poet-lyricist-rahat-indori
स्टोरीज

क्यों आज भी लोग हैं अंदाज़-ए-बयां के कायल | Poet Lyricist Rahat Indori

अपनी शायरी से हर महफिल को लूट लेने वाले मुशायरे के बादशाह थे- Poet Lyricist Rahat Indori शायर राहत इंदौरी। जो मंच में इशारे-इशारे में नहीं बल्कि खुलेआम चुनौती दे सकते थे। उन्हें आती-जाती सरकारों से कुछ लेना-देना नहीं था। लोगों की आवाज को अपनी आवाज बना लेते थे। वे शायरी तो उर्दू में करते थे परंतु उनकी शायरी बोलने का अंदाज इतना निराला था कि उनकी बात सबको समझ में आती और मंत्र मुक्त कर जाती थी।ऐसे निष्कंप दृढ़ता से ओतप्रोत शायर कोरोना और दिल का दौरा पड़ने की वजह से दुनिया को छोड़ कर चले गए। 11 अगस्त 2020 को उनकी मृत्यु हो गई।


शायर राहत इंदौरी का जन्म 1950 में हुआ था। इंदौर में उनकी स्कूली शिक्षा हुई और उसके बाद उन्होंने उर्दू साहित्य में एमए और पीएचडी की। वे 30 सालों तक इंदौर के एक कॉलेज के प्रोफ़ेसर भी रहे थे। राहत इंदौरी का असली नाम कुरैशी था परंतु उन्हें अपने शहर इंदौर से इतना लगाव था कि उसे ही अपनी पहचान बनाते हुए उन्होंने नाम के पीछे इंदौरी जोड़ दिया।       

              

राहत इंदौरी को हमेशा से ही शेर कहने के तरीके के लिए याद किया जाएगा। वे मंच पर आते ही अपने अंदाज-ए-बयां से सभी को खामोश कर देते थे। महफिल में स्थिर होने में उन्हें थोड़ा समय तो लगता था लेकिन एक बार स्थिर होने के बाद वे महफिल के बादशाह हो जाते। इस अंदाज से शेर पढ़ते मानो खुदा से बात कर रहे हो कभी आसमान देखकर, तो कभी झूम-झूम कर ऐसे लगता ललकार रहे हो। कहते समय वह अलग अंदाज में शर्माते, मुस्कुराते, कभी तेज आवाज तो दूसरे ही पल धीमी आवाज के साथ सबका मन मोह लेते,एक शब्द पर जोर देते उस शब्द के साथ सबके मन में अलग-अलग भाव जागते (विरोध, चुनौती, व्यंग्य) उसके बाद लोग ऐसा अंदाजा लगा लेते कि अब कुछ और कोई बड़ा संदेश आने वाला है और आखिर तक आते-आते पूरी महफिल उनकी हो जाती। 


इसे भी पढ़े: आखरी क्षणों में ये बोलते ही गिर पड़े थे Missile Man A.P.J Abdul Kalam


उनके हर शेर के पीछे एक कहानी होती, एक दर्द होता, विरोध होता उनका एक प्रसिद्ध शेर है-

मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना।

   

उनकी हर महफिल में इस शेर को सुनने के लिए लोग आते थे।शेर में 'मैं मर जाऊं' कम से कम 3 बार वे कहते थे और शब्दों में उतार-चढ़ाव इतना सटीक होता कि लोग सोचते ऐसा क्यों कह रहे हैं? फिर पूरी बात होती 'मेरी अलग पहचान लिखना' यहां सभी के मन में आ जाता कि किसे कहा जा रहा है। अंत में एक चुनौती के रूप में कहते 'मेरी परेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना' और सभी का मन देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत हो जाता। तब उनके मुख पर संतोष और आंखों में चमक होती जैसे कि यह जवाब पूरी महफिल की तरफ से दिया जा रहा हो।

उम्रदराज़ होकर रोमांटिक शायरी कैसे लिखते हैं? इस प्रश्न पर उन्होंने कहा था कि उनके लहजे को गाली चोर, गुस्सा और चीख कहा जाता है लेकिन वह अपने इस अंदाज से समझौता करने वालों में से नहीं है इसलिए इसका जवाब उन्होंने कुछ इस प्रकार दिया था:-

जहां-जहां से टूटा है जोड़ दूंगा उसे, मुझे वह छोड़ गया यह कमाल है उसका, इरादा मैंने किया था कि छोड़ दूंगा उसे, पसीने बढ़ता फिरता है हर तरफ सूरज,कभी जब हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे। 

    

उनका कहना था कि सरकार उन्हें पसंद नहीं करती। इस पर भी उन्होंने एक शेर लिखा था जो है:-

ऊंचे-ऊंचे दरबारों से क्या लेना! नंगे भूखे बेचारों से क्या लेना! अपना मालिक अपना खालिक तो अल्लाह है, आती-जाती सरकारों से क्या लेना-देना। 

गजल को लेकर उन्होंने कहा था कि वे 30 साल तक शायरी पढ़ते रहे लेकिन वे भी इसे समझ नहीं पाए। जितना समझ पाए उसमें इतना कहा कि ग़ज़ल पढ़ने,पढ़ाने लिखने और समझाने के लिए आदमी को थोड़ा दीवाना,उत्साही,पागल, आशिक और थोड़ा बदचलन होना चाहिए।

राहत इंदौरी ने 20 साल तक फिल्मों के लिए गाने लिखे लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया। यह कहकर की माया नगरी में शब्द मर गए हैं और वे मुर्दों के साथ में रहना नहीं चाहते। कई आंदोलनों में भी उनके शेर लोगों की आवाज बने। 2019 में आए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलनकारियों के हाथ में तख्तियों पर लिखा होता था:-

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है, जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे, किराएदार हैं जाति मकान थोड़ी है, सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।

आज वे हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनके शब्दों और उनकी शायरी के अंदाज ने सभी के दिलों में अपनी अमिट छाप छोडी है।

Trending Products (ट्रेंडिंग प्रोडक्ट्स)