिक चाय से काफी फायदा मिल सकता है। इसके लिए सबसे पहले इस बीमारी के बारे में जानकारी लेनी अति आवश्यक है इसलिए इसके बारे में जानते हैं :- 


अस्थमा की सबसे पहले खोज प्राचीन मिश्र में हुई थी और तब वहां के लोगों द्वारा इसका इलाज कायफी(जो सुगंधित होता था) नाम के एक मिश्रण को दवा की तरह पिलाकर किया जाता था। बाद में कभी भावनाओं से जुड़ा रोग तो कभी मनोदैहिक रोगों के रूप में इसे पहचाना जाने लगा।

परंतु आज साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि सभी को पता है यह सांस से संबंधित बहुत ही गंभीर बीमारी होती है। यह बीमारी सांस लेने और छोड़ने वाली नलियों को प्रभावित करती है। इसे हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि यह बीमारी एक प्रकार की शरीर की एलर्जी है इसका मतलब है ऐसी चीजें जिनके प्रति हमारा शरीर एक विरोधी गति करता है या ऐसा कोई पदार्थ जिसे शरीर सहन नहीं कर पाता और अपना विरोध दिखाता है, इसे हम एलर्जी कहते हैं। ऐसे ही जब शरीर का श्वसन अंग एलर्जी प्रदर्शित करता है तो वह अस्थमा या दमा कहलाता है।


आइए अब जानते हैं क्या होते हैं इसके लक्षण:


श्वसन तंत्र की कुछ नलिकाएं ऐसी होती हैं जो सांसो को अंदर बाहर करने का काम करती हैं। अस्थमा में इन नलिकाओं में सूजन आ जाती है और फिर यह अत्यंत ही संवेदनशील हो जाती हैं। इसके बाद जब भी वे किसी चीज के संपर्क में आती हैं तो अपना विरोध प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट करती है। जब यह विरोध प्रदर्शित होता है तो वह नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं जिससे फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है। इस वजह से सांस लेने में अत्यंत कठिनाई, खांसी जैसे लक्षण दिखते हैं। दमा के लक्षण या तो धीरे-धीरे या फिर अचानक से एक साथ दिखते हैं। इन लक्षणों को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं


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अस्थमा के मरीजों को लंबी-लंबी सांस लेने की जरूरत पड़ती है। नाक से ही नहीं बल्कि मुंह से भी वे सांस लेने लगते हैं। सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज, दिल की धड़कन तेज होना, सीने में जकड़न और खांसी इसके मुख्य लक्षण हैं। इनके साथ-साथ पसीना आने और उल्टी होने तथा सांस लेने में घर्र-घर्र की आवाज और रात के वक्त या  सोते समय बेचैनी अधिक बढ़ जाने से कठिनाई होती है।



अस्थमा के कारण:


यह बीमारी अनेक कारणों से हो सकती है आमतौर पर इस प्रकार की एलर्जी धूल के कणों(आटे की धूल, कागज की धूल) पशुओं के बाल, रुई के रेशे, परफ्यूम की खुशबू, फफूंद, मसालों के जलने की गंध जैसे कारकों से होती है। इसके अलावा यह बीमारी खाद्य पदार्थों के सेवन से भी हो सकती है जैसे चॉकलेट, आलू, रेशे वाली बीन्स आदि का सेवन करना। अन्य कारणों में भावनात्मक कारण(अत्यधिक रोना और हंसना), अनुवांशिक कारण, मोटापा, सिगरेट या तंबाकू का सेवन और विभिन्न संक्रमणों के साथ-साथ वायु प्रदूषण भी शामिल है। गर्भवती महिलाओं का तंबाकू के धुएं में रहने या इसके सेवन से बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। विभिन्न प्रकार की दवाएं लेने से भी यह बीमारी उत्पन्न हो सकती है।


अस्थमा के उपचार:


इस तरह की बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता परंतु डॉक्टर्स की सलाह पर दवाइयां और अस्थमा पंप की मदद से इसके दौरे आने से रोका जा सकता है। दवाइयों के साथ-साथ प्राकृतिक रूप से उपचार भी इसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसे- फलों का रस और पोषक तत्व प्रदान करने वाले भोजन लेना, तेल से बने एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना, भोजन चबा चबाकर खाना आदि शामिल हैं। इन सबके अलावा प्राकृतिक तत्वों से निर्मित चाय भी इस बीमारी में अत्यंत लाभदायक हो सकती हैं जैसे-


दालचीनी के पत्तों और शहद की मिश्रित चाय


इस प्रकार की मिश्रित चाय दालचीनी के पत्तों को उबालकर बनाई जाती है। इसमें ग्रीन टी की कुछ भी मिलाई जा सकती हैं तथा शहद के साथ लेने से अस्थमा के मरीजों के लिए यह लाभकारी सिद्ध होता है, क्योंकि दालचीनी में एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं तथा यह इम्यूनिटी बढ़ाने में भी फायदेमंद है। ग्रीन टी की एंटी ऑक्सीडेंट प्रॉपर्टी से फेफड़ों में सूजन कम होती है। यह चाय सुबह और शाम अस्थमा के मरीजों को जरूर पीनी चाहिए लेकिन इसके अत्यधिक सेवन से नुकसान भी हो सकता है।


तुलसी की पत्तियों और अदरक से बनी चाय


इस प्रकार की चाय सामान्यतः कई घरों में प्रयोग की जाती है परंतु क्या आप जानते हैं ? अस्थमा के मरीजों के लिए यह चाय अत्यंत ही कारगर सिद्ध होती है। यह चाय तुलसी के पत्ते और अदरक को कूटकर पानी के साथ मिलाकर बनाई जाती है।


यूकेलिप्टस के पत्तों से बनी चाय


इस प्रकार की चाय बलगम बनने से रोकने के साथ फेफड़ों की सूजन को कम करने में फायदेमंद होती है। यूकेलिप्टस की पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं इसलिए यह चाय दमा के मरीजों के लिए अत्यंत लाभकारी है।


मुल्येन  टी


इस प्रकार की चाय से ब्रोंकाइटिस की समस्या का जड़ से समाधान होता है। अस्थमा के मरीजों में घबराहट को कम करके यह चाय काफी फायदेमंद सिद्ध होती है। 


ब्लैक टी


इसके बारे में तो सभी जानते हैं बिना दूध वाली चाय। यह चाय डायबटीज के मरीजों के साथ अस्थमा से ग्रसित रोगियों के लिए भी लाभदायक है। इसमें भी कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स, टेनिन्स, फ्लोराइड्स आदि तत्व पाए जाते हैं जो मरीज़ों के लिए आवश्यक हैं।

डिस्क्लेमर: यह टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं, इन्हे किसी डॉक्टर या फिर स्वस्थ्य स्पेशलिस्ट की सलाह के तौर पर न लें, बिमारी या किसी संक्रमण की स्थिति में डॉक्टर की सलाह से ही अपना इलाज करवाएं।

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