अल्मोड़ा से नीचे की ओर जाते हुए एक स्थान आता है, नाम है कोसी। कोसी से एक रास्ता रानीखेत के लिए जाता है और बांई ओर का रास्ता जाता है खूंट के लिए, और वहां से आगे कई गांवों को जोड़ता हुआ आगे बढ़ता है। एक गांव जो प्राकृति की मनोरम गोद में बसा हुआ है। इस क्षेत्र को श्यामली पर्वतीय क्षेत्र कहा जाता है। बात करते हैं खूंट की, इस छोटे से गांव में अब कुछ ही परिवार बचे हुए हैं, बाकी हर पहाड़ी गांव की तरह पलायन कर चुके हैं। लेकिन यह गांव विशेष है। और यह विशेष इसलिए है, क्योंकि यह गांव है उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री First Chief Minister of UP व भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत का।
10 सितम्बर 1887 को खूंट ग्राम के एक महाराष्ट्रीय मूल के एक ब्राह्मण परिवार में गोविन्दी बाई और मनोरथ पन्त के घर गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म हुआ था। शायद गोविन्द नाम उनकी माँ के नाम की वजह से ही उनको मिला। बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था, तो फिर उनकी परवरिश की उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने।
पैतृक मकान के अवशेष
उनके ग्राम खूंट में बना उनका स्मारक
पढ़ाई में बहुत तेज थे परन्तु खेल कूद में रूचि थोड़ा कम, प्रारंभिक शिक्षा घर से ही की और फिर सन 1905 में पहुंच गये इलाहाबाद जो आज प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। इलाहबाद में 1907 में बी०ए० और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की और लैम्सडेन अवार्ड से नवाज़े गए। साथ में कांग्रेस से जुड़ गए और स्वयं सेवक का काम करने लगे।
1910 के साल में वह वापिस आ गए अल्मोड़ा में और वही से वकालत शुरू की। कुछ समय के बाद काशीपुर रहे। काशीपुर में ही प्रेम सभा संस्था का गठन किया। उस संस्था का उद्देश्य था शिक्षा व साहित्य के विकास में भागीदारी करना। जहा एक ओर उनकी प्रोफेशनल लाइफ सही चल रही थी वही पर्सनल लाइफ में कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा था। शादी हुयी, और फिर कुछ समय के बाद ही बेटे और पत्नी की मृत्यु हो गयी। सन 1912 में दूसरी बार शादी की, एक बेटा भी हुआ, परन्तु बीमारी के कारण बेटा व पत्नी की मृत्यु हो गयी। फिर सन 1916 में उनका विवाह कलादेवी के साथ हुआ। गोविन्द बल्लभ पंत ने ही काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला खान व अन्य लोगो का केस अन्य वकीलों के साथ में लड़ा।
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गाँधी जी से प्रभावित थे, सन 1921 को वह गांधीजी के असहयोग आंदोलन के द्वारा राजनीति में आगे आये। नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य बने। और फिर नमक सत्याग्रह और साइमन कमीशन के विरोध में देहरादून में जेल भी गए।
कुली बेगार के धुर विरोधी रहे, उन्होंने शायद कुली बेगार वाली प्रथा अपने जन्मस्थान से ही देखी थी। खूंट (उनका पैतृक गांव व जन्मस्थान) के पास में एक अन्य पहाड़ी गांव है धमस, वह के 90 वर्षीय एक बुजुर्ग कहते हैं, की उनके समय में अंग्रेज अफसरों को पालकी में बिठा कर ले जाना होता था। वह कम ही पैदल चलते थे। कुली बेगार कानून के अंतर्गत लोकल लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान फ्री में ढोना होता था।
उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री-First Chief Minister of UP
आज़ादी से पहले आज का उत्तर प्रदेश को संयुक्त प्रान्त (United Provinces) के नाम से जाना जाता था। उसका विस्तृत नाम संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध था। 7 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वह इसी संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री बने। दुबारा से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, सन 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक। भारत स्वतंत्र हुआ, UP को उत्तर प्रदेश नाम दिया गया। बनारस व अन्य मैदानी इलाकों के बजाय पहाड़ी जिले से उनको मुख्यमंत्री बनाया गया। कर्यकाल था सन 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक। फिर भारत सरकार के ग्रह मंत्री बने 10 जनवरी 1955 से 25 फरबरी 1961 तक। मार्च 7 1961 को 73 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हृदयघात से हुयी। सन 1957 में उनको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
गोविन्द बल्लभ पंत के कुछ किस्से
1. पंत जी जा रहे थे अल्मोड़ा जिल्ले के पहले ब्लॉक् गरुड़ का उट्घाटन करने, रास्ते में एक जगह आती है दर्शानी, उनका काफिला रुका और उन्होंने फावड़ा उठाया और सिंचाई नहर को खोदने लगे। पहली नीव रखने के बाद वह नहर तकरीबन डेढ़ साल में तैयार हो गयी। नहर में बुरसौल नदी से पानी लाया गया।
2. पंडित पंत अपने नियम व उसूलों के बड़े पक्के थे। मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी अधिकारीयों के साथ बैठक थी, बैठक के समापन के बाद चाय और नाश्ता का बिल 6 रुपये 12 आने आया, जब उन्होंने बिल देखा तो बोले की ’सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद भुगतान करना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है।’
3. अन्य किस्सा यह है की जब उनको जेल में रखा गया तो एक पुलिस अफसर ने उनकी पिटाई की थी, जब वह मुख्यमंत्री बने तो वही अफसर उनके नीचे काम कर रहा था। पंडित पंत ने अफसर को बुलया तो वह बहुत डरा हुआ था, उन्होंने अफसर से बहुत अच्छे से बात की तो वह बड़ा खुश हुआ।
4. वकील रहते हुए उनका अंदाज़ अलग था, जो मुवक्किल उनको सही या पूरी जानकारी नहीं देता था वह उसका केस नहीं लड़ते थे। एक बार पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।
स्वतंत्रता के अवसर पर पंत जी का दिया गया सन्देश
"मित्रों और साथियों, इस ऐतिहासिक अवसर पर आप लोगों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करते हुए मुझे हर्ष होता है। हम अपनी मंज़िल पर पहुंच चुके हैं। हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। भारतीय संघ के स्वतंत्र राज्य में मैं आपका स्वागत करता हूं। जनता के प्रतिनिधि राज्य और उसकी विभिन्न शाखाओं का नियंत्रण और संचालन करेंगे और जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार केवल सिद्धान्त नहीं रहेगा वरन् अब वह सब प्रकार से सक्रिय रूप धारण करेगा और सभी मानों में यह सिद्धान्त व्यवहार में लाया जाएगा।"