बीजेपी के दिग्गज नेता भारतीय सेना के मेजर रह चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जिन्हें बाजपेयी का हनुमान कहा जाता है का हाल ही में 82 वर्ष में निधन हो गया है बताया जा रहा है कि वे पिछले 6 सालों से कोमा में थे क्योंकि अंतिम समय में पार्टी से उनके मतभेद के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।
अपने इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको बीजेपी के लिए लिबरल नेता जसवंत सिंह के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करेंगे।
कौन थे जसवंत सिंह?
बीजेपी के संस्थापक और सदस्य रह चुके जसवंत सिंह का जन्म 3 जनवरी 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल गांव में ठाकुर सरदारा सिंह और कुँवर बाइसा के घर में हुआ था। 30 जून 1963 को शीतल कुमारी के साथ उनका विवाह हुआ था। वे खुद को लिबरल डेमोक्रेट कहलाना पसंद करते थे। बचपन से ही उन्हें घुड़सवारी, संगीत और किताबों तथा अपनी संस्कृति से काफी लगाव था। भैरों सिंह शेखावत को अपना गुरु मानने वाले जसवंत सिंह पर कभी भी किसी तरह के करप्शन का आरोप नहीं लगा ।
प्रारम्भिक शिक्षा
जसवंत सिंह ने अपनी पढ़ाई अजमेर के मेयो कॉलेज और फिर नेशनल डिफेंस एकेडमी खड़कवासला से पूरी की।
राजनीति में एंट्री
जसवंत सिंह ने 1966 में राजनीति में एंट्री ली। वे बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे। राज्य के लिए 1980 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1986 ,1998 ,1999,2000 में भी राज्यसभा के लिए चुने गये। वे चार बार लोकसभा के लिए चुने गए 1990 ,1991 ,1996 और 2009 में उन्होंने चुनावी राजनीति में अपना दमखम दिखाया। 2004 से 2009 मैं वे राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे और प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई सरकार के कार्यकाल में वे 1998 से 2002 तक विदेश मंत्री, 2000- 2001 तक रक्षा मंत्री, तथा 2002 से 2004 तक वित्त मंत्री रह चुके हैं।
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ऐतिहासिक कार्य- बीजेपी नेता जसवंत सिंह की किताब का अध्ययन करने पर पाया गया है कि 'कंधार विमान अपहरण कांड' के वक्त जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे। तीन आतंकियों को कंधार छोड़ने भी वही गए थे जिसके लिए विपक्ष द्वारा उन पर कई बार आरोप भी लगाये गए।वे पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के पक्षधर थे ।1999 के 'लाहौर बस यात्रा' का सूत्रधार भी उन्हीं को माना जाता है। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे तब जसवंत सिंह ने बातचीत की थी। पाकिस्तान के साथ 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
BJP से बर्खास्त करने का कारण
वर्ष 2009 के चुनाव में एनडीए सरकार को पराजय का सामना करना पड़ा जिसके बाद जसवंत सिंह की जिन्ना पर एक किताब आयी जिसका नाम था "जिन्ना :इंडिया पार्टीशन"। स्वतंत्रता के संदर्भ में मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष और भारत विभाजन के लिए जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल को जिम्मेदार बताने पर उन्हें बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया हालांकि एक साल बाद उनकी पुनः पार्टी में वापसी हो गई थी।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की टिकट ना मिलने पर जसवंत सिंह ने बाड़मेर में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। लेकिन बीजेपी प्रत्याशी कर्नल सोनाराम से हार गये। बगावत के बाद जसवंत सिंह को बीजेपी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।
जसवंत सिंह बाड़मेर लोकसभा सीट से लोकसभा का उम्मीदवार बनना चाहते थे लेकिन वसुंधरा राजे ने इस उम्मीदवारी पर ब्रेक लगा दिया ऐसे में जसवंत सिंह बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लड़े।
उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार
वर्ष 2012 की बात है भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार जसवंत सिंह थे लेकिन यूपीए के प्रत्याशी मोहम्मद हामिद अंसारी ने उन्हें 490 वोटों से कड़ी शिकस्त दी। अंसारी ने एनडीए उम्मीदवार जसवंत सिंह को 252 वोटों से हराया जिसमें जसवंत सिंह को मात्र 229 वोट ही मिले थे।
बीजेपी में पूरी उम्र गुजार देने के बावजूद उन्होंने कभी भी हिंदुत्व की राजनीति को खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने पूरी लगन से हिंदू राष्ट्र की सेवा की। पहले उन्होंने सैनिक के रूप में और बाद में राजनीतिक से लंबा जुड़कर अटल सरकार के महत्वपूर्ण पदों और राष्ट्र हित में अनेक निर्णायक फैसलों का ऐतिहासिक कदम उठाया उनके राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा।