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बत्तख मियां ने बचाई थी गांधी जी की जान। Batakh Miyan and Gandhiji

गांधी एक नाम ही नहीं अपितु, एक युग ,दर्शन ,आदर्श और अद्भुत विचारों का संग्रह भी है। स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में गांधी नाम सर्वोपरि है स्वतंत्रता कि इस जंग में कई बार इन्हें अंग्रेजों द्वारा सलाखों के पीछे डाला गया तो कई बार इन्हें मारने का षड्यंत्र भी रचाया गया। राष्ट्रपिता (गांधी) की मृत्यु के लिए इसी प्रकार का एक षड्यंत्र1917 में मोतिहारी कोठी के मैनेजर इरविन  के द्वारा भी रचाया गया।

यूं तो महात्मा गांधी  जी को मारने वाले  का नाम भले ही सबको पता होगा लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि 1917 में इरविन की साजिश को नकारते हुए गांधीजी की जान बचाने वाला शख्स आखिर कौन था?  इस लेख के माध्यम से हम आपको उस व्यक्ति के बारे में अवगत कराएंगे जिसने गांधीजी की जान बचाई। Batakh Miyan and Gandhiji


बिहार के बेतिया जिले में  गौनाहा स्थित परसौनी गांव के एक शक्स ने वर्ष 1917 में अपनी जान की बाजी लगाकर गांधीजी की जान बचाई उनका नाम था "बतक मियां"।

दरअसल हुआ यह था की वर्ष 1917 में जब गांधीजी नील के किसानों की परेशानीयों को समझने के लिए चंपारण के इलाकों में भटक रहे थे तो एक दिन वे  मोतिहारी (अविभाजित चंपारण का मुख्यालय) स्थित नील फेक्ट्री के मैनेजर इरविन से मिलने पहुंच गए। उन दिनों चंपारण के लोग गांधी जी को अपना मसीहा मानते  थे। नील की खेती करने वाले किसानों को लगता था कि  वे वहां से अंग्रेजों को भगाकर ही दम लेंगे।जो बात नील प्लांटरों को खटकती थी।वे हर हाल में उनकी जान लेना चाहते थे।


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गांधी जी को खाने पर बुलाकर इरविन ने  उन्हें दूध में जहर देने की योजना बनाई थी। उस समय बतख मियां इरविन के रसोइए थे। इरविन द्वारा बतक मियां को लालच और धमकी का झांसा देकर गांधी जी को जहर वाले दूध की ट्रे को सर्व करने के लिए  कहा गया।

बतक मियां के पोते कलाम अंसारी के अनुसार वे अपने दादाजी को नहीं देख पाए लेकिन पिता अंसारी पूरी कहानी बताते थे।


मेरे दादाजी अंग्रेज अधिकारी के यहां खाना बनाने का काम करते थे लेकिन दादा जी ने नहीं माना और जोर जबरदस्ती कर उन्हें गांधी  जी को जहर वाला दूध लेकर भिजवाया गया। बतक मियां ने गांधी जी को दूध देते ही बता दिया कि इसमें जहर है लिहाजा उन्होंने पिया नहीं और फेंक दिया। बाद में एक बिल्ली उस दूध को पी गई और उसकी मौत हो गई।  

कलाम अंसारी के अनुसार इस घटना के गवाह राजेंद्र प्रसाद और दूसरे लोग भी थे। इस घटना के बाद अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें जेल भेज दिया और परिवार के 7 बीघा , 12 कट्ठा और 2 धूर जमीन के साथ 5 भैंसों को नीलाम कर दिया। परिणाम स्वरूप उनके घर की स्थिति बेहद खराब हो गई।


1950 में स्वतंत्रता के बाद जब डॉ राजेंद्र प्रसाद एक जनसभा को संबोधित करने के लिए मोतिहारी गए तो  जनसभा को सम्बोधित करने के दौरान उनकी नजर अचानक एक वृद्ध व्यक्ति पर पड़ी जो और कोई नहीं बल्कि बतक मियां थे। उन्होंने बतक मियां को समानपूर्वक मंच पर बुलाया और यह क़िस्सा सबको बताया।और बतक मियां को 24 एकड़ जमीन देने की घोषणा की।

बत्तख़ मियां की लाखों भागदौड़ करने के बाबजूद प्रसाशनिक सुस्ती के कारण वह जमीन उन्हें नहीं मिल पाई और गरीबी के इस हाल में 1957 में उनका देहांत हो गया।


परिवार की जमीन पर वन विभाग का कब्जा

कलाम अंसारी के अनुसार उनके परिवार को 35 बीघा जमीन दी गई थी। लेकिन उनके परिवार के पास सिर्फ 3 बीघे की जमीन है और यह जमीन भी नदी में चली गई है इसके अलावा करीब 20 साल पहले 9 बीघे की  दूसरी जमीन पर उनका परिवार खेती करता था लेकिन वन विभाग उस पर कब्जा कर चुका है। बाकी किसी जमीन का अता पता नहीं है। कलाम अंसारी के अनुसार बतक मियां का परिवार 10 कट्टे की जमीन पर रहता था जो कभी भी दरहा नदी में समा सकती है। 

पश्चिमी चंपारण के डीएम लोकेश ने  न्यूज़ के जरिए कहा कि बतक मियां का परिवार यहां एक्वा परसौनी गांव में रहता है लेकिन वर्तमान में उनके परिवार की जमीन का स्टेटस क्या है इसकी जानकारी नहीं है हमने अपने अधिकारियों को इस संबंध में पता करने के लिए कहा है उन्होंने इस संबंध में पूर्वी चंपारण प्रशासन से संपर्क करने की बात कही। 


जब न्यूज़ 18 हिंदी ने पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी अनुपम कुमार से बात की तो उन्होंने कहा कि बतक मियां पूर्वी चंपारण बजरंगिया के अदरगी के निवासी थे लेकिन उनका पूरा परिवार पश्चिमी चंपारण शिफ्ट किया गया है।और न ही उनको जमीन दी गई थी।


बतक मियां के पोते कलाम अंसारी के मुताबिक करीब 4 महीने पहले मोतिहारी DM के यहां से एक पत्र आया और कहा कि राष्ट्रपति के यहां से पत्र आया है कि आपको जमीन दी जाएगी लेकिन अभी तक कुछ मिला नहीं।हमें 41 एकड़ जमीन देने की बात की गई थी।

इतिहास के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम योद्धा बतक मियां को सबने भुला दिया। आइए हम उनकी स्मृतियों को याद करते हुए उन्हें सलाम करते हैं आजादी के 68 साल बाद में भी अभी तक बतक मियां के परिवार जनों को उनकी जमीन नहीं मिल पाई है। आइए  हम सब मिलकर चंपारण सत्याग्रह के दौरान 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जान बचाने वाले स्वतंत्रता सेनानी बतक मियां के वंशज को सरकार द्वारा उनके हक की जमीन उपलब्ध करवाने में उनकी मदद करते हैं।

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