अहिंसा के पुजारी भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी जी जिन्हें संपूर्ण भारतवर्ष बापू के नाम से जानता है का जन्मदिन 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। गांधी जी के सम्मान को व्यक्त करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है अहिंसा की नीति के जरिए विश्व में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान की सराहना के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर दुनिया से यह आग्रह किया कि वह 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस के रूप में मनाएंगे।
जीवन परिचय- गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात, (पोरबंदर, काठियावाड़) में हुआ था।इनके बचपन का नाम 'मोहनदास' तथा प्यार से इन्हें 'मोनिया' बुलाते थे। पिता का नाम 'करमचंद गांधी' जो ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत राजकोट के दीवान थे। मोहन दास की माता का नाम 'पुतलीबाई' था जो अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी जिसका गहरा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा और इन्हीं मूल्यों को उन्होंने अपने जीवन में उतारा मात्र साढे 13 साल की उम्र में उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया तब उनकी पहली संतान ने जन्म लिया जो कुछ दिन ही जीवित रही 1885 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। बाद में मोहनदास व कस्तूरबा की चार संतान हुई।
इसे भी पढ़ें: लिबरल डेमोक्रेट नेता जसवंत सिंह | Ex-Union Minister Jaswant Singh
हीरालाल गांधी(1888), मडीलाल गांधी(1892), रामदास गांधी (1897) और देवदास(1900)।
प्रारंभिक शिक्षा- महात्मा गांधी जी की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा पोरबंदर में संपन्न हुई। हाई स्कूल इन्होंने राजकोट से किया। पढ़ने में वे काफी अच्छे नहीं थे वह गणित विषय में काफी कमजोर थे कई वर्षों के बाद उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वह झेंपू, शर्मीले और कम बुद्धि के छात्र हैं उन्हें एकांत काफी प्रिय था। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में दाखिला लिया परंतु खराब प्रदर्शन, स्वास्थ्य तथा घर की समस्याओं के कारण वह कॉलेज छोड़कर पोरबंदर चले गए। विद्यालय की गतिविधियों या परीक्षाओं के परिणाम से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि वह भविष्य में महान बनेंगे।
विदेश में शिक्षा और वकालत- सन 1888 में मोहन दास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून की पढ़ाई कर बैरिस्टर बनने चले गए वे अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले चाहते थे कि बैरिस्टर बनने के बाद उन्हें आसानी से दीवान की पदवी मिल जाए। लंदन जाने से पूर्व उन्होंने अपनी मां को वचन दिया कि वह कभी भी मांस का सेवन नहीं करेंगे इसलिए उन्होंने वेजिटेरियन सोसायटी की सदस्यता ग्रहण कर ली इस सोसायटी के सदस्य थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढ़ने का सुझाव दिया जून 1891 में वे भारत वापस लौटे और 1893 में उन्होंने वकालत का कार्य प्रारंभ किया।
अफ्रीका का सफर- महात्मा गांधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। अफ्रीका में उन्होंने अपने जीवन के 21 साल बिताए। जहां उनके राजनीतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ ।यहां पर उन्होंने नस्लीय भेदभाव का सामना किया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारतीयों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से संबंधित प्रश्न आने लगे उन्होंने भारतीयों की नागरिकता संबंधित मुद्दों को भी दक्षिण अफ्रीका सरकार के सामने उठाया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष(1916-1945)- वर्ष 1914 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे वह अपने गुरु गोपाल कृष्ण के कहने पर भारत आए थे और यहां पर उन्होंने राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की महात्मा गांधी के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष करने के लिए और भारत को आजादी दिलाने के लिए समय-समय पर अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया गया जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार की अनेक यातनाएं भी सहनी पडी। आइए जानते हैं महात्मा गांधी के नेतृत्व की कुछ प्रमुख आंदोलन:
1. चंपारण आंदोलन 1917 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए बिहार में चम्पारण में महात्मा गांधी का पहला सफल और सक्रिय आंदोलन था।
2.खेडा आंदोलन(1918)
3. खिलाफत आंदोलन(1919)
4.असहयोग आंदोलन(1920)
5.भारत छोड़ो आंदोलन(1942)
6. सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च, इरविन समझौता आदि।
गाँधी जी देश के 'राष्ट्रपिता' तथा 'बापू' के रूप में प्रसिद्ध हैं। वो एक सच्चे देशभक्त ,नेता और अहिंसा के पथ पर चलने वाले स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे।उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की लड़ाई जीतने के लिए अहिंसा ही एकमात्र हथियार है।
अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए 30 जनवरी 1948 को इस महान आत्मा की हत्या नाथूराम गोडसे के द्वारा कर दी गयी।आजाद भारत उनके अभूतपूर्व योगदान को हमेशा याद रखेगा।
प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को उनकी अहिंसा की नीति को प्रोत्साहित करने और विश्व में शांति का संदेश देने के लिए स्कूलों, कॉलेज, शिक्षण संस्थानों, सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों में यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इनको श्रद्धांजली अर्पित कर अहिंसा के संकल्प को आगे बढ़ाया जाता है।